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तुम घर पर रहती हो, तुम्हें पैसों की क्या ज़रुरत है…

कुमुद को जब खाना कपड़ा मिल रहा है और मायके जाने का किराया मिल रहा है तब उन्हें एक रुपए की भी आवश्यकता क्यों है, यह पुरुष नहीं समझते थे।

कुमुद को जब खाना कपड़ा मिल रहा है और मायके जाने का किराया मिल रहा है तब उन्हें एक रुपए की भी आवश्यकता क्यों है, यह पुरुष नहीं समझते थे।

जी हां ₹300 के बारे में ही बात हो रही है। आज के समय में यह रकम ही क्या होती है? कुछ नहीं, इतने में तो सब्जी ही आ जाती है! लेकिन यहां जिसकी बात हो रही है उसके लिए ₹300 एक बहुत बड़ी रकम थी। ऐसा नहीं था कि वह गरीब परिवार की हो, उसका परिवार तो अच्छा-खासा खाता-पीता परिवार था, पर उसके पास तो एक भी पैसा नहीं रहता था।

यहां बात हो रही है कुमुद की‌ और नीतू की।

कुमुद, नीतू के पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी की बहन थी। शर्मा जी की पत्नी अर्थात कुमुद की भाभी हमेशा से ही उसकी तरफ से उदासीन थी। ससुराल में उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है, उसे किस वस्तु की आवश्यकता है इससे भाई-भाभी को कोई मतलब नहीं था।

जब कभी कुमुद ससुराल आती थी तब उसका एकमात्र सत्कार था मां का प्यार। मां खुद बेटे-बहू पर निर्भर थी, पति हीन, धनहीन और शक्तिहीन महिला अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने में असमर्थ थी।

प्यार से बेटी को गले लगाना उसके सिर पर हाथ फिराना और फिर आंखों से आंसू की दो बूंद टपका देना ही उनके वश में था। खुद कुमुद मां के लिए कुछ नहीं कर सकती थी। पीछे की कोठरी में पड़ी मां की खाट, केवल खाना देने के लिए परिवारी जनों का आना, किसी का उनके पास ना बैठना यह सब देख कर कुमुद भी केवल आंसू बहा सकती थी। ससुराल में उसके हाथ में तो कुछ था नहीं इसलिए जब खुद ही अपने लिए कुछ नहीं कर सकती थी तब मां के लिए क्या करती?

अब बात करें ₹300 की।

हुआ ऐसा कि कुमुद की भतीजी का विवाह था। जैसे तैसे ससुराल वालों ने उसे भेज दिया। उसकी शादी के समय की पुरानी साड़ियां, कुछ सोने के आभूषण, पैरों में चांदी की पायल आदि देकर उन्होंने समझा कि बहू बहुत ठाठ से अपने मायके गई है।

अपने साथ में ना जाने किस प्रकार से बचाए हुए ₹300 कुमुद लाई थी। अपनी भाभी की तीखी निगाहों से बचने के लिए उसने वे रुपए नीतू के पास रखवा दिए। वह जानती थी कि नीतू के मन में उसके लिए बहुत सहानुभूति है।

इधर कुमुद की भतीजी का विवाह था और उधर नीतू के घर में उसकी सास की तबीयत बहुत खराब थी। नीतू को ध्यान ही नहीं रहा कि कुमुद को उसके ₹300 जाने से पहले लौटा दे। कुमुद जब गई तब नीतू अस्पताल में थी सास के पास इसलिए पैसे नहीं दे सकी।

सास ठीक हो कर घर आ गई और जब नीतू को ज्ञात हुआ कि कुमुद लौट गई तब वह दु:ख से भर उठी। मन ही मन सोचने लगी ना जाने किस प्रकार कुमुद ने ₹300 बचाए होंगे। शायद कभी किसी मौसी, बुआ आदि ने ही चुपचाप उसकी हथेली में अपने पल्लू से खोलकर एक मुडा़ तुड़ा नोट रख दिया होगा। यह भी हो सकता है कि घर के दरवाजे पर खड़े सब्जी वाले से सब्जी खरीदने के बाद कभी पांच और कभी 10 रुपए बच जाते होंगे जिन्हें कुमुद जमा करती रहती होगी। पति की जेब से गलती से कुछ सिक्के निकल कर गिर गए होंगे और उसने जमा कर लिए होंगे। पता नहीं किस किस तरह से कुमुद ने ₹300 जमा किए होंगे।

