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बिटिया मेरी!

कच्ची कचनार सी उँगलियों का स्पर्श ऐसा,तितलियों के परों की नाजुक छुवन के जैसा। बिटिया मेरी खूबसूरती कुदरत की जीत लेती है।

कच्ची कचनार सी उँगलियों का स्पर्श ऐसा,तितलियों के परों की नाजुक छुवन के जैसा। बिटिया मेरी खूबसूरती कुदरत की जीत लेती है।

जैसे स्याह रात का अर्क निचोड़ के,
रंग दिया हो जुल्फों का हर तार।
मानो गेहूं की सुनहरी बालियों से पीस के,
झक आटे को गूथ के बदन को दिया आकार।

चेहरे पर आँखों की पलकें यूँ उठती गिरती है,
जैसे बयार के संग नन्ही दूब लहराती है।
गुलाबी अधरों पे मुस्कान का चीरा ज़ब लगता है,
लाल अनार के दानो सा दंत सौंदर्य बिखरता है।

कच्ची कचनार सी उँगलियों का स्पर्श ऐसा,
तितलियों के परों की नाजुक छुवन के जैसा।
पंकज से पाँव में बंधी चांदी की पायल करती रुनझुन,
ठुमक के चले चाल, लगे फूलों पे भंवरों की गुनगुन।

किलकारी भरते भरते ऑंखें मीच लेती है।
बिटिया मेरी खूबसूरती कुदरत की जीत लेती है। 

 

मूल चित्र: Nivea India Via Youtube

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