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कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती,दीया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।
कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती, दीया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है। कोई चादर वफ़ा नही करती, वक्त जब खींचतान करता है।
यहाँ हर रिश्ता कायम नहीं रहता,खुद से भी इंसान अपना सब क़ुर्बान करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।कोई दुआ काम नहीं करती,जब इंसान खुद ही अपना सुकून दूसरे के नाम करता है।कोई इबादत यूं ही नहीं बुझती,दीया ही झूठी हवाओं को सलाम करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।कोई डिग्री सबक नहीं सिखा सकती,ज़िन्दगी की ठोकर का जो सबक काम करता है।टूटे हुए को और तोड़ना,मरे हुए को मारने का काम करता है।नफ़रत किसी से नहीं,वो तो फितरत का बसल/असर है।कोई टुकड़ों को जोड़कर उसमें जान फूंक देता है,
तो कोई टुकड़ों से तोड़ कर उनकी रूह तमाम करता है।कोई चादर वफ़ा नहीं करती,वक्त जब खींचतान करता है।अपनो को भी खूब चुभता है,बैठ कर कोई जो रोटी हराम करता है।कितनी ही संवेदनाएं, कितने ही कारण होते हैं प्रेम के,कोई प्रेम का छल, तो कोई प्रेम ईश्वर के समान करता है।कोई चादर वफ़ा नही करती,वक्त जब खींचतान करता है।
मूल चित्र: Photo by Shopify Partners from Burst
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