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क्रिस्टी डीआस: राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी से लेकर प्लंबर तक का मेरा सफर

राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी होने से लेकर प्लंबर बनने तक, क्रिस्टी डीआस ने महिलाओं के खिलाफ बने उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ा है।

राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी होने से लेकर प्लंबर बनने तक, क्रिस्टी डीआस ने महिलाओं के खिलाफ बने उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ा है।

भारत में, लंबे समय से कई पेशे जेंडर से जुड़े रहे हैं, खासकर यह कहते हुए कि कुछ करियर के लिए शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है। लेकिन समय बदल रहा है और हम भी। महिलाएं इन पुरानी सेट की हुई रूढ़ियों को हर रोज चुनौती दे रही हैं। इनमें से एक महिला है गोवा की क्रिस्टी डीआस। 

क्रिस्टी के बारे में हमें TEDx स्पीकर, उद्यमी, प्रेरक और गोआ गोवूमनिया के संस्थापक सिया शेख़ द्वारा पता चला। Goa GoWomania महिला उद्यमियों द्वारा एक पहल है। यह एक सामाजिक मंच प्रदान करने के लिए, प्रोत्साहित, मार्गदर्शन और महिला उद्यमियों के लिए एक सहायता प्रणाली का निर्माण के लिए स्थापित हुआ। यह मंच स्किल सेट के निर्माण के साथ-साथ एक मजबूत प्रेरित माइंडसेट बनाने के लिए अस्तित्व में आया।

आज क्रिस्टी डीआस से उनके सफ़र के बारे में जानते हैं

राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी होने से लेकर प्लंबर बनने तक, क्रिस्टी ने महिलाओं के खिलाफ बने उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ दिया। और जबकि खेल कहीं ना कहीं महिलाओं की भूमिका के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है लेकिन महिला और प्लंबिंग ऐसी चीज है जिसके बारे में शायद कुछ ही लोगों ने सोचा होगा, क्योंकि कभी भी हमें ऐसा प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया जो इस विचार को चिंगारी दे कि ‘मैं भी ऐसा कर सकती हूं।’

एक प्रतिनिधित्व को सामने लाने की कोशिश में, जो कई और लड़कियों के लिए, जो समाज द्वारा बनायी महिलाओं की बाधाओं से बंधी हैं जैसे की कुछ काम वह करने में सक्षम नहीं हैं, हमने क्रिस्टी डीआस से उनके सफ़र के बारे में जानने के लिए उनका इंटरव्यू लिया। उम्मीद है कि इन रूढ़ियों को तोड़ने में एक मददगार हाथ बढ़ा सकेेगे और कई और लड़कियों को प्रेरणा दे सकेंगे। 

मैं एक वॉलीबॉल प्लेअर हूँ

प्रश्न – हमें अपना परिचय देते हुए अपने बारे में कुछ बताइए।

क्रिस्टी – मैं एक वॉलीबॉल प्लेयर हूँ। 4th स्टैंडर्ड से लेकर 2018 तक मेैं एक स्पोर्ट्सपर्सन थी। मैंने NSNIS में अपना डिप्लोमा पूरा करने के बाद खेल में अपना करियर ज़ारी रखा। मेरा पहला राष्ट्रीय 2008 में था और 2018 में मैंने आखिरी गेम खेला। मैं गोआ टीम की कप्तान भी थी।

मैं बंगलोर में वॉलीबॉल कोच थी। मैंने कोच के रूप में 3 अलग-अलग संस्थानों के लिए काम किया और फिर मैंने फिजिकल एजुकेशन शिक्षक के रूप में सरकारी नौकरी की कोशिश की। मैंने स्कूल में 5 महीने तक काम किया लेकिन प्रभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पायी। फिर मैंने अन्य स्कूलों में नौकरी पाने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं अपने जीवन में कहीं बढ़ना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी, इसलिए मैंने अपना हाथ प्लमिंग पर आज़माया।

क्रिस्टी डीआस का वॉलीबॉल से प्लंबिंग तक का सफ़र

प्रश्न- वॉलीबॉल से प्लंबिंग का यह बदलाव कैसे हुआ? क्या यह कुछ ऐसा था जिसमें आप पहले से रुचि रखती थीं?

क्रिस्टी – ऐसा कुछ कभी नहीं था। बस पिछले 3 साल में ही इसमें आने का सोचा, उसके पहले इसमें कोई ख़ास इंट्रेस्ट नहीं था। आज तक मुझे ही नहीं पता मैं कैसे इस लाइन में आयी। लेकिन हाँ ये था कि मैं गवर्न्मंट जॉब का ट्राई करूँगी और वह नहीं हुआ तो फिर किसी बिज़नेस लाइन में जाऊंगी। 

इस नौकरी के बारे में मुझे कुछ पता नहीं था। ये काम कितना आसान है या मुश्किल, कितनी इनकम होगी, मुझे कुछ नहीं पता था। ये सही है या गलत, मैंने कुछ नहीं सोचा था। हाँ, मेरे दोस्त प्लम्बर थे इसलिए शायद उन लोग के वातावरण से थोड़ा प्रभाव पड़ा हो, लेकिन आज तक किसी ने मुझे कहा नहीं कि मुझे ये करना चाहिए। ये अचानक हुआ।

मैंने एक गोवा टीम की खिलाड़ी, राष्ट्रीय खिलाड़ी और यहां तक ​​कि कोच का काम किया। वही लाइन जिसमें बचपन से सब किया था मैंने, लेकिन वो लाइन मुझे कहीं तक नहीं पहुचा पाई। मुझे कुछ करना था जिंदगी में, जो मुझे करना था, स्पोर्ट्स पर्सन के रूप में। जिस लाइन में मुझे आगे जाना था वो नहीं हुआ, तो अपने पाँव पर खड़े होने के लिए मैंने इस लाइन में जंप किया। 

प्रश्न- क्या प्लंबिंग छोड़ के कभी वॉलीबॉल में वापस जाने का सोचा है?

