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सब मिल जाएंगे लेकिन तेरे जैसा कोई न मिलेगा…

जी कड़ा करते हुए जया ने प्रिया से बात करनी चाही तो प्रिया ने साफ इंकार कर दिया, जैसा जया को पूर्वानुमान था।

जी कड़ा करते हुए जया ने प्रिया से बात करनी चाही तो प्रिया ने साफ इंकार कर दिया, जैसा जया को पूर्वानुमान था।

पिछले कई दिनों से जया परेशान थी और उसकी परेशानी का सबब थी उसकी बेस्ट फ्रेंड प्रिया, अंतिम बार जब उससे बात हुई थी तो वो बहुत परेशान थी अपनी माँ की तबीयत को लेकर।

जया अच्छी तरह जानती थी कि प्रिया अपने मम्मी पापा से कितनी जुड़ी हुई थी, शादी के लगभग पंद्रह साल बाद भी, दो बच्चों की माँ बनने के बाद भी, दोनों सहेलियों में जब बात होती तो हर दूसरी बात में मम्मी या पापा रहने ही रहने थे।

जया कहती भी, “यार तेरे पति भी ग्रेट है और अंकल आंटी भी, वरना शादी के बाद कहां निभ पाती है इतनी, प्यार तो सबमें होता है पर समय,  परिस्थिति और दूरियां बहुत कुछ बदल डालतीं है।”

“वाह जी वाह, सब ग्रेट है और तेरी सहेली कुछ नहीं?”

कहकर प्रिया ठहाके लगाती और अगले ही पल भावुक होकर कहती, “यार मैं अपने मम्मी पापा के बिना तो अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकती, मैंने उनके संघर्षों को पल पल जीया है बहन।”

पर लगभग डेढ़ साल पहले प्रिया के पापा हृदयाघात से चल बसे। बहुत बुरा तो हुआ पर एक अच्छी बात ये हुई कि प्रिया उस वक्त उनके साथ थी। उसे संभालना बहुत मुश्किल था पर उसकी माँ ने खुद को मजबूत करते हुए प्रिया को संभाल लिया। जैसे तैसे करके माँ को देखकर प्रिया खुश रहने की कोशिश भी करने लगी थी। अभी थोड़े ही दिन पहले तो पुरानी प्रिया वापस आई थी।

पर पिछले दिनों जब उससे बात हुई तो बेहद उदास थी, भीगी आवाज में बस इतना कहा, “जया, माँ एडमिट है पिछले एक महीने से, इलाज तो चल रहा है पर कुछ समझ नहीं आ रहा?”

अंदर तक सिहर उठी जया। भगवान ना करें कुछ उन्नीस बीस हो गया तो ये जीयेगी कैसे? सब ठीक होने की सांत्वना देकर जया ने फोन तो रख दिया पर वो सच में डर गई थी।

उस बात को पंद्रह दिन हो गए पर ना कोई फोन ना मैसेज ना और कुछ। जया की हालत जल बिन मछली सी हो गई थी, पर हिम्मत भी ना हो रही थी फोन लगाने की। इसी उहापोह में चार पाँच दिन और निकल गए।

हार कर फोन लगाया तो फोन के स्विच ऑफ बताते ही उसका कलेजा मुंह में आ गया, पर अब वो करे भी तो क्या? सोशल मीडिया पर भी प्रिया अभी कहीं उपलब्ध नहीं थी। शायद सभी एकाउंट्स से लॉग आउट कर लिया था। जाहिर सी बात है सभी दु:ख जताने के लिए फोन कर रहे होंगे, तो ऐसा किया होगा।

और वो तो शुरू से जानती है प्रिया को, उसे सहानुभूति बिल्कुल पसंद नहीं। वो कभी कमजोर नहीं दिखना चाहती किसी के भी आगे।

जया बार बार प्रिया, उसके पति और दोनों बच्चों का सोच सोच कर विह्वल होती पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था वो करे भी तो क्या करे। उस पर से महामारी का कठिन दौर भी अपनी पराकाष्ठा पर था, जाने का सोचती तो अपने पति और बच्चों के लिए भय सताता।

जाने किस हालत में होगी उसकी दोस्त, सोचते सोचते उसे ध्यान आया कि सोशल मीडिया पर प्रिया के कई रिश्तेदार भी तो हैं। शायद उनसे प्रिया का कोई नंबर, उसके पति का नंबर या फिर उसका हाल समाचार तो मिल ही सकता है।

हालांकि प्रिया ने अपने दोस्तों को हाइड कर रखा था, पर कहते हैं ना जहां चाह वहां राह, उसके फोटो की लाइक्स में से उसने प्रिया की बुआ को ढूंढ निकाला जिनसे वो मिली भी थी। तुरंत मैसेज कर प्रिया का हाल पूछा और उसका दूसरा नंबर मांगा।

दो दिन बाद बुआ जी का जवाब आया, जैसा उसे लगा था, प्रिया की बुरी हालत की जानकारी देते हुए उन्होंने उसके पति का नंबर भेजा था। तुरंत फोन लगाया। प्रिया के पति भी काफी चिंतित थे।  उन्होंने बताया कि पता नहीं प्रिया की हालत ना सुधरी तो कहीं इसे अस्पताल में भर्ती ना करना पड़े और कोविड के इस कठिन काल में अस्पताल का हाल तो सबको पता है। कोई रिश्तेदार आ नहीं सकता, और ना ही वो कहीं लेकर जा सकते प्रिया को, क्या करें उनकी समझ से परे है।

जी कड़ा करते हुए जया ने प्रिया से बात करनी चाही तो प्रिया ने साफ इंकार कर दिया, जैसा जया को पूर्वानुमान था, पर बिल्कुल बुरा ना मानते हुए उसके पति से लाउडस्पीकर ऑन कराकर पंद्रह मिनट तक बोलती रही समझाती रही।

उसने कहा, “देख प्रिया, मैं जानती हूँ दुनिया की कोई भी चीज या कोई भी शब्द ना तेरा दु:ख कम कर सकते हैं, ना जो हो गया उसे बदल सकते हैं। तूने खाना पीना छोड़ रखा है, दिन रात रोती है और रात रात भर सोती नहीं।”

“जानती हूं अपने आप को खत्म कर लेना चाहती है, पर कभी सोचा है कि आज जो हालत तेरी है, वहीं कल को तेरे बच्चों की भी तो होगी? तुझे तो अंकल आंटी सब दे के गए हैं,पर बहन तेरे बच्चों को तो अभी ठीक से खड़ा होना भी नहीं आया। कैसा प्यार है तेरा यार उनके लिए मरकर तू उनके प्यार को खराब करना चाहती है> उनके लिए उठ, जी और उनके सपनों को पूरा कर, उनके जैसा बनने की कोशिश कर, उन्होंने तुझे जितना प्यार दिया, वो अपने बच्चों को दे।”

“अंकल आंटी के बीच कितना प्यार था, तभी तो शायद आंटी ज्यादा दिन रह नहीं पाईं उनके बगैर।  उस प्यार से सीख ले बहन। अपने पति की ओर देख। आज तेरा शादी के बाद जो प्यार निभा ना, उनकी ही वजह से, अभी भी वो हर पल तेरे साथ खड़े हैं। तू भी तो उनका मान रख। देख मैं तो तेरी तरह ना बोलने जानती हूं ना मेरी सोच तेरी तरह विस्तृत है, पर ये दुनिया है बहन, ना चाहते हुए भी, मन मार कर भी शरीर चलाना पड़ता है, जीना पड़ता है, अपने अपनों के लिए। उठ जा मेरी दोस्त।”

फिर तो रोज का ये सिलसिला चला, फिर जया प्रिया के पति के अकाउंट पर उसे चिट्ठियां भेजकर समझाती, दस दिन के बाद जया बोली, “देख प्रिया बहुत हुआ, अब तू अगर मुझसे बात नहीं करेगी ना तो मैं अपना घर बार, पति बच्चे सबको छोड़कर तेरे पास आ जाऊंगी। याद है ना मेरी जिद और गुस्सा तुझे, या मेरे साथ साथ वो सब भी भूल गई…”

कहते कहते जया सिसक उठी तो प्रिया के सब्र का बांध भी टूट गया। प्रिया खुब रोई और अपने मन का सारा गुबार निकाला। फिर दोनों रोज बातें करतीं।

आठ दिन बाद फोन प्रिया के पति ने उठाया, पहले से काफी खुश लगे, और बताया भी कि प्रिया पहले से बेहतर है, थोड़ा बहुत घर और बच्चों की भी देखभाल करने लगी है, अब शायद हालात सुधरें।

ये सब सुनकर जया को भी काफी अच्छा लगा, उसने प्रिया के पति को सलाह दी, “प्रिया को पेंटिंग करना, कशीदाकारी करना, अच्छी किताबें पढ़ना और डायरी लिखना काफी पसंद था, आप ये सारी चीजें लाकर उसे दें तो शायद उसका दिल और बहले।”

जया की बातचीत और सलाहों से प्रिया में उत्तरोत्तर सुधार होने लगा।

एक दिन प्रिया ने फोन करके कहा, “जया,सच कहूं तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरा भी समय आ गया है, किसी पेड़ की जड़ या किसी मकान की नींव ही ना रहे तो भला उसका क्या हो। अपने बच्चों के मासूम चेहरे और पति की मायूसी भी मुझमें जीने के जज्बे को नहीं जगा पा रही थी, मेरा दु:ख और मेरा दु:ख बस यही भावना चरम पर थी। लगता अब मेरा ये दु:ख ऊपर जाकर ही खत्म होगा, पर तूने जो पहले दिन बात कही, उसने मेरी सोच की दिशा ही बदल दी।”

“मैं बिल्कुल नहीं चाहुंगी कि मेरे बच्चे या पति उस मनोदशा से गुजरें जिससे मैं अभी गुजर रही हूं। एक दिन जाना तो तय है, पर पहले अपनी जिम्मेदारियां तो निभा लूँ, उन्हें अपने बिना जीने लायक तो बना दूँ…पर…”

“पर…क्या प्रिया?” जया ने पूछा।

“सब कुछ तो दे दूँगी, पर तेरे जैसा यार कहाँ से दे पाऊंगी? तूने ना केवल दोस्ती बल्कि इंसानियत का फर्ज भी बखूबी निभाया, तू ना होती तो…”

“हमारे बच्चे हैं ना, हमारे जैसे दोस्त भी ढूंढ ही लेंगे और ना कुछ हुआ तो अपने ही बच्चों की दोस्ती करा देंगे। दोस्ती की लिगेसी भी तो पास ऑन होनी चाहिए ना?” कहते कहते जया हंस पड़ी। एक बड़ी सी मुस्कराहट प्रिया के चेहरे पर भी थी।

मूल चित्र: Tanishq via Youtube 

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