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कब एक बुरे पति के साथ ज़िंदगी बिताने को कला नहीं समझा जायेगा?

"आज बोल दिया, फिर मत बोलना! मेरा बेटा क्यों रहेगा पागल? मर्द लोगों को थोड़ा गुस्सा आ जाता है। चीखने-चिलाने से कोई मर्द पागल नहीं बन जाता।"

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“आज बोल दिया तुमने फिर कभी मत बोलना! मेरा बेटा क्यों रहेगा पागल? अरे मर्द लोगों को थोड़ा गुस्सा आता रहता है। चीखने-चिलाने से कोई मर्द पागल नहीं हो जाता है।”

“चूड़ियां नहीं टूट रही हैं तो क्या हुआ? बाद में आराम से निकल जाएँगी। आप लोग एक बार भी आंटी के बारे में नहीं सोच रहे हैं कि वो किस दर्द से गुजर रही हैं?”

आंटी के हाथ से खून निकल रहा था। कांच की कुछ चूड़ियां उनके हाथ में धंस गयी थीं और मेटल की चूड़ियां टूट नहीं रही थीं। औरतें रस्म के नाम पर उस पर पत्थर मारे जा रही थीं, बिना ये सोचे कि कितनी बार वो पत्थर चूड़ियों पर नहीं लग के आंटी के हाथ पर लग उनके हाथ के साथ उनकी आत्मा को भी घायल किये जा रहे थे।

मेरे ऐसा बोलते ही जैसे  भूचाल आ गया। सारी औरतें मेरी तरफ ऐसे देखने लगीं जैसे मैंने कोई बहुत बड़ा कांड कर दिया हो।

एक हाथ नचाते हुए मुझसे बोली, “सुन! तुम लोग दो किताब पढ़ के अपनी सभ्यता और संस्कृति भूल गए हो, पर हम लोग नहीं भूले हैं। तुम अपना मुँह बंद रखो, इसका पति मरा है। चाहे जैसे उतरे इसको चूड़ियां उतारनी ही पड़ेंगी।”

“वही पति जिसने तीस साल में आंटी को दु:ख और तकलीफ के सिवा कुछ नहीं दिया? उस पति की मौत पर चूड़ी निकालने के नाम पर आप लोग उनके हाथ के साथ उनके स्वाभिमान को भी चोट पहुंचा रहे हैं।”

मैं कुछ और बोलती इससे पहले आंटी ने मुझे चुप रहने का इशारा किया, तो मैं मज़बूरी में चुप हो गयी क्यूँकि मैं आंटी की बहुत इज़्ज़त करती थी। और फिर मैं वहाँ रुक नहीं पायी एक भी मिनट!

मैं घर आ के भी आंटी के बारे में ही सोचती रही।

पिछले बीस साल से मैं आंटी को देख रही थी घर और बाहर सारा अकेले ही संभालते हुए। हमेशा हँसते हुए सबकी मदद को तत्पर रहती हैं आंटी। अपना दु:ख अपने अंदर समेटे सबको खुश रखने की कोशिश करते हुए।

उनके पति दिन-रात उन पर बिना बात के ही कभी भी हाथ उठा देते और आंटी को जलील करना तो जैसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार था। कभी भी कहीं भी…

मुझे लगता था कि अंकल मानसिक रोगी हैं उनका इलाज होना चाहिए। एक दिन मैंने आंटी के सामने बोला तो वहाँ से गुजरती उनकी सास ने सुन लिया और बखेरा खड़ा कर दिया!

“आज बोल दिया तुमने फिर कभी मत बोलना! मेरा बेटा क्यों रहेगा पागल? अरे मर्द लोगों को थोड़ा गुस्सा आता रहता है। एक दो-थप्पड़ मारने से कोई मर्द पागल नहीं हो जाता है।”

आंटी की सास को कुछ समझाने की कोशिश करना बेकार था इसलिए मैं चुप हो गयी।  लेकिन मैं आंटी को हमेशा ही बोला करती, “आप अंकल को एक बार मनोचिकित्सक को दिखाइए। ऐसे बिना बात के गुस्सा करना, हाथ उठाना नॉर्मल नहीं हो सकता है।”

लेकिन उन्होंने भी कभी मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और हमेशा अंकल  से जलील होती रही मार खाती रहीं।

“आंटी, आप भी इतनी पढ़ी-लिखी हैं। अपना बुटीक चला रही हैं, बच्चों को अपने दम पर पाल रही हैं, तो फिर आप छोड़ क्यों नहीं देती अंकल को?”

मेरे ऐसा बोलने पर वो हँसते हुए बोलीं, “अच्छे पति के साथ तो सभी रहते हैं, बुरे पति के साथ रहना भी तो एक कला है।”

“आपने ये कला का ठेका ले रखा है क्या?”

मैंने चिढ़ कर बोली तो वे बोलीं, “तू परेशान मत हो। वक्त के साथ सब ठीक हो जायेगा।”

लेकिन कुछ ठीक नहीं हुआ। ना ही अंकल का आंटी के प्रति दुर्व्यवहार बदला और ना ही आंटी ने कभी इस दुर्व्यवहार का विरोध किया।

मैंने बीच-बीच में आंटी को बोलना नहीं छोड़ा, “इनका इलाज करायें। वो मानसिक रोगी हैं।”

पर किसी ने नहीं सुनी और उनका पागलपन बढ़ता गया और आज जब उनके मौत पर भी सब उन्हीं के बारे में सोच रहे हैं। कोई आंटी के बारे में सोच नहीं रहा है।

कब बदलेगा हमारा समाज? कब एक बुरे पति के साथ ज़िंदगी बिताने को कला नहीं समझा जायेगा?

“अरे अकेले-अकेले क्या बड़बड़ा रही हो मम्मी?” बेटी के टोकने पर मैं अपनी सोच से बाहर आयी।

“कुछ नहीं बेटा। आंटी के बारे में सोच के परेशान हो गयी थी।”

“आप हमेशा उनकी फ़िक्र करती हैं, तो आज उनको आपकी जरूरत है, तो आप आ गयीं।”

“मुझसे नहीं देखा जाता समाज का ये दोगलापन, जहाँ एक ऐसे पति के लिए उस औरत को और दर्द दिया जा रहा है, जो पति तो क्या इंसान कहलाने के लायक भी नहीं था।”

“मम्मी, अभी आंटी को आपकी जरूरत है, चलिए हम चलते हैं। चाहे समाज माने या ना माने, पर हम आंटी को और तकलीफ नहीं देने देंगे।”

और हम दो औरत चल पड़ीं, एक तीसरी औरत को बहुत सारी औरतों के प्रहार से बचाने…

इमेज सोर्स : Still from When Saas Bahu Are Best Friends/Mangobaaz, YouTube

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