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खुद को वह छूती है, कभी बड़ों की किसी इरोटिक कहानी, उनको सोचते हुए! हस्तमैथुन करना सही है या गलत ये प्रश्न या ये नाम उसके मन में नहीं आया है अब तक...
खुद को वह छूती है, कभी किसी इरोटिक कहानी या कुछ और सोचते हुए! हस्तमैथुन करना सही है या गलत वो नहीं जानती पर ये उसका सच्चा हमसफ़र है…
1990 का दशक…
पिछले कुछ दिनों से छोटी की सहेली हर दोपहर, जब सब सोते हैं तब, उसके साथ एक नया खेल खेलने आती है। सहेली उसके नन्हे शरीर को छूती है हर तरीके से, हर जगह और उसके दोनों हाथों को ले मलती है अपने बदन पर भी।
सहेली कहती है, यह खेल उसने अपनी माँ-पापा को खेलते हुए देखा है बहुत बार रात में। इसमें कुछ बुराई तो नहीं है, पर छोटी को इस खेल के बारे में किसी को कभी भी बताना नहीं है। क्लास फाइव की छोटी में अब वो पहले जैसे डर और शर्म अब नहीं रही, क्योंकि अब पता नहीं क्यों अच्छा लगता है… बेहद अच्छा लगता है उसे यह अलग सा खेल…
सहेली का परिवार बाद में चला गया, किराये का मकान बदल कर कहीं और। अब छोटी अकेले ही इस खेल को खेलती है। जब भी मन करता है, निःशब्द दोपहर, आधी रात या फिर सुबह सबेरे।
खुद को वह छूती है, कभी सहेली या बड़ों की किसी इरोटिक कहानी, जो उसने चुपके से पढ़ी है मौहल्ले की लाइब्रेरी में, उनको सोचते हुए। फिर ना जाने कब, अपने दोनों पैरों के बीच वह भर लेती है अपनी उँगलियाँ, एक तकिया, या कभी कभार कुछ और भी। फिर बेनाम एक खुशी से उन्मत्त हो उठती है वह। आखिरकार कुछ मिनटों के बाद अचानक छोटी की पूरी अस्तित्व को निचोड़, श्रांत देह से निकल आती है एक धारा। तीव्रतम, अवर्णनीय सुख की एक गहरी धारा।
पर बिल्कुल उसी समय छोटी को स्याही की तरह घेर लेती है अंतहीन ग्लानिबोध का एक घना अंधेरा और अकेलेपन की तीखी नुकीली दर्द। हर बार खुद को उस अनजानी खुशी देने के बाद उसे बेहद शर्मिंदगी महसूस होती है अपने आप से। छोटी सोचती है, “जो मैं करती हूँ, मुझे नहीं पता उसे क्या कहते हैं, पर मुझे लगता है यह पाप है और गलत भी। माँ-पापा को पता चलेगा तो क्या होगा? पर इसे किये बिना रह भी तो नहीं पाती हूँ मै…”
हाइस्कूल से कॉलेज में पहुंचते हुए खुद को शारीरिक सुख देने का नशा छोटी पर पूरा छा गया था, उधर उसकी मन में गिल्ट की भावना ने भी एक पक्की जगह बना ली। वह खुदको विकृत, सेक्स मैनियाक, जैसे ना जाने कितने ही नाम से कोसा करती थी।
उसके पास अपनी उस आदत के बारे में ना कोई सही तथ्य था, नाही शर्म से वह किसी दोस्त के साथ सांझा कर सकती थी अपनी व्यक्तित्व के इस हिस्से को। ऐसे ही हर दिन अपने अपराधबोध के साथ तन्हाई में खुद ही लड़ती…अनेकों सवालों से घिरी… फिर भी आत्मरति की रस्ते पर बढ़ती हुई… ना जाने कब बड़ी हो गयी छोटी।
