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आजकल बहु को भी बेटी बना कर रखना पड़ता है…

सही कहा तुमने, बहुओं का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है और ना जाने, आने वाले कल में भी शायद एहसान ही होगा।

सही कहा तुमने, बहुओं का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है और ना जाने, आने वाले कल में भी शायद एहसान ही होगा।

“भाई, हम तो बहू को बेटी की तरह ही मानते हैं। तभी तो इतनी आजादी दे रखी है। और वैसे भी आजकल बहुओं को बेटी की तरह ही माना जाता है।”

“सही कहा तुमने। हमने भी हमारी बहू को सूट पहनने की परमिशन दी है और वो जॉब भी करती है।”

“हां यार, आजकल नया ट्रेंड चला है बहू को बेटी बनाकर रखने का। हमारे जमाने में तो हमारी सास टिपिकल इंडियन सास ही होती थी। पर जो हमने भोगा वो ये लोग क्यों भोगे?”

“पता है मेरे आने के बाद मेरी सास ने घूंघट प्रथा हटा दी थी। पर उसका एहसान जिंदगी भर जताया कि तुम्हें तो इतना अच्छा ससुराल मिला है। एक हम थे जो किस तरीके से रहते थे। पर ये बहुएं हैं कि समझती ही नहीं। हम कैसे हालातों में रहे हैं। हम कितनी मेहनत करते थे। पर इन्हें तो सब कुछ हाथ में चाहिए।”

“हां और क्या? मेरी सास भी मुझ पर बहुत एहसान जताती थी कि देखो हमने तुम्हें अपने पति के साथ घूमने की परमिशन तो दे दी, हमारी सास तो हमें जाने तक नहीं देती थी। अब बताओ यह भी कोई बात हुई? मेरे पति के साथ घूमना फिरना मेरा हक था कोई एहसान थोड़ी ना था।”

“पता है एक बार मेरे पति ने मुझे साड़ी गिफ्ट की थी। जब यह बात मेरी सास को पता चली तो उन्होने खूब हंगामा किया। आजकल के बच्चे शौक से अपनी पत्नी के लिए कुछ भी लाए हम तो कुछ कह नहीं सकते।”

“आजकल की बहुओं को तो वैसे भी बहुत सी चीजों में आजादी मिल चुकी है। अब पहले जैसी जिंदगी नहीं रही और न ही पहले जितनी जिम्मेदारियां भी। फिर भी ये बहुएं ‘टाइम नहीं है’ की रट लगाए रहती हैं।”

“हाँ, इन लोगों को तो इतना अच्छा ससुराल मिला है। हमारे जैसी सास मिल जाती तो शायद पता चल जाता कि सास क्या चीज होती है?”

सुधा जी और रमा जी आपस में बातें कर रही थी और अंदर किचन में खड़ी कंचन और सुमेधा ये बातें ध्यान से सुन रही थी कि कैसे दोनों अपनी ही तारीफ किए जा रही हैं।

कंचन रमा जी की बहू है, वहीं सुमेधा सुधा जी की बहू है। सुधा जी और रमा जी दोनों पड़ोसी है। फुर्सत के क्षणों में दोनों रमा जी के कमरे में बैठी गप्पे हांक रही हैं। वही उनकी बहुएं किचन में चाय नाश्ता लेने गई हैं और अपनी सास की बातें सुन रही हैं।

“बहू का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है”, कंचन के मुंह से अचानक निकली इस बात पर सुमेधा मुस्कुरा दी।

“सोचो मत भाभी। बहुओं का हक कल भी एहसान था, आज भी एहसान है और ना जाने, आने वाले कल में भी शायद एहसान ही होगा।”

“सही कहा।”

दोनों मुस्कुराते हुए चाय और नाश्ते की ट्रे लेकर रमा जी के कमरे की तरफ चल दी।

मूल चित्र: Sabhyata via Youtube(for representational purpose only)

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