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ससुराल घर जैसा थोड़ा ही हो सकता है…है ना?

उसके हिस्से में आती है गंदे बर्तनों से भरी रसोई, गंदे पानी से बजबजाता सिंक और घर के पुरुषों द्वारा खाने के बाद झूठन से पटी मेज।

उसके हिस्से में आती है गंदे बर्तनों से भरी रसोई, गंदे पानी से बजबजाता सिंक और घर के पुरुषों द्वारा खाने के बाद झूठन से पटी मेज।

मैंने बचपन से ही अपने घर और आसपास की औरतों को हमेशा बस काम करते हुए देखा है। जब मैं जागती तब भी वे काम कर रही होती थीं, जब मैं सोती तब भी वे काम कर रही होती थीं।

घर के आदमियों के लिए जो दिन ख़ास और मनोरंजक होता, मसलन कोई त्योहार का दिन या फिर मेहमानों के आने का दिन, वह दिन घर की औरतों के लिए और ज्यादा मुसीबत भरा होता।

जहाँ घर के आदमी त्योहार का आनंद ले रहे होते या मेहमानों के साथ गपशप का सुख ले रहे होते, वहीं घर की औरतें रसोई में गर्मी-सर्दी को दरकिनार करते हुए लजीज़ व्यंजन बनाने के लिए जूझ रही होतीं।

‘द ग्रेट इंडियन किचन’ फिल्म देखकर आँखों के सामने यह दृश्य साकार हो उठा

फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन‘ की नायिका हर उस भारतीय स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है जो शादी के बाद ससुराल की उम्मीदों के साथ ताल-मेल बैठाने में अपना जीवन झोंक देती है। इस फिल्म की नायिका भी शादी करके ऐसे घर में आती है जो पारंपरिक और पितृसत्तात्मक सोच रखता है। जहाँ अच्छी बहू होने का मतलब रसोई के कामों में पारंगत होना और अपनी मर्ज़ी न चलाकर घर के पुरुषों को सुनना है।

हर दिन एक जैसा, नीरस और थका देने वाला

नायिका पढ़ी-लिखी है, नृत्यांगना है, महत्वकांक्षी है परंतु विडंबना देखिए कि उसके हिस्से में आती है गंदे बर्तनों से भरी रसोई, गंदे पानी से बजबजाता सिंक, सिंक के पाइप से रिसता गंदा पानी और घर के पुरुषों द्वारा खाने के बाद झूठन से पटी मेज। उसका हर दिन इन्हीं तानों-बानों में उलझ कर रह जाता है। हर दिन एक जैसा, नीरस और थका देने वाला!

वह अपने पति से सिंक के रिसते पानी को ठीक करवाने के लिए कहती है, परंतु वह हर दिन भूल जाता है। सिंक के रिसते पानी से निबटने में नायिका को घिन आती है, उबकाई आती है। परंतु उसके पति लिए यह कंसर्न की चीज है ही नहीं।

कम से कम आप बाहर टेबल मैनर फॉलो करते हैं

इसी तरह से घर के पुरुष खाना खाकर वेस्ट मेज पर ही बिखरा हुआ छोड़ देते हैं। वे नहीं सोचते कि साफ़ करने वाले को इससे कितनी कोफ्त होगी। जब नायिका अपने पति को रेस्टोरेंट में खाना खाते वक्त चिकन से बची हुई हड्डियाँ और सांभर से निकली ड्रम-स्टिक को मेज पर न रखकर तरीके से अलग प्लेट में रखते हुए देखती है तो कहती है कि कम से कम आप बाहर टेबल मैनर फॉलो करते हैं।

वह उसी नर्क को भोगती रहे और पुरुष का जीवन आराम से चलता रहे

यह बात पति को बहुत नागवार गुजरती है। वह कहता है अपने घर में मैं जो चाहूँ वो कर सकता हूँ। दरअसल इसी बात को समझने की जरूरत है जिस हक से पुरुष अपने घर में हक की बात कर रहा है, नायिका को वैसा हक उस घर पर कभी महसूस ही नहीं हुआ। जो वह चाहती थी उसे कभी नहीं करने दिया गया। वह नौकरी करना चाहती थी परंतु उसे बता दिया जाता है कि घर की औरतों का नौकरी करना अशुभ है। ताकि वह उसी नर्क को भोगती रहे और पुरुष का जीवन आराम से चलता रहे।

नायिका से कई बार चीजें सीधे-सीधे नहीं बल्कि नैतिक दबाव बनाकर करवाई जाती हैं। मसलन उससे कहा जाता है की कूकर से ज्यादा स्वादिष्ट चावल चूल्हे पर उबालकर बनते हैं। मिक्सी के बजाए हाथ से पीसी गई चटनी ज्यादा लाजवाब होती है। पुरुष के स्वाद के लिए नायिका को ये सब मजबूरन करना पड़ता है।

समझौता तो करना ही पड़ता है, ससुराल घर जैसा थोड़ा ही हो सकता है

शायद यही कारण है कि मैंने जितनी भी औरतों से शादी के बाद के अनुभव के बारे में पूछा सबने मायूस और दबे स्वर में यही कहा ‘समझौता तो करना ही पड़ता है, ससुराल घर जैसा थोड़ा ही हो सकता है’।

यही स्त्री के जीवन की विडंबना है कि ससुराल घर जैसा नहीं हो सकता और घर(मायका) शादी के बाद अपना घर नहीं रहता। ऐसी स्थिति में उसका जीवन ही समझौता बनकर रह जाता है। खुद को सबकी उम्मीदों के अनुसार ढालते-ढालते स्त्री कब खुद को ही खो देती है, उसे भी पता नहीं चलता।

पीरियड्स को अपवित्र मानने की मान्यता

फिल्म में समाज द्वारा पीरियड्स को अपवित्र मानने की मान्यता को भी दर्शाया गया है। नायिका को इस मान्यता को शिकार होना पड़ता है। उसे पीरियड्स के दिनों में एक अलग कमरे में रहना पड़ता है और उसे अछूत समझा जाता है। वह घर की किसी वस्तु को नहीं छू सकती। पीरियड्स के दिनों में जहाँ महिलाओं को और ज्यादा प्यार और केयर की ज़रूरत महसूस होती है वहां परिवार का ऐसा व्यवहार उसकी मनःस्थिति पर कितना बुरा प्रभाव डालता होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

हर भारतीय स्त्री इतना साहस नहीं बटोर पाती

फिल्म की नायिका अंत में साहसी कदम उठाती है। वह उस नर्क समान जीवन को छोड़कर आ जाती है और अपने पैरों पर खड़ी होती है। वह डांस टीचर बन जाती है। गौरतलब है कि ऐसी समस्या से जूझने वाली हर भारतीय स्त्री इतना साहस नहीं बटोर पाती और तमाम उम्र उसी नर्क को भोगती रहती है। न वह शादी के बाद के जीवन को पूरी तरह से स्वीकार कर पाती है और न ही छोड़ पाती है।

यह फिल्म पुरुषों को ज़रूर देखनी चाहिए, यह जानने के लिए कि उनके कंफर्ट के पीछे किसी दूसरे व्यक्ति का कितना अनकंफर्ट छुपा हुआ है। यह जानने के लिए जिन कामों को वे आसान समझते हैं वास्तव में वे कितने चुनौतीपूर्ण हैं।

मूल चित्र : Still from The Great Indian Kitchen, YouTube 

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