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ये मेरी ननद का मायका है और ये यहीं रहेगी…

प्रिया माँ को देखती रही, "माँ, मैं कमा कर बच्चे पाल लूँगी, बस आप इस छत के नीचे थोड़ी जगह दे दो।" पर माँ बेटी को दुनियादारी समझाती रही। 

प्रिया माँ को देखती रही, “माँ, मैं कमा कर बच्चे पाल लूँगी, बस आप इस छत के नीचे थोड़ी जगह दे दो।” पर माँ बेटी को दुनियादारी समझाती रही। 

सुबह 6:30 का समय था, अचानक ज़ोर से दरवाजे की घंटी बजी। प्रेरणा घबरा गयी!

“अरे! इतनी सुबह को कौन आ गया?”

एक तरफ़ चाय चढ़ा रखी थी, तो दूसरी तरफ़ परांठे सेक रही थी वह गुड्डू के टिफिन के लिए। झुंझला कर गैस बंद करी, तब तक दो बार घंटी और बज चुकी थी। अब तो उसका पति मनोज भी गुस्से से कमरे से बाहर आता हुआ चिल्लाया, “बहरी हो क्या? सुनता नहीं? देखो कौन आया इतनी सुबह और नींद खराब हो गयी।”

प्रेरणा ने भाग कर दरवाज़ा खोला तो देखा दरवाजे पर उसकी छोटी ननद प्रिया खड़ी थी। हाथ में अटैची और दोनों बच्चों के साथ, राघव (चार वर्षीय) और अंजलि (दो वर्षीय) को गोद में उठाए।

इतने में सास की आवाज़ आयी, “बहू कौन आया इतनी सुबह?”

प्रेरणा ने प्रिया को गले लगाया और अंदर लायी। पर मनोज ने तो प्रश्नों की बौछार ही लगा दी, “तू कैसे आयी? इतनी सुबह और जीजा जी कहाँ हैं? सब ठीक तो है?”

इतने में सास भी कमरे से बाहर आ गयी और बेटी को गले लगाकर फिर वही सवाल दोहराए। पर प्रिया कुछ ना बोली, भरी आँखों से चुपचाप बैठी रही। प्रेरणा ने जल्दी से उसे पानी दिया और नन्ही अंजलि को बिस्तर पर सुला दिया। राघव को उसने दूध पीने को दिया।

कुछ देर समान्य होने के बाद प्रिया ने कहा, “माँ मैं अब उस घर में नहीं रह सकती। रमेश कुछ नहीं कमाता, और जो कमाता है, वो शराब में उड़ा देता है। राघव को स्कूल से भी निकाल दिया फीस ना देने के कारण।” और यह बताते हुए वह सिसकियाँ भर-भर कर रोने लगी।

यह सब सुनकर मनोज बोला, “देख छोटी! जो भी है, जैसा भी है अब तू वहीं निभा। धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।”

“पर भैया, पांच साल में कुछ नहीं बदला, मैं थक गयी हूँ सहते-सहते। अब मुझ से ना होगा। मैं अब उस घर में कभी नहीं जाऊँगी। यहीं रहूंगी आप सब के साथ।”

सुनते ही मनोज गुस्से से तिलमिला उठा, “तू पागल हो गयी है क्या? मुझसे मेरे घर का खर्चा चलाना मुश्किल है और अब इस महंगाई में तू और तेरे दो बच्चों का भार कैसे सम्भालूँगा? इतने सालों से भी वहीं रह रही थी, तो अब भी वहीं रह।”

“पर भैया, अब तो वो पीकर मुझ पर हाथ भी उठाने लग गए। देखो!” कहते हुए उस ने भाई को निशान दिखाए।

“अरी! इतना तो पति पीकर कर कर देते हैं, सब ठीक होगा। जा मनोज नहा कर इसको अभी छोड़ कर आ, इससे पहले कि बात और आगे बढ़ जाए।”

मनोज फटाफ़ट नहाने चला गया।

माँ बेटी को समझाने लगी, “देख सब को सहन करना पड़ता है ससुराल में। तू नाश्ता कर और जा।  तेरे भाई का अपना परिवार है उस पर मेरी बीमारी का खर्चा, मैं तेरे हाथ जोड़ती हूं, तू वहीं रह।”

प्रिया माँ को देखती रही, “माँ, मैं कमा कर बच्चे पाल लूँगी, बस आप इस छत के नीचे थोड़ी जगह दे दो।”

पर माँ नहीं मानी और दुनियादारी समझाती रही।

प्रिया हैरान थी कि मेरी माँ तो मुझे खरोंच आने पर परेशान हो जाती थी पर ये क्या आज इनको मेरे शरीर मेरी आत्मा पर पड़े निशान नहीं दिख रहे?