इसके बाद नीतू सोचने लगी कुमुद ₹300 क्यों लाई थी? अपनी भाभी से छुपा कर मेरे पास क्यों रखवा दिए? खुद ही मन ही मन जवाब देने लगी। कुमुद सोचती होगी शायद सभी महिलाएं मार्केट जाएँ चूड़ियां पहनें, चाट खाएं, तब वह इन पैसों का इस्तेमाल करेगी।

यह भी हो सकता है कि रिश्तेदारी का कोई बच्चा किसी खिलौने के लिए मचल जाए तब वह उसे खिलौना दिला दें। हो सकता है वह इन ₹300 से अपने लिए कुछ खरीदना चाहती हो जैसे मेकअप का सामान, पर्स, रसोई के लिए कुछ आदि। नीतू के मन में आया वह यह क्या कर रही है यह तो उसी प्रकार से हो गया जैसे हामिद चिमटा खरीदने तीन पैसे लेकर गया था उसी तरह से नीतू कल्पना कर रही है कि कुमुद भी सोच रही होगी।

नीतू परेशान थी और सोच रही थी किस तरह से कुमुद के पास ₹300 पहुंचा दे। तभी उसे याद आया कि उसी शहर में उसका एक भतीजा भी रहता है। उसने अपने भतीजे को फोन किया और उससे कहा कि तुम कुमुद के घर जाकर उसे ₹300 दे दो।

हमेशा लाड-प्यार और सुविधाओं में पली नीतू के मन में यह बात आई ही नहीं कि वह क्या अनर्थ करने जा रही है। उसका भतीजा कुमुद के घर गया और घर के पुरुषों को ₹300 देकर बोला कि “यह कुमुदजी को दे दीजिए मेरी बुआ जी के पास रखवाए थे और लेना भूल गई थीं।”

उन लोगों ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। कुमुद के पास भी पैसे थे? घर की महिलाओं को जब खाना कपड़ा मिल रहा है और मायके जाने का किराया मिल रहा है तब उन्हें एक रुपए की भी आवश्यकता क्यों है यह पुरुष नहीं समझते थे। इसके अलावा कुमुद ने ₹300 घर में रहकर जमा कर लिए? कैसे? अब कुमुद पर कैसे विश्वास किया जाए? घरवालों से बात छुपाती है, घर खर्च से पैसे बचाती है, यह कैसी महिला है?

घर के पुरुषों ने कुमुद की सास से कहा और कुमुद की सास ने कुमुद को कटघरे में खड़ा कर दिया। उसकी देवरानी-जेठानी के मायके वाले जब कभी आते थे, उनके हाथ में रुपए रखकर जाते थे इसलिए वह शान से मायके से मिले रुपए खर्च करती थीं। लेकिन कुमुद के भाई-भाभी तो कभी आते ही नहीं थे। कुमुद की मां के हाथ में तो पैसा रहता ही नहीं था मतलब  कुमुद ने ससुराल में बेईमानी की?

उस घर में वैसे ही महिलाओं का सम्मान नहीं था जिस पर कुमुद तो सबसे गई बीती थी। ना मायके वाले ध्यान देते थे और ना ही पति ध्यान देते थे। इस घटना के बाद तो सास ने भी उस पर कड़ाई बढ़ाने के साथ तानों की मात्रा भी बढ़ा दी। देवरानी-जेठानी को मुंह बिचकाने का अवसर मिल गया, अपनी ईमानदारी सिद्ध करने का अवसर मिल गया। बेचारी ₹300 की वजह से घर में अपराधी मान ली गई।

उधर नीतू खुश थी कि कुमुद की अमानत कुमुद तक पहुंचा दी।

काश! वह यह समझ पाती कि कुमुद को ₹300 तभी लौटाए जब वह उससे अकेले में मिले या  कभी रुपए लौटाए ही नहीं क्योंकि रुपए ना लौटा कर वह कुमुद का कम नुकसान करेगी। पर वह कैसे समझती क्योंकि वह तो कुमुद की दशा में रह नहीं रही थी।

वह नहीं जानती थी कि कई स्त्रियां अपने अपने घरों में इसी दशा में रह रही हैं!

इमेज सोर्स: Still from Beti Padhao Beti Badhao ad, YouTube

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