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महिलाओं का विज्ञान में योगदान बेमिसाल रहा है लेकिन नोबेल पुरस्कार ऐसा नहीं कहते!

हम सब जानते हैं कि महिलाओं का विज्ञान में योगदान बेमिसाल है, पर नोबेल पुरस्कार में उनकी भागीदारी अभी भी तुलनात्मक रूप से कम दिखती है।

हम सब जानते हैं कि महिलाओं का विज्ञान में योगदान बेमिसाल है, पर नोबेल पुरस्कार में उनकी भागीदारी अभी भी तुलनात्मक रूप से कम दिखती है।