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उगता हुआ सूरज, बिखेरेगा फिर वही मुस्कान, इस लंबी रात का निश्चित ही होगा सवेरा, नाचेंगे गायेंगे परिवार दोस्त, होगा खुशियों का फ़िर से बसेरा।
यह दोस्ती का सफ़र कुछ थम सा गया, जो राहें थीं आसान, उन्हें ना जाने क्या हो गया?
चल रहे थे हम सब, बेफ़िक्र हाथों में लिये हाथ सब तरफ ख़ुशियाँ थीं, रहते थे हरपल साथ।
वह शामें अब रंगीन ना रहीं, उन हँसीं ठहाकों को क्या किसी की नज़र लग गयी?
मुश्किलों का यह दौर लाया हैं तन्हाई, चारों और है महामारी, ऐसी माहरूमियत है छाई।
उगता हुआ सूरज, बिखेरेगा फिर वही मुस्कान, ना रहेगा कोई तनहा,ना होगी किसी के चेहरे पे थकान।
इस लंबी रात का निश्चित ही होगा सवेरा, नाचेंगे गायेंगे परिवार दोस्त, होगा खुशियों का फ़िर से बसेरा।
यह थी कुछ चंद पक्तियाँ, यारों के नाम।
मूल चित्र: Caratelane via YouTube
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