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इन कठिन दिनों में भी मुझे मिली कुछ छोटी-छोटी ख़ुशियाँ

क्योंकि कहते है ना एक ग्रहणी के काम तो कभी ख़त्म नहीं हो। पर कहीं ना कहीं मन में परिवार के साथ सुकून के पल गुज़ारने की कमी खलती रहती थी।

क्योंकि कहते है ना एक ग्रहणी के काम तो कभी ख़त्म नहीं हो। पर कहीं ना कहीं मन में परिवार के साथ सुकून के पल गुज़ारने की कमी खलती रहती थी।

ख़ुशी शब्द सुनते ही सबसे पहले आँखों और ह्रदय में पति और बच्चों की छवि आती है। उनका नज़र के सामने रहना ही एक अदभुत ख़ुशी का एहसास देता है। 

कोरोना काल के पहले दुनिया भाग रही थी। बच्चे सुबह सुबह स्कूल चले जाते और पति ऑफ़िस और मैं घर के कामों में व्यस्त। 

समय का तो पता नहीं चलता था। क्योंकि कहते है ना एक ग्रहणी के काम तो कभी ख़त्म नहीं होते, घर का कोई ना कोई कोना उसे पुकाररहा होता है। कितना भी कर लो कम ही लगता है, एक ना एक काम रह ही जाता है। 

पर कहीं ना कहीं मन में परिवार के साथ सुकून के पल गुज़ारने की कमी खलती रहती थी। शाम को पति का ऑफ़िस से आना फिर चाय नाश्ता और फिर रात के खाने की तैयारी।बच्चों को भी जल्दी सुलाना होता क्योंकि सुबह स्कूल के लिए जल्दी जगाना भी होता था। इसलिए डिनर भी सब जल्दी करके सो जातेथे। सालों से यही दिनचर्या चली रही थी। 

पर फिर अचानक कोरोना का आगमन हुआ। और इसके डर से सबका घर से बाहर जाना भी बंद हो गया।अब स्कूल ऑफ़िस सब घर से ही करना है। परिवार के साथ वक्त मिलने लगा मन में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी की सारा दिन अकेले ना बिताकर सबके साथ बीतेगा।

अब सुबह से ही घर में बच्चों की किलकारियाँ और नादानियाँ खनकती है, और पति देव की फ़रमाइशें। कभी-कभी काम करते करते वो किचन में भी चक्कर लगा जाते है।जिसका एहसास बड़ा ही रोमांचक होता है

अगर देखा जाए तो वर्षों जो कमी महसूस हो रही थी भगवान ने उसे आज पूरा कर दिया। बस यही है मेरी ख़ुशी। 

 

मूल चित्र: Amul Taste Of India Via Youtube

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