पर क्या करती, अब वापिस जाने के सिवा और कोई चारा नहीं था। बड़ी आस लेकर मायके आयी थी, कि भाई है, माँ है पर…

प्रेरणा सब कुछ चुपचाप रसोई से नाश्ता तैयार करते-करते सुन रही थी।

मनोज नहा कर तैयार हो कर आया सबने नाश्ता किया, तो मनोज बोला, “चल उठा सामान, चलते हैं।”

अनमने मन से प्रिया, अटैची उठाने लगी तो प्रेरणा का स्वर कानो में पड़ा, “ठहरो! प्रिया उस नर्क में अब कभी नहीं जाएगी। वो यहीं रहेगी, हमारे साथ। बहुत हुआ! पांच साल में जब उसको अक्ल नहीं आयी तो अब वो क्या इसको खुश रखेगा?”

सब हैरान होकर प्रेरणा का मुहँ देखने लगे।

मनोज चिल्लाया, “तुम पागल हो गयी हो क्या?  ये यहां कैसे रह सकती है?”

“क्यूँ नहीं रह सकती? यह इसका मायका है और आज भी इसका यहाँ उतना ही हक़ है जितना शादी से पहले था”, प्रेरणा ने ज़वाब दिया।

“पर बहू घर के खर्च का क्या? ये सोचा तुमने?”

“हाँ, माँ जी सब सोच लिया, ऊपर का कमरा जो बेकार समान से भरा है, उसे खाली कर देंगे और रही बात कमाने की, तो आप भूल रही हैं कि आप की बेटी को सिलाई आती है। दिन में यह सिलाई का काम कर के अंजलि की देखभाल भी करेगी और पैसा भी कमा लेगी। और चूंकि अब हम दो औरतें घर पर हैं तो काम आधा आधा बांट लेंगे। दिन में ये सिलाई करेगी और शाम को मैं कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दूंगी। आखिर मेरी पढ़ाई किस दिन काम आएगी? इस तरह सब हो जाएगा। पर मैं अब इसको उस घर में घुट-घुट कर मरने के लिए नहीं जाने दूंगी।”

मनोज पैर पटकते हुए बाहर चला गया, “तुम औरतों का दिमाग खराब हो गया, दो महीने भी कमा नहीं पाओगे, देख लेना।”

सास भी बड़बड़ाते हुए कमरे में चली गयी।

हैरान परेशान, प्रिया सब वाक्या देखती रही। उसे याद आया कि माँ की डांट जब भाभी को पड़ती थी, तो कैसे वो मुँह दबा कर हँसती थी। पर आज उसके खून के रिश्ते दूर हो गए और परायी भाभी उसकी तरफदारी कर रही है। आज उसकी आँखों में आँसू थे।

उसने भागकर भाभी को गले लगा लिया और उसकी आँखों के सवाल को पढ़ कर प्रेरणा ने मुस्करा कर ज़वाब दिया, “पगली, मैं भी तो एक औरत हूँ!”

पाठकों, जिस दिन एक औरत ने औरत का दर्द समझना शुरू कर दिया, उस दिन हमें किसी और के सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जब भी मौका मिले, औरत के सम्मान, औरत की रक्षा के लिए औरत को ही पहला कदम उठाना होगा।

इस घटना ने उस के बाद ननद-भाभी का रिश्ता हमेशा के लिए बदल दिया। आज उसकी भाभी ने आगे बढ़ कर एक माँ का कर्तव्य निभा दिया।

मूल चित्र : Still from एक कोशिश सपने साकार करने की/Uttakarsha Classes, YouTube (for representational purpose only)

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