2000 का दशक…
स्कूल और कॉलेज में छोटी को प्रेम हुया, प्रेम टूटा भी। और फिर, कई और रिश्ते बने और बिगड़े। कई और तूफान भी आये और उसे आज़मा कर चले गए। उसने देखा, जब भी किसी समस्या से वह बहुत ज़्यादा परेशान रहती है, जब कभी भी दिल टूटने का दर्द बेइंतेहा हो जाता है, या फिर जब पप्रेमियों की याद से सराबोर होता है तन मन, तब हर बार उसे यह करना होता है! ताकि थके हुए शरीर को नींद आ जाये, उतावला मन शांत हो, दर्द और अकेलेपन में भी खुद से ही मिले कुछ सांत्वना। अ
अब छोटी जान चुकी है कि वह इतने सालों से “मास्टरबेट” या “हस्तमैथुन” करती आयी है। उसने डिक्शनरी में पढ़ा भी है उसका अर्थ।
इस बीच बीस कुछ में पैर रखती हुयी छोटी धीरे-धीरे अपनी इस पहलू से कम्फ़र्टेबल होने लगी थी और फीमेल मास्टरबेशन के बारे में ऑब्जेक्टिव तरीके से अपनी नज़दीकी सहेली और बहनों से इस टैबू टॉपिक पर बात करनी शुरू की। पर उसके आसपास किसी लड़की को इसका अनुभव नहीं था।
सभी को लगता था, मास्टरबेशन सिर्फ मर्दों की ही स्वाभाविक विशेषता है, क्योंकि उनकी सेक्स ड्राइव ज़्यादा होते है। दोस्तों ने कहा, “सिर्फ लड़कों जैसे ज़्यादा कामुक लड़कियाँ या पैसों की खातिर प्रोस्टिट्यूट्स ही मास्टरबेट करती होंगी, पर मास्टरबेशन कतय “नॉर्मल” औरतों में देखा नहीं जा सकता।”
छोटी बिल्कुल हैरान हो गयी, मास्टरबेशन के बारे में उसकी आसपास की महिलाओं की नज़रिया देख कर। उसने किसी से अपनी व्यक्तिगत अनुभव को सांझा ना करने का फैसला लिया। अब छोटी को फीमेल मास्टरबेशन के बारे में इंटरनेट से और ज़्यादा जानकरी हासिल करनी थी। पर 2003 की गूगल पर घिसी-पिटी एक दो वक्तव्यों को छोड़ कर औरतों के हातमैथुन पर कोई विज्ञान भित्तिक कोई तथ्य या चर्चा मौजूद नहीं थी।
छोटी को इस दौरान अच्छी जॉब मिली। उसने सोचा, कैरियर की सफलता और व्यस्तता उसे मास्टरबेशन से दूर ले जाएगी। पर यह नहीं हुआ, क्योंकि गिल्ट तो बेशक़ था, पर छोटी को अब बिना किसी व्यक्ति या रिश्ते के सहारे, खुद को ऑर्गेज़्म का एहसास देना सुखद लगता था। अब उसे अपनी इस आदत को जबरन बंद नहीं करना था, क्योंकि मास्टरबेशन ने उसे ज़िन्दगी के हर अकेलेपन के बीच भी खुद को खुशी देने की कला सिखाई थी।
फिर उसकी शादी हो गयी। पति के प्यार में मगन पत्नी खुशी-खुशी मास्टरबेशन को अलविदा कहने के लिए खुद को प्रस्तुत कर चुकी थी। पर ज़िन्दगी को था कुछ और ही मंज़ूर।
पति शादी से पहले उसका ‘छुपाया गया डिप्रेशन और प्रिमैच्योर इजाकुलेशन’ की समस्याओं के वजह से छोटी के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने में नाकामयाब रहा। उसने कुछ महीनों की कोशिशों के बाद पत्नी को यौन सुख देने के लिए उसे मास्टरबेट कराने का रास्ता चुना। छोटी गहरी सदमे में थी, पर उसने अपनी ‘शादी बचाने के लिए’ पति का साथ दिया।
