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माँ, आप फिर वही साड़ी पहन कर आ गयीं…

"माँ सही कहती हैं कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए। और तुम बुआ जी की बातों पर ध्यान मत दो।" साहिल की इस बात से सब सहमत थे। 

“माँ सही कहती हैं कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए। और तुम बुआ जी की बातों पर ध्यान मत दो।” साहिल की इस बात से सब सहमत थे। 

“उफ़्फ़! माँ आप ये साड़ी पहन कर क्यों आ गईं?” वर्षा ने माँ को बोला।

“क्यों? क्या हो गया? क्या इस साड़ी में कुछ खराबी है या ये मुझ पर जँचता नहीं?”

“नहीं माँ,  ऐसी कोई बात नहीं, ये साड़ी तो आप पर बहुत फबती है, पर…”

“पर… क्या बेटा?”

“वो… माँ, बुआ सास बोल रही थीं कि जब देखो इसकी माँ एक ही साड़ी पहन कर आ जाती है।”

“ओह! तो ये बात है। लोगों को बोलने दें और फिर तू तो जानती ही है कि हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हर फंक्शन के लिए नए कपड़े खरीदती फिरूं। तेरे पिताजी की पेंशन से घर की रोज़मर्रा की ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं, फिर भी हम कम पैसों में भी खुश हैं क्यूंकि हम जानते हैं कि चादर जितनी लम्बी हो उतना ही पैर फैलाना चाहिए। फिर हमें कमी किस बात की? तुम दोनों बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाई और अच्छी जगह शादी कर दी। हम तो अपने जीवन से तृप्त हैं।”

“हाँ! तू सही कह रही है माँ, पर माँ…”

“माँ, बिल्कुल सही कह रही हैं”, वर्षा का पति साहिल कमरे में दाखिल होते हुए बोला।

“पर…. वो बुआ सास जी मज़ाक़ बना रही थीं माँ का।”

“वर्षा!  शायद तुम्हें पता नहीं, बुआ जी कि इस फ़िज़ूलख़र्ची की आदत की वजह से उन्हें एक समय काफ़ी तंगहाली का सामना करना पड़ा था। उनके पति तो क़र्ज़ में डूब गए थे और घर तक बिकने की नौबत आ गई थी। वो तो पापा ने उनकी मदद की और उन्हें कर्ज़ के दलदल से बाहर निकाला। माँ सही कहती हैं कि जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाना चाहिए। और तुम बुआ जी की बातों पर ध्यान मत दो।”

“बात तो आप सही कह रहें”, वर्षा बोल उठी।

“वैसे माँ आप इस साड़ी में बिल्कुल  वैजयंतीमाला लगती हैं”,  साहिल ने माहौल को हल्का करते हुए कहा।

वर्षा, उसकी माँ और साहिल तीनों मुस्कुरा उठे।

मूल चित्र : Still from short film #menopauseawareness/Milan Thakar, YouTube

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