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सिर्फ एक नहीं बारह बच्चों की माँ हूँ मैं…

उस औरत ने किसी भी तरह का साज श्रृंगार नहीं किया हुआ था। फिर भी वह सभी को आकर्षित कर रही थी। 10 बच्चे और अकेली वह...?

जब पहली बार मैंने उसे देखा था तो उसने यलो कलर का टॉप और ब्लू  कलर की जींस पहनी हुई थी। उस जीन्स को उसने घुटनों तक मोड़ रखा था। वह 8-10 बच्चों के साथ  बीच पर दौड़ रही थी  जिनकी उम्र  लगभग 8 से 16 साल के बीच होगी। आँखों पर सनग्लासेस, कंधे तक झूलते बाल, और सर पर बड़ा सा हैट। उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी और  उसका चहरा खिलखिला रहा था । देखने में वह 35-36 साल  से कम की नहीं लग रही थी।

मैं अपने परिवार के साथ गोआ घूमने आयी हुई थी। उसे बीच पर यूँ  हँसते खिलखिलाते और बच्चों के साथ मस्ती करते देखा तो मैंने सोचा की किसी स्कूल की शिक्षिका होगी जो बच्चों को लेकर  भ्रमण के लिए आई होगी। फिर मैंने सुना सभी बच्चे उसे “माँ-माँ” कह रहे थे।

तब मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या किसी के  10-12 बच्चे हो सकते हैं? साथ ही उस औरत ने किसी भी तरह का साज श्रृंगार नहीं किया हुआ था।  फिर भी वह  सभी को आकर्षित कर रही थी। 10 बच्चे और अकेली वह…?

कुछ समय बीच पर ही रुकने के बाद पता चला कि उसके साथ कोई पुरुष या अन्य कोई भी महिला नहीं है। वह उन बच्चों के साथ कोई गेम खेल रही थी, जो बच्चे उसे पकड़ेंगे उसी के साथ दौड़ में, फिर बाकी बच्चे दोनों को पकड़ेंगे। यदि वे एक को पकड़ लेते हैं और दूसरा आकर उसे छुड़ा लेता है तो वह पूर्ण नहीं माना जाएगा।

मैं बीच के किनारे बैठ कर उसके खेल को देख रही थी। बड़ा ही आनंद आ रहा था, एक-एक कर जब उसके सारे बच्चों ने उस गेम को पूरा कर लिया तब वह अपने बच्चों के साथ आइसक्रीम खाने लगी।

मैंने भी लैगिंस, और हल्की सी कुर्ती डाल रखी थी, सनग्लासेस मैंने भी लगा रखा था पर मैं वैसे खिलखिला नही पा रही थीऔर ना ही दौड़ पा रही थी। मुझे ईष्या सी होने लगी थी उस औरत से। मैं बीच पर सारा समय बस उसे ही निहारती रही। मेरे पति ने कहा भी, “देखो! तुमसे वह छोटी तो नहीं होगी? लेकिन कैसे दौड़ रही है? मुझे और बुरा लगने लगा। मेरे मन में उसको जानने की उत्सुकता और बढ़ने लगी।

आखिर वह है कौन? क्या करती है? ये बच्चे किसके हैं? वह कहाँ  रहती है और न जाने क्या क्या!

मेरे देवर-देवरानी बीच पर मजे कर रहे थे, अपने बच्चों के साथ। साथ ही मेरे बच्चे भी उन्हीं लोगों के साथ व्यस्त थे। बस मैं ही अकेली उसकी गतिविधियों को निहार रही थी। तभी मैंने  उससे बात करने के लिए आइसक्रीम खाने का बहाना बनायाऔर आइसक्रीम लेने चली आई। वह आइसक्रीम वाले के पास ही अपने सारे बच्चों के साथ आइसक्रीम का आनंद ले रही थी और अलग-अलग पोज़ में मोबाइल से फोटो भी खींच रही थी।

मैंने बात करने के उद्देश से एक 11 साल के बच्चे से पूछा क्या नाम है तुम्हारा? असलम और 8 साल की एक बच्ची से पूछा तो उसने बताया प्रिया।

मैंने एक-एक कर सारे बच्चों से उनके  नाम पूछे तो पता चला की कुछ बच्चे हिंदू हैं, कुछ मुस्लिम और कुछ सिक्ख। मुझे समझ नहीं आ रहा था  लग रहा था कहीं यह कोई एनजीओ की कार्यकर्ता तो नहीं है? या किसी  अनाथालय के बच्चों को लेकर घूमने तो नहीं आई है? टूरिस्ट गाइड तो नहीं है? मेरे मन में उसकी असलियत को लेकर अनेकों सवाल उठने लगे। तो मैंने बच्चों से कहा, “आप लोग अकेले आए हैं?”

“नहीं, मम्मा के साथ।”

“आप सबकी मम्मा यही हैं?”

पूछने पर उन्होंने कहा, “हाँ हम सब की मम्मा यही हैं।”

तो मैंने उस महिला से पूछा, “यह सारे बच्चे आपके हैं?”

“हां जी हां, मेरे ही बच्चे हैं”, उन्होंने जवाब दिया

“मैं समझी नहीं, इतने सारे बच्चे? आप कोई अनाथालय चलाती हैं?”

