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बहु की डिलीवरी तो नार्मल ही होगी…

“थोड़े दिन रहने देता, दिव्या कमजोर है अभी?” धीमे स्वर में शीला जी ने कहा तो कमल का धैर्य जवाब दे गया। आगे उसने जो कहा उसकी उम्मीद नहीं थी। 

“थोड़े दिन रहने देता, दिव्या कमजोर है अभी?” धीमे स्वर में शीला जी ने कहा तो कमल का धैर्य जवाब दे गया। आगे उसने जो कहा उसकी उम्मीद नहीं थी। 

दर्द से दिव्या बेहाल हो चुकी थी। सिस्टर, “डॉक्टर से कहिये मेरा ऑपरेशन कर दे अब मुझसे दर्द सहा नहीं जा रहा।” सूखे कांपते होठों से दिव्या ने सिस्टर से लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।

बिना कुछ ज़वाब दिये सिस्टर ड्रिप ठीक करती रही। सिस्टर को चुप देख दिव्या के आंसू निकल पड़े।असहाय सी बस तड़पती बिस्तर पे पड़ी रही।

“देखिये, आपकी बहु के नार्मल डिलीवरी के चांस कम लग रहे है। दिव्या कमजोर भी बहुत है और बच्चे की धड़कन भी कम हो रही है अब नार्मल डिलीवरी का रिस्क मैं नहीं ले सकती।” डॉक्टर साहिबा ने सारी परिस्थिति दिव्या की सासूमाँ को समझाते हुए कहा।

“एक बार और प्रयास कीजिये डॉक्टर साहिबा।”

जब शीला जी नहीं मानी तो मज़बूरी में डॉक्टर साहिबा वापस लेबर रूम में जा दिव्या को हौंसला बढ़ाने और नार्मल डिलीवरी के प्रयास में लग गई।

“माँ जब डॉक्टर साहिबा कह रही है तो ऑपरेशन करवा देते है ना।” दिव्या के जेठ अजय ने अपनी माँ को डरते डरते कहा।

“तू चुप कर, क्या मैं जानती नहीं इन डॉक्टरों को इतना बड़ा अस्पताल चलाने के लिये इन्हें बस मरीजों की तलाश रहती है। गर्भवती औरत आयी नहीं कि उनके घरवालों को डरा कर ऑपरेशन कर देती है और पैसे बनाती हैं। इनके सारे चोंचले मैं जानती हूँ। हमने भी नार्मल ही पैदा किया है बच्चों को और बड़ी बहु के भी नार्मल ही हुए है तो ये ऑपरेशन करवाने का नया चलन नहीं चलाना मुझे। फालतू के पैसे की बर्बादी और शरीर कमजोर होगा वो अलग।”

माँ को नाराज़ होता देख अजय चुप बैठ गया।

दिव्या, शीला जी की छोटी बहु थी जिसकी शादी शीला जी के छोटे बेटे कमल से हुई थी। दिव्या और कमल की शादी को अभी कम ही समय हुआ था। कमल की दिल्ली में नौकरी थी और उसका परिवार एक बहुत छोटे शहर में रहता था।

शादी के बाद कुछ महीने दिव्या अपने ससुराल रही और कमल भी आता जाता रहता था इस बीच दिव्या गर्भवती हो गई।

दिव्या की प्रेगनेंसी में कोई ख़ास तकलीफ नहीं थी लेकिन फिर भी दबी ज़बान में दिव्या के मम्मी ने दिव्या की सास को उसे डिलीवरी के लिये मायके भेजने को कहा जो कि दिव्या के ससुराल से बस आधे घंटे की दूरी पे था। लेकिन शीला जी ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया ये कह की, “आप निश्चिंत रहे आपकी बेटी है तो मेरी बहु भी है दिव्या को यहाँ कोई परेशानी नहीं होगी।”

ससुराल में बड़ी जेठानी, जेठ और सासूमाँ शीला जी थी। स्वाभाव से बहुत सख्त महिला जिनकी इच्छा के खिलाफ बहु बेटे जाने की सोच भी नहीं पाते थे। ससुराल में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी दिव्या को लेकिन सासूमाँ एक पल भी दिव्या को चैन से बैठने नहीं देती।

“चलती फिरती रहा करो और घर के काम भी करती रहा करो बहु नार्मल डिलीवरी आराम से होगी। हमने भी खुब काम किये थे तभी कितने आराम से दोनों बच्चे हो गए थे।” हर बार दिव्या को अपना उदाहरण देती रहती शीला जी।

शुरुआत में तो दिव्या काम कर लेती लेकिन बाद के महीनों में दिव्या से काम होता ही नहीं था। थकावट इतनी हो जाती की कुछ खाने की भी इच्छा नहीं होती लेकिन शीला जी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। समय पे आराम ना करने और खाने पीने का ध्यान ना रखने के कारण दिव्या कमजोर हो गई थी।

