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मैं अपना और अपने बच्चे का ख्याल रखना अच्छे से जानती हूँ…

आजकल की बहुओं के मजे हैं! ऑपरेशन से बच्चा पैदा करो, दिन भर बच्चे को डायपर में रखो, और खुद हीरोइन बने थोड़ा सा काम करते घर में घूमते रहो...

आजकल की बहुओं के मजे हैं! ऑपरेशन से बच्चा पैदा करो, दिन भर बच्चे को डायपर में रखो, और खुद हीरोइन बने थोड़ा सा काम करते घर में घूमते रहो…

रमा की शादी अमन से हुए अभी सिर्फ एक साल ही हुआ था। रमा शादी के तुरंत बाद ही गर्भवती भी हो गयी और शादी के एक साल पूरा होने के साथ साथ उसको तीन महीने का बेटा भी था।

रमा के ससुराल में सास कमला जी ससुर महेशजी और देवर अक्षय थे। घर की बड़ी बहू होने के कारण रमा के कंधों पर ही घर की सारी जिम्मेदारी थी। सास-ससुर का व्यवहार इतना कड़क कि बिना उनकी इजाजत के एक पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन रमा चुपचाप वही करती जो उसको सही लगता, क्योंकि उसको पता था कि बोलकर कोई फायदा नहीं। सिवाय झगड़े के और कोई समस्या का समाधान नहीं होगा।

कमला जी सास का पूरा रुतबा चलाती। बात-बात में रमा को ताने देती कि “हमने तो इतना किया सास का, हमारी सास जो जब जैसा कहती वैसा ही हम करते…”

रमा को अपने बेटे की परवरिश से लेकर घर के हर एक काम के लिए कमला जी चार बात सुनाती। और फोन पर भी सभी रिश्तेदारों से शिकायत करने में कभी ना चूकती।

एक दिन कुछ दिनों के लिए साथ रहने कमला जी की बड़ी बहन सुमन जी आयी। दोनो बहनों के व्यवहार में कोई नहीं अंतर था। एक से बढ़कर एक! अब कमला जी के साथ मिलकर सुमन जी भी रमा को अपने इशारों पर नचाने की कोशिश करती।

सुमन जी जब से आई थी वो हर बात में रमा में खोट निकालने की कोशिश करती। रमा भी अपना सब काम चुपचाप करती। एक दिन दोपहर में सुमन जी ने कमला जी से कहा, “कमला क्या ये रमा कम बोलती है या फिर हमें देखकर ही इसका मुँह बना रहता है? सारे काम अपने हिसाब से करके दोपहर में सोने चली जाती है, इतना भी संस्कार इसके माता-पिता ने नहीं सिखाया कि कभी सास के पैरों को ही हाथ लगाकर दबा दे?”

“क्या बताऊँ दीदी? तुम ही देख लो कैसी बहू मिली मुझे? मेरी तो किस्मत ही फूट गयी। खुद तो खुद मेरे अमन को भी अपने बस में कर रखा है। अब तो वो भी इसकी ही सुनता है। एक हम थे दिन भर सास से डरते रहते उनकी ही जी हुजूरी करते रहते। मजाल जो उनके बिना इजाजत के एक पत्ता हिल जाए? कभी बच्चों को पालने में हमारे पतियों ने हमारी मदद ना की। लेकिन ये तो हद कर देती है, मालिश से लेकर डायपर तक मेरे बेटे से चेंज कराती है। मैं तो बोल बोल कर थक गयी कि अच्छा नही लगता मर्दों का ये सब करना। लेकिन मेरी सुने कौन?”

सुमन जी बोली, “इसमें उसकी गलती नहीं है क्योंकि बहु क्या जाने बच्चा होने दर्द? इसलिए बच्चों की परवरिश में भी कोई लगाव नहीं उसका। आजकल की बहुओं के मजे हैं! ऑपरेशन से बच्चा पैदा करो , दिनभर  बच्चें को डायपर पहनाकर रखो, और खुद हीरोइन बने पूरे घर में और चारों तरफ घूमती रहो या सारा दिन मोबाइल में लगी रहो। जैसे बच्चा ना बड़ा कर रही हो, कोई बोझ ढो रही हो। खैर तू चिंता मत कर एक दिन इनका भी बुढ़ापा आएगा, तब बच्चे भी इन लोगों को ऐसे ही रखेंगे, बिना लगाव के, जैसे बोझ ढो रहे हों।”

“ये बात सही कही आपने दीदी, हमारे बच्चें तो हमारे आँचल से ही अपना मुँह हाथ पोछ लेते थे। हम तो दिन भर बच्चों के लंगोट साफ करने और घर के कामों में ही निकाल देते थे।”

दरवाजे पर खड़ी रमा ये सब बातें सुनकर गुस्से से भर गई। रमा को सामने खड़ा देखकर दोनों बहनों का मुँह बन गया। वो लोग कुछ कहती उससे पहले ही रमा ने कहा, “क्या बात है मौसी जी! बड़ी आसानी से दोनों बहने खुद ही खुद की तारीफ किये जा रही हैं। लेकिन आप दोनों को बता दूँ, कि मैं बहुत अच्छे से  जानती हूँ कि मेरे बेटे के लिए क्या सही है क्या गलत?

मैं अपने बेटे को आप दोनों के सलाह और मशवरे से ज्यादा समझती हूँ। मुझे नहीं लगता कि खुद सज संवर कर रहने और बच्चे को डायपर पहनाने में कोई गुनाह है या इससे कोई बहू बुरी मां बन गयी। उल्टा डायपर पहनाने से बच्चा रात में कभी गीले में नहीं सोता, ना ही काम के बीच मे मुझे बार-बार उसका पेंट बदलना होता है। आप दोनों की सास ने बच्चों को मालिश करने से लेकर खुद के पास सुलाने तक का काम किया है, तब जाकर आप लोग रसोई का काम कर पाती थीं। लेकिन मैं बच्चे से लेकर घर के सारे काम खुद करती हूं।

लेकिन आप लोगो को तो कोई मतलब नहीं। आप को कोई समझौता नहीं करना ना अपने समय से?  ना ही अपनी नींद से? मालिश आप करती नहीं कभी, क्यूंकि आपके अनुसार वो आपको करनी आती नहीं।

जब माँ खुद स्वस्थ रहेगी तभी तो अपने बच्चे को भी स्वस्थ रखेगी। अन्यथा सिवाय नाराजगी, गुस्सा और मारपीट के अलावा कुछ नहीं कर सकती। एक खुशहाल माँ ही खुशहाल परिवार और बच्चा रख सकती है। और जब बच्चा पति पत्नी के संयोग से होता है तो परवरिश करना दोनों का ही काम है, किसी एक का नहीं।

और आखिरी बात, बच्चा चाहे नार्मल डिलीवरी से हो या ऑपरेशन से, एक माँ का अपने बच्चे के लिए डर, दर्द और प्यार, विश्वास सब समान ही होता है।”

इतना कहकर रमा वहाँ  से चली गयी।

मूल चित्र : Still from Short Film Methi Ke Laddu, YouTube

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