” नहीं-नहीं! मैं अनाथालय नहीं चलाती हूँ। यह मेरे अपने-बच्चे हैं।”

“आप ने पैदा किया है?” मैंने अचानक ही पूछ लिया।

वह मुस्कुराई पर बोली कुछ नहीं।

मैंने पूछा, “आपका नाम क्या है?”

“सुधा”, उसने जवाब दिया।

उसने कहा, “मेरे नाम का मतलब अमृत होता है और मैं अपने नाम को सार्थक करने के लिए ही सारे बच्चों के साथ आनंद का जीवन व्यतीत करती हूँ।”

“आपने बताया नहीं? इतने सारे बच्चे आपके कैसे?”

सुधा ने आंखों पर से चश्मा हटाया और कहा, “आपका क्या नाम है?”

मैंने बताया, “रोजी।”

“रोजी जी, मैं बताती हूँ यह मेरे बच्चे कैसे हैं? मेरी शादी के कई साल बाद तक मैं माँ नहीं बन पा रही थी। डॉक्टर ने कहा की बच्चेदानी में समस्या है, यह माँ  नहीं बन सकती हैं। मैं पढ़ी-लिखी तो थी लेकिन शारीरिक दिक्कतों से कोई कैसे लड़ सकता है? मैं माँ बनाना चाहती थी पर…

मैंने अपने परिवार-वालों से कहा कि हम लोग एक बच्चा गोद ले लेते हैं  तो सास और पति ताना देने लगे कि बाँझ क्या जाने ममता का स्वाद? तुम कभी माँ नहीं बन सकती हो तो हमारे किस काम की हो? जब हमें गोद ही लेना है तो इससे अच्छा मैं दूसरी शादी क्यों ना कर लूँ? मेरी उपस्थिति में ही पति ने दूसरी शादी कर ली और मैं कुछ नहीं कह पाई।

दो साल के अंदर ही  मेरे पति को उनकी दूसरी पत्नी से बच्चा भी हो गया। मैं  सोचने लगी मेरे पति का बच्चा मेरा बच्चा है। मैं उसे अपना सारा प्यार दूँगी पर मेरे पति, मेरी सास और मेरी सौतन ने  मुझे इस लायक नहीं समझा। वह अपने बच्चे को मुझसे दूर रखती थीं, मुझे अपमानित करती थीं और साथ ही साथ सभी कहते थे कि तुम्हारी काली छाया बच्चे पर नहीं पड़ने देंगे। तुम इस ममता और प्यार के लायक नहीं हो। तभी मेरी ममता और आत्मसम्मान को बहुत गहरी ठेस पहुँची और मैंने माँ बनने की ठान ली।

मैंने तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दी और साथ ही मैं  सरकारी सेवा की परीक्षा की तैयारी में लग गई। दो साल के अंतर्गत मेरा चयन सरकारी क्षेत्र में एक क्लर्क के रूप में हो गया तभी से शुरुआत हुई मेरे माँ बनने की कहानी की।

मैं अनाथालय से बच्चों को गोद लेने लगी और एक साल में मैंने पाँच बच्चों को गोद लिया। फिर ऐसे अभी तक  मैं पूरे 12 बच्चों को गोद ले चुकी हूँ क्योंकि मैं भी एक माँ बनना चाहती थी। अब मैं एक दो बच्चों  की नहीं 12 बच्चों की माँ हूँ।

मैं माँ भी बनी और मैं ममता को महसूस भी करती हूँ, बच्चों का ख्याल भी रखती हूँ और किसी भी बच्चे को कोई दिक्कत नहीं होने देती हूँ। बच्चे मेरी जिंदगी है और मैं बच्चों की उम्मीद हूँ। आज मेरा अपना घर है, कानपुर में, अपना परिवार, अपने बच्चे हैं। मेरे सभी-बच्चे पढ़ाई करते हैं। मेरा ध्यान रखते हैं। मैं कभी अकेलापन महसूस नहीं करती हूँ। मैं न डरती हूँ , न घबराती हूँ बस अपने बच्चों के साथ मुस्कुराती हूँ। आज मेरी अपनी पहचान है। आज मैं जितनी खुश हूँ, जितनी आनंदित हूँ शायद इतनी कभी नहीं हो पाती।”

तभी बच्चों ने कहा, “मम्मा हम लोग और दूर चलें?”

सुधा मुझे “एक्सक्यूज मी!” बोलती हुई, बच्चों के साथ लहराती हुई मस्ती करने निकल गई।

सुधा की कहानी सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि कैसे कोई  इतने टूटे हुए हौसलों के साथ इतनी खुशहाल ज़िंदगी जी सकता है। वह सच में 10-12 बच्चों की माँ है और माँ  का दर्जा उससे कोई नहीं छीन सकता। 35 वर्ष की उस जिंदादिल औरत ने मुझे भी जीना सिखा दिया।

मेरे पास सब कुछ है, परिवार, अपना बच्चा, पति का साथ पर कमी है तो आत्मविश्वास की सुधा के हौसलें और  सुधा की जिंदादिली ने मेरे आत्मविश्वास को भी जगा दिया और मैं भी सुधा के बच्चों के साथ, अपने बच्चों को लेकर जिंदादिली के लिए दौड़ पड़ी।

सुधा की कहानी से हमें निश्चित रूप से  यह सीखना चाहिए कि मन में विश्वास और उम्मीदों का हो सहारा, तो हर उम्र हर मौसम हो जाता है प्यारा।

इमेज सोर्स: Instants from Getty Images Signature via Canva Pro

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