क्रिस्टी- प्लमिंग लाइन में ही करना है पर साथ ही खिलाड़ी रह कर। जब तक मैं फिट हूं इस खेल के लिए, तब तक में राज्य को प्रतिनिधित्व करती रहूँगी। 

बहुत लोगों ने मुझे बोला कि ये तो आदमियों का काम है

प्रश्न- समाज की दृष्टि से यह पेशा पुरुष प्रधान माना जाता है तो उस माहौल में बना रहना कितना मुश्किल था?

क्रिस्टी- हां, ऐसा मुझे बहुत लोगों ने बोला है। जहां मेरा काम होता था, वहाँ बहुत लोगों ने मुझे बोला कि ये तो आदमी का काम है, आप इसमें कैसे आईं? मुझे शुरू में मुश्किल हो रही थी। प्लंबिंग मे आकर कोई नौकरी नहीं मिल रही थी। जब मैं थोड़ा-थोड़ा मेंटेनेंस का काम करने लगी, तब पता चला कि लडकियाँ प्लंबिंग नहीं करतीं, इसलिए कोई मुझे नौकरी नहीं दे रहा है।

कोई नया स्किल जब आता है तो ​​पुरुष प्लम्बर को भी सीखना पड़ता है, जितनी दिक़्क़त औरत को होगी उनको भी नयी स्किल आज़माने में उतनी ही मुश्किल होती है।

जो भी हो, लड़की या लड़का अगर हम समाज के पीछे भागेंगे तो हम लोग कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। लोग बोलने वाले तो बहुत रहेंगे, वो अच्छा बोलेंगे या बुरा। लेकिन हमें अपने लिए कुछ करना है, अपने पावँ पर खड़ा होना है, बिना शरम, तभी हम कुछ बन सकते हैं। कोई भी जॉब हो, प्लमिंग हो या इलेक्ट्रीशियन, या कोई और भी, लोगों का सोच के अगर हम रहेंगे, तो हमेशा लाइफ में हारेंगे, आगे कभी न बढ़ेंगे। 

आज मैं जो काम कर रही हूँ उसमें मुझे किसी का सपोर्ट नहीं था लेकिन मैं हारी नहीं। घर में बोलती थी कि बच्चों को स्पोर्ट्स की कोचिंग देने जा रही हूँ और फिर स्पोर्ट्स किट पहन के ही प्लमिंग का काम करने चली जाती थी। स्टार्टिंग सपोर्ट नहीं रहा। मुझे जिसने काम सिखाया, सुभाष, उसको जो काम मिलता था, वो मुझे भेजता कि तुम जाकर करो। वो है इसीलिये मैं आज यहाँ हूँ। मैं प्लंबिंग का सारा काम आज अकेले कर सकती हूँ सिर्फ़ उसके सपोर्ट की वजह से। 

और मेरे ग्राहकों ने कभी मुझ पर संदेह नहीं किया, कस्टमर्स से मुझे बहुत दुआ मिली। मेरे रिश्तेदारों से मुझे कभी आलोचना मिल जाती है लेकिन मात्र ग्राहक ने हमेशा मेरी तारीफ़ करी है कि जो भी कर रही हो अच्छा कर रही हो। 

हमें सोचना चाहिए कि ये नहीं मिला तो हम किसी और चीज़ के लिए कोशिश करेंगे

प्रश्न- कोई सलाह उन लड़कियों के लिए जो ऐसे पेशों में जाना चाहे जहां शायद महिला प्रतिनिधित्व कम हो? या कुछ ऐसा जो आपने अपने सफ़र से सीखा हो? 

क्रिस्टी- हम लोग लाइफ़ में जो करना चाहते हैं अगर वो नहीं मिलता है तो हम हार मान जाते हैं। हमें सोचना चाहिए कि ये नहीं मिला तो हम किसी और चीज़ के लिए कोशिश करेंगे। ये सोचना होगा कि जो हुआ वो अच्छे के लिए हुआ। शायद इससे और कुछ अच्छा मिलेगा। हारने से कुछ नहीं होता है।

जर्नी से मैंने यही सीखा कि सरकारी नौकरी के लिए मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। जब नौकरी नहीं मिली तो में बहुत रोयी थी। ये सोचकर कि इतना कर के भी मुझे नहीं मिला, लेकिन आज मुझे लगता है कि उस समय जो आँसू थे वो शायद थे ख़ुशी के थे ताकि में आज यहाँ तक पहुंच सकुं। 

अगर किसी भी लड़की को लगता है कि वो इस लाइन में आना चाहती है तो अगर वो चाहे तो मैं ज़रूर उन्हें सीखाना चाहूंगी। 

क्रिस्टी डीआस को आप यहाँ फ़ेसबुक पर खोज सकते है।

मूल चित्र – क्रिस्टी डीआस

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Mrigya Rai

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