समय बीतता जा रहा था दर्द से बेहाल दिव्या बेहोश सी होने लगी थी। अजय को अपनी माँ का निर्णय बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन माँ के आगे किसी की चलती नहीं थी। वो तो अच्छा हुआ कि उसने कमल को फ़ोन कर सारी स्तिथि बता दी। कमल सुबह तक पहुँचने वाला था।

अस्पताल में डॉक्टर के बहुत प्रयास के बाद वैक्यूम के द्वारा दिव्या ने बच्ची को जन्म दिया।

“देखिये बच्ची की धड़कन बहुत कम है पेट में पानी ना होने के कारण बच्ची बिलकुल शिथिल पड़ चुकी है।”

“बताइये डॉक्टर साहिबा क्या करे अब?” डॉक्टर की बात सुन अजय बुरी तरह घबरा उठा।

“देखिये हमारे अस्पताल में बच्चों की नर्सरी नहीं है आप तुंरत बच्चों के अस्पताल में भर्ती करवाये।”

अजय ने बच्ची को हाथों में ले लिया। गुलाबी चेहरे वाली प्यारी सी गुड़िया को सीने से लगा भागा। तुंरत बच्ची को भर्ती कर लिया गया लेकिन वहाँ डॉक्टर ने साफ साफ कह दिया बच्ची के बचने की संभावना कम है।

वहाँ दिव्या की बेहोशी टूट नहीं रही थी और यहाँ नन्ही सी जान जिंदगी और मौत से लड़ रही थी। अगले दिन सुबह सुबह कमल अस्पताल पहुंच गया।

“भैया मेरी बच्ची कैसी है?”

“माफ़ कीजियेगा अजय जी बच्ची को हम नहीं बचा पाये।”

सारी औपचारिकता कर सफ़ेद कपड़ो में बच्ची कमल और अजय को दे दी गई। दोनों भाई गुलाबी चेहरे वाली नन्ही परी को सीने से लगा बिलख बिलख रो पड़े।

पुरे दो दिन बाद दिव्या की बेहोशी टूटी, “कमल आप कब आये? हमे क्या हुआ बेटा या बेटी देखा आपने हमारे बच्चे को? बोलो ना कमल कैसा दिखता है हमारा बच्चा? आप चुप क्यों है कमल कुछ बोलते क्यों नहीं?”

कमल ने कुछ ज़वाब नहीं दिया। कोई शब्द बचे भी नहीं थे जिनसे एक माँ के घाव पे मरहम वो लगा पता। बस दिव्या से लिपट बिलख पड़ा। एक पल में दिव्या सब समझ गई। दोनों पति पत्नी संतान खोने के दुःख में पागल से हो गए। वहीं अपराधिनी की भांति शीला जी कोने में खड़ी रो रही थी।

डॉक्टर ने साफ साफ कह दिया था, सारी गलती शीला जी की थी समय पे ऑपरेशन की इज़ाज़त ना दे और नार्मल डिलीवरी करवाने की ज़िद ने आज दिव्या और कमल के जिंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशी छीन ली थी।

दस दिनों बाद जब दिव्या थोड़ी संभली कमल ने दिव्या के साथ दिल्ली जाने का निर्णय सुना दिया।

“थोड़े दिन रहने देता, दिव्या कमजोर है अभी?” धीमे स्वर में शीला जी ने कहा तो कमल का अब तक का धैर्य ज़वाब दे गया।

“बस माँ, आज तुम्हें दिव्या की कमजोरी दिख रही है लेकिन लेबर रूम में तड़पती दिव्या का दर्द नहीं दिख रहा था। जब डॉक्टर ऑपरेशन के लिये बोल रही थी तो ये तुम्हें उनके पैसे कमाने के चोंचले लग रहे थे। आज आपके कारण हम दोनों ने अपनी बच्ची खो दी है।”

“मेरी आखरी सांस तक मेरी फूल सी बच्ची का चेहरा मेरी नजरों से नहीं हट पायेगा ना ही मैं आपको कभी माफ़ कर पाऊँगा। ज़रूरी नहीं माँ कि सब औरतों को नार्मल ही डिलीवरी हो, अगर समय पे दिव्या का ऑपरेशन हो गया होता तो आज मेरी गोदी में मेरी बिटिया खेलती रहती।”

इतना कह कमल दिव्या को ले निकल गया। पीछे अपनी नासमझी पे पछताती शीला जी रह गई। कुछ समय बाद दिव्या और कमल फिर से माता पिता बन गए लेकिन शीला जी की बेवकूफी से जो उन्होंने खोया था उसका दुःख उनके दिल से कभी नहीं गया।

मूल चित्र: Still from Resh/Seylon Tea ad via YouTube 

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