पिछला दशक…
छोटी अपनी इच्छाओं से मुँह फेर कर डिप्रेस्ड पति को संभालती रही। पर हताशा और अकेलेपन की घोर गर्दिश में डूब रही उसकी निजी ज़िन्दगी फिर से ना जाने कब अपनी सदियों पुराने दोस्त के पास वापस चली गयी। उसकी काले से एकांत पल अब मास्टरबेशन की नई-नई अदाओं से कुछ रंगीन होने लगे। किताब और कविताओं के बाद, यही एकमात्र हमदर्द था, जिसने हर सुनी रात छोटी की तप्त श्रांत शरीर को प्रेमी की तरह सहलाया, प्यार किया और फिर सुलाया था गहरी नींद में।
ऐसे ही बीते कुछ साल। छोटी को अब एक बच्चे की कमी चुभने लगी थी। इनएक्टिव पति बच्चे का प्रस्ताव सुनते ही शारीरिक रूप से थोड़ा सक्रिय हुया। आधुनिक तकनीक और पति के आधी अधूरी की मदद से छोटी प्रेग्नेंट हुयी। पर छोटी को अब पति के निष्क्रियता का दर्द पहले जैसे नहीं सताता था क्योंकि वह अब एक बच्ची की माँ बन चुकी थी और जब भी उसे यौनता की ज़रूरत होती थी, वह मास्टरबेट कर लेती।
गूगल में भी अब फीमेल मास्टरबेशन के बारे में बहुत सारी जानकारियाँ मिलने लगीं, जिन में उसकी अंदर सालों से उमड़ घुमड़ रहे सवालों के जवाब मिले।
उसने पढ़ा, वह अकेली ही नहीं, दुनियाभर में हर उम्र की 85% से ज़्यादा औरतें खुद को खुश करने के लिए मास्टरबेट करती हैं। भारत जैसे कंज़र्वेटिव देश में यह आंकड़ा 80% पाई गई थी 2019 कि एक सर्वे में।
भारतीय औरतों की ‘शर्मीली और पैसिव’ होना उनके मुख्य गुण माना जाता है, इसलिए वे बाहर इसको नकारती तो हैं, पर एकांत में इसे करती भी हैं। उसने जाना, हस्तमैथुन महिलाओं की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं, बल्कि कईं प्रकार से लाभकारी होती है। ज़िन्दगी की समस्याओं से बोझिल छोटी को उसकी साइकोलॉजिस्ट ने भी मानसिक, दैहिक और यौनिक आराम के लिए नियमित रूप से मास्टरबेट करने की सलाह दी।
हैपीली एवर आफ्टर…
अपनी मास्टरबेट करने की चाहत को छोटी अब पूरी तरह से अपना चुकी थी। जीवन की नई नई चुनौती और बढ़ते अनुभव ने साबित किया था कि किसी दूसरे व्यक्ति के अस्तित्व के बिना वह हर तरीके से खुद को सुख देने में सक्षम है। उसने यह भी समझा कि,अपने आप को हर दोष और गुण के साथ ममता से अपनाना भी आत्मरति या यूँ कहें कि खुद को प्यार करने का एक अहम पहलू होता है।
आखिरकार छोटी 3 दशकों तक बेताल की तरह उसकी गर्दन पर लटक रही ‘मास्टरबेशन’ नाम के भारी-भरकम ग्लानिबोध को हमेशा के लिए त्यागने में समर्थ हो गयी। मास्टरबेशन नाम की मुक्ति उसकी साथ अब भी है और रहेगी आगे भी।
छोटी अब अपने हर पहलू के साथ हर सकारात्मक तरीके से अपनी ज़िन्दगी जी रही है।
इमेज सोर्स : Still from Lust Stories/Netflix
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