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मैं तुम्हारे से शादी करने के लिए तैयार हूँ…

एक बेटे को खा गई। वह काफी नहीं था, जो राजीव के पीछे पड़ गई? मालूम है समाज और बिरादरी वाले तुम दोनों के बारे में क्‍या-क्‍या बातें करते हैं?

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एक बेटे को खा गई। वह काफी नहीं था, जो राजीव के पीछे पड़ गई? मालूम है समाज और बिरादरी वाले तुम दोनों के बारे में क्‍या-क्‍या बातें करते हैं?

अनुपमा भाग 3  में अब तक आपने पढ़ा :

इतनी सब परेशानियों को झेलने के पश्‍चात भी पता नहीं अनुपमा में कुछ तो ऐसी बात थी कि वो अपने अपनत्‍व की भावना से सबका दिल लुभा लेती, चाहे घर हो या बाहर। सिर्फ उसके सास-ससुर ही उसे उनके बेटे अशोक की मृत्‍यु के पश्‍चात सहायता करने के बजाए उसको परेशान करने में लगे रहते थे।

अब आगे :

जब अनुपमा के पतिदेव शहीद हुए, तो देवर राजीव कॉलेज के अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारी करते-करते नौकरी के लिए आवेदन भी भर रहा था। साथ ही वह अपनी भाभी का पूरा साथ दे रहा था। पर इन्‍हीं सब ऊहापोह में न जाने कब उसे अपनी भाभी से ही प्‍यार हो गया।

राजीव दिन-ब-दिन सोचने लगा कि उसकी कहीं तो नई नौकरी लगे, तो अनुपमा से विवाह कर उसे यहॉं के माहौल से निकालकर अपने साथ ले जाए, ताकि अनुपमा को सहयोग भी हो जाएगा और कंवल की परवरिश भी यथावत हो जाएगी ।

वह कई बार माता-पिता को समझाने की कोशिश भी की उसने, “भैया के साथ जो भी हुआ, उसके लिए भाभी को दोषी ठहराना ठीक नहीं। उन्‍हें इस स्थिति से उबारने के लिए हम सबको उनका साथ देना होगा। भाभी को वर्तमान जिंदगी जीने के लिए एक नवीन पहल की शुरुआत हम सबको घर से ही तो करनी होगी न मॉं ?

इन्‍हीं सब कशमकश में जिंदगी की नाव धीमी गति से ही सही, पर बह तो रही थी। न जाने उस दिन अनुपमा की सास को अचानक क्‍या हुआ? उसके दूर के बड़े ताऊजी और ताईजी से कुछ चर्चा कर रहीं थी और अनुपमा को ताने मारकर बोलने लगी, “एक बेटे को खा गई। वह काफी नहीं था, जो राजीव के पीछे पड़ गई? मालूम भी है तुम्‍हें, समाज और बिरादरी वाले तुम दोनों के बारे में क्‍या-क्‍या बातें करते हैं?”

ऐसे बरस पड़ीं मानो भूचाल आ गया हो। और तो और राजीव के मन में क्‍या चल रहा है, यह जाने बिना ही बोलने लगीं कि तू क्‍या अनुपमा के सहयोग के पीछे पड़ा रहता है हमेशा? कंवल को छोड़े वो झुलाघर और नौकरी जाए आटोरिक्‍शा से। नहीं तो नहीं जाएगी। घर ही की गाड़ी से छोड़ना इतना जरूरी है क्‍या? महारानी है घर की, जो रोज बग्‍गी चाहिए? आखिर जात बिरादरी वाले क्‍या कहेंगे? तुझे अपनी जिंदगी जीनी नहीं है क्‍या? और ब्‍याह नहीं रचाएगा क्‍या? कब तक यूँ ही कँवारा बैठा रहेगा तू?”

 ससुर थे कि सब सुनते रहे जबकि वे अनुपमा की हालत से वाकिब थे। इतनी सब उलाहनाएं सुनने के बाद दुःख के सागर में डूबी अनुपमा कंवल को लेकर मायके चली गई और राजीव हक्‍का-बक्‍का होकर अवाक खड़ा रह गया।

कई बार कारण सामने दिखते हुए भी निरपराधी को हमेशा ही दोषी ठहराया जाना कहाँ तक सही है? यही तो हमारे समाज की विडंबना है। वैसे तो सच का साथ देने की कोशिश करने वाले कुछ विरले ही होते हैं और जो सच का साथ देते भी हैं तो उनके ऊपर भी अनावश्यक रूप से इल्जामात की लड़ी सी लग जाती है,जिससे निकलने वाला धुआं पटाखों के धुएं से भी खतरनाक होता है। कुछ ऐसा ही हो रहा था।

इसके बाद भी अनुपमा ने मायके से नौकरी पर जाना जारी रखा ताकि उसकी मानसिक स्थिति मजबूत रहे और वह कंवल की देख-रेख कर सके। उसे तो पता भी नहीं था कि देवर राजीव उसके बारे में क्‍या महसूस करता है?

अचानक एक दिन राजीव को नौकरी के लिए नियुक्ति-पत्र मिल गया। वह फटाफट बिना समय गंवाए, अपने मन की बात अनुपमा से कहने उसके घर पहुँच गया।

“मैं आपसे प्‍यार करने लगा हूँ। शादी करना चाहता हूँ आपसे। कंवल की परवरिश हम दोनों मिलकर अच्‍छे से करेंगे, ताकि भैया और आपका साथ देखा सपना पूरा हो सके। मैं आपको ऐसी परेशानी में छोड़कर नहीं जा सकता। अब अंतिम निर्णय आपको लेना है।”

इतना सुन अनुपमा बोली,  “मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो। तुम मुझे जानते हो, समझते हो और तुम्हें कंवल की परवरिश की चिंता भी है। तुम्हें पता है ना लोग हमारे बारे में बातें करते हैं? तुम अपनी जिंदगी क्‍यों मेरे लिए दाव पर लगा रहे हो?”

सुनते ही राजीव ने कहा, “ऐसा नहीं है। मैं सच में दिल से मोहब्‍बत करने लगा हूँ आपसे। अब रजामंदी आपकी है। अब बोलो इस नवीन पहल की मुहिम में कदम से कदम मिलाकर साथ दोगी न मेरा?”

अनुपमा ने कहा, “मैं जरूर साथ दूँगी जिंदगी भर तुम्‍हारा, पर इस समाज और बिरादरी वालों का क्‍या करें? वे तो मुझे ही भला-बुरा कहेंगे न?”

“ये कौन से खोखले समाज की बात कर रही हैं आप? सबसे पहली बात ये कि क्या आप इस रिश्‍ते के लिए तैयार हैं? मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण आपकी राय है, फिर आती है बारी मेरी। तो मैं आपसे  शादी करना चाहता हूँ, भले ही आप उम्र में बड़ी हैं, पर मुझे उससे फर्क नहीं पड़ता है और मैं तो अब आपको सामान नज़र से ही देखना चाहता हूँ।”

यह सब विचार-विमर्श बहुत देर तक चलता रहा। इतने में से अनुपमा के सास-ससुर भी वहां पहुँच गए और समझ जाते हैं कि अब उनके बेटे को कोई नहीं रोक सकता। मॉं और भाई दोनों मन ही मन इन दोनों को ढेरों आशीर्वाद दे चुके थे।

“मेरी भी हाँ है, राजीव! मैं खुशकिस्मत हूँ तुम्हारे जैसा जीवन साथी पा कर।”

जैसे ही अनुपमा ने हां की, उसके भाई ने राजीव के हाथों में अनुपमा का हाथ देते हुए, कंवल को दोनों की गोद में दे दिया और वे सभी बुजुर्गों का आशीर्वाद ले लेते हैं, एक नयी शुरुआत करने के लिए। और इतने में राजी और वत्सला भी आ जाते हैं, अनुपमा का स्थायी नौकरी हेतु नियुक्ति पत्र देने।

ऑथर नोट : जी हाँ साथियों तो ये था सीरीज़ अनुपमा का चौथा व अंतिम भाग। मेरा यह प्रथम प्रयास कहाँ तक सार्थक रहा, यह तो आपकी प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगा। यह कहानी मेरी आंखों देखी है, जिसको मैने शब्दरूपी मोतियों में पिरोने की कोशिश की है।

आपसे अनुरोध है कि इसे पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करिएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं के इंतजार में…

कहानी के पहले भाग पढ़ें यहां –

अनुपमा भाग 1

अनुपमा भाग 2

अनुपमा भाग 3

मूल चित्र : Still from Tum Hi Humaare/KumKum Bhagya, YouTube

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