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आज आपने मुझे मेरी नहीं अपनी औकात दिखाई है…

पिछली बार राजीव से मिलने पर वह सब पल वह दोनों फिर से जीना चाहते थे। राजीव ने स्वयं ही फोन पर यह सब मंगवाने के लिए कहा था।

पिछली बार राजीव से मिलने पर वह सब पल वह दोनों फिर से जीना चाहते थे। राजीव ने स्वयं ही फोन पर यह सब मंगवाने के लिए कहा था।

“दीदी यह लीजिए गरमा गरम पकौड़े”, शालू ने पकौड़ों की प्लेट राधिका के सामने करते हुए कहा।

“भाभी! रखो, मैं ले लेती हूं”, राधिका ने एक पकौड़ा उठाते हुए कहा।

थोड़ी देर बाद शालू ने फिर पकौड़ों की प्लेट सामने की।

“सिर्फ पकौड़े ही खिलाओगी या कुछ और भी दोगी?” राजीव ने हंसकर कहा। मेज ड्राई फ्रूट, दो तीन तरह की मिठाई, पेस्ट्री, आदि खाने के सामान से सजी हुई थी।

” हां! हां! क्यों नहीं? मेज पर सब कुछ रखा है, जो चाहे ले लें”, शालू ने रूक्षता से कहा।

“दीदी को यह पेस्ट्री खिलाओ न?” राजीव ने फिर इसरार किया।

“दीदी आप को याद है बचपन में हम खाने पीने की चीजों पर कैसे लड़ पड़ते थे। हमेशा दूसरे की प्लेट में रखा सामान ज्यादा लगता था।”

“हां! सब याद है राजू और माँ एक दूसरे की प्लेट बदल कर कितनी आसानी से झगड़ सुलझा देती थी”,  राधिका ने हंसकर कहा।

दोनों भाई बहन इस प्रकार अपने बचपन की यादों को ताजा कर रहे थे। राधिका फ्रेश होने के लिए बाथरूम चली गई।

राधिका के जाते ही शालू राजीव से खीझ कर बोली, “क्या जरूरत थी इतना खर्चा करने की। याद है जब हम दीदी के पास गए थे तो उन्होंने हमें चाय के साथ समोसे खिलाए थे।”

“तुम ने अच्छा याद दिलाया, कल आफिस से आते समय मैं कालूराम की दुकान से समोसे, जलेबियां लेकर आऊंगा”, राजीव खुश हो कर बोला।

” हां, पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर इन सब को यह लोग क्या जाने? यह सब तो हाई सोसाइटी की चीजें हैं।इनकी औकात सिर्फ समोसे, जलेबियां खाने की है”,  शालू बड़बड़ा रही थी। दरवाजे पर खड़ी राधिका को यह सब सुनकर धक्का लगा।

मन कहीं अतीत की यादों में खो गया। पापा की छोटी सी करियाने की दुकान थी। उसके ग्रैजुएशन करते ही पापा ने उसका विवाह राकेश से कर दिया। राकेश भी उनके जैसे मध्यवर्गीय परिवार से था। उसकी रेडीमेड कपड़ों की छोटी सी दुकान थी। जीवन स्तर समान होने के कारण उसे वहां एडजैस्टमेंट में कोई असुविधा नहीं हुई। अपने सीमित साधनों में भी वह पूर्ण तया संतुष्ट और खुश है।

इधर राजीव पढ़ने में ज़हीन था। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए आज वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है। दो दिनों से वह राजीव के पास आई हुई। वह चुपचाप महसूस कर रही थी कि शालू उसे बात बात पर नीचा दिखाने का प्रयास कर रही है। पर आज तो उसने सारी हदें पार कर दी हैं।

उसे क्या पता कि समोसे, जलेबियां हम दोनों भाई बहन की कमजोरी रहे हैं और इन से हम लोगों की कितनी यादें जुड़ी हैं। एक दूसरे की प्लेट से खाना, छीना झपटी करना, समोसे के आलू या चटनी के लिए प्लेट उठा कर भागना, मिर्ची लगने पर एक एक जलेबी के लिए एक दूसरे को चिढ़ाना!

पिछली बार राजीव से मिलने पर वह सब पल वह दोनों फिर से जीना चाहते थे। राजीव ने स्वयं ही फोन पर यह सब मंगवाने के लिए कहा था। आज शालू की बात सुनकर वह हतप्रभ रह गई।

इस सब में ‘औकात’ कहां से आ गई? फिर ‘औकात’ किसकी मेजबान की या मेहमान की? अक्सर हम साधन संपन्न लोगों की मेहमान नवाजी में अपनी पूरी सामर्थ्य लगा देते हैं, कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। परंतु अपने से कमतर लोगों की अवज्ञा करते समय एक बार भी नहीं सोचते हैं।

घर आए मेहमान की आवभगत करते समय इस प्रकार की तुच्छ मानसिकता का प्रदर्शन क्या  हमारी स्वयं की औकात का प्रदर्शन नहीं है?

मूल चित्र : Still from Hindi Drama Anamika, YouTube 

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