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द एम्पायर है महिलाओं की अस्मिता और साज़िश में फंसे बाबर की कहानी

'द एम्पायर' अभिनय और भव्य सेट के नज़रिये से निराश नहीं करती। कहानी में महिलाओं के पक्ष को जिस तरह पिरोया गया वह कहानी को रोचक बना देती है।

‘द एम्पायर’ अभिनय और भव्य सेट के नज़रिये से निराश नहीं करती। कहानी में महिलाओं के पक्ष को जिस तरह पिरोया गया वह कहानी को रोचक बना देती है।

इतिहास को कैसे पढ़ा या देखा जाए? यह सवाल हमेशा अपने साथ इस बात कि गुंजाइश रखता है कि इतिहास को तथ्य के आधार पर समझा जाए। अगर मनोरंजन के लिए हवा-हवाई और कल्पना के आधार पर एक नई कहानी रची गई है, तो उसको सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित रखा जाए। तभी मनोरंजन के साथ न्याय कर सकते है। नहीं तो, बॉयकोट का नया दौर मौजूदा समय में तो चल ही रहा है।

डिज़्नीप्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई “द एम्पायर” में मुगल साम्राज्य की दास्तान निर्देशक मिताक्षरा ने सुनाने की कोशिश की है। जिसमें उन्होंने जिस तरह से बाबर को प्रस्तुत किया गया है, उस पर बॉयकोट हॉटस्टार सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है।

क्या कहानी है द एम्पायर की?

डायना प्रेस्टन और उनके पति माइकल प्रेस्टन ने “एम्पायर ऑफ़ द मुगल” सीरीज़ की छः किताबें अपने संयुक्त पेन नेम एलेक्स रदरफोर्ड के नाम से लिखी है। जिसमें एक नज़रिया है कि सल्तनत जितना जंग के मैदान में तलवारों के झनझनाहटों से तय होता है उतना ही अधिक किले की दिवारों के पीछे तय होता है, जिसको रचने में और अंजाम तक पहुँचाने में महिलाओं की भूमिका प्रमुख होती है।

सल्तनतों के साथ यह सच्चाई तो हमेशा से जुड़ी रही है कि उसके बदलते ही सबसे पहले संकट अगर किसी को महसूस होता है तो वह महिलाओं को। इसलिए हर सल्तनत में महिलाओं ने सत्ता के डोर का एक सिरा अपने हाथों में थामे रखने की कोशिश की। उनके अंदर स्वयं को लेकर असुरक्षा का बोध इतना अधिक गहरा था कि वह दूसरी महिलाओं के साथ बेहरम होने में कोई संकोच नहीं करती थीं। जिसको मार्क्सवादी समीक्षक अस्तित्व के संकट के रूप में पहचानते हैं और इसका कारण संपत्ति पर उनका अधिकार नहीं होना मानते हैं।

एलेक्स रदरफोर्ड का बाबर को लेकर यह नज़रिया है कि बाबर जंग के मैदान के साथ-साथ महल के भीतर चल रहे जंग का शिकार था। कहानी में बाबर को जज़्बाती दिखाया गया है, जो इंसानी पक्ष में काफी ईमानदार रहने की कोशिश करता है। वह हमेशा परिवार और समुदाय की साज़िश और वादा खिलाफ़ी के बीच फंसा हुआ दिखता है।

शयबानी(डीनो मोरिया) हमेशा बाबर(कुणाल कपूर) के सामने दुश्मन की तरह खड़ा दिखता है, पर असल में वह अपनी नानी (शबाना आज़मी) और बहन खानज़ादा(दृष्टि) के अरमानों में फंसा हुआ दिखता है। वह कभी फरगाना, कभी समरकंद, कभी अरब तो कभी हिंदुस्तान की चाहतों में उलझा रहता है।

कहानी अपने अंत में बाबर के हिंदुस्तान फतह, हुमायूं की ताजपोशी और उसके भाई कामरान(गुलरुख का बेटा) की बगावत पर ख़त्म हो जाती है।

बाबर लड़कपन से ज़मींदोज़ होने तक किन-किन साजिशों और संघर्षों से उलझा रहा, आधी जिंदगी वह बिना तख्त और सामाज्य के ही बादशाह रहा, इन सबके बारे में जानने के लिए द एम्पायर देखनी चाहिए जो अभिनय और भव्य सेट के नजरिये से निराश नहीं करती है। कहानी सुनाने में महिलाओं के पक्ष को जिस तरह पिरोया गया वह कहानी को रोचक बना देती है।

पर इतना विरोध क्यों हो रहा है?

कहानी ने फिल्मी रूपांतरण में इतिहास के तथ्यों से कितना छेड़छाड़ किया है यह एरिया इतिहासकारों का है, पर वह मौन हैं। इसकी वज़ह यह है कि हिंदुस्तानी फिल्मों ने पहली बार इतिहास के तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ नहीं किया। फिल्मकारों ने तो अनारकली को गढ़ कर मुगल-इ-आज़म फिल्म तक बना दी, जो इतिहास के पन्नों में कहीं है ही नहीं। कुछ यही हाल जोधाबाई का भी है, जो इतिहास में कहीं भी अकबर की बेगम के रूप में दर्ज नहीं है।

बॉयकोट हॉटस्टार, ये सोशल मीडिया ट्रेंड करता हुआ विरोध केवल बाबर की महिमा मंडन को ले कर है।  ज़ाहिर है, उनके लिए हिंदू-मुस्लिम विवाद सबसे बड़ी घी है, जिसको आग में डालकर उसकी आंच बढ़ायी जा सकती है और राजनीतिक मुनाफा कमाया जा सकता है।

कैसी है द एम्पायर?

मिताक्षरा ने अपनी कहानी सुनाने को जिन कलाकारों को खड़ा किया है, उसमें शबाना आज़मी ने नानी मां के किरदार को जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह हैरतजदा करने में कामयाब है। उनके ही कदमों पर चलते हुए दृष्टि धामी चलने की कोशिश करती है पर अपनी सीमाओं में बंधी हुई दिखती हैं।

कुणाल कपूर किरदार में ढलने में थोड़ा वक्त लेते हैं, पर एक बार वो बाबर के कैरेक्टर में घुस जाते हैं, फिर कमाल हो जाते हैं। शबाना आज़मी के बाद जो किरदार केंद्र में है वह है, शयबानी यानी डिनो मोरिने। उन्होंने कमाल के अभिनय से चौका दिया है। राहुल देव, इमाद शाह, सहर बाम्बा और आदित्य सील और अन्य किरदार ठीक ठाक हैं। इन किरदारों के पास अधिक कुछ करने को है भी नहीं। संवाद इस कहानी को सुनाने का सबसे कमजोर पक्ष है। कुछ-कुछ संवाद अच्छे बने हैं पर वो अधिक देर तक ज़हन में रहते नहीं हैं।

कुल मिलाकर “द एम्पायर” शानदार सेट, भव्यता का प्रदर्शन, कलाकारों के अभिनय से अच्छा मनोंरजन करती है। दशर्कों को पहली कहानी जहां खत्म हुई है वहाँ अगले सीज़न का इतंजार रहेगा। सोशल मीडिया पर चलने वाले विरोध को राजनीति मानकर छॊड़ दिया जाए, तो बाबर के बारे में काल्पनिक कहानी मान मनोरंजन किया जा सकता है। क्योंकि अभिनय के लिहाज से कलाकारों ने निराश नहीं किया है।

मूल चित्र: Trailer Hotstar Specials The Empire,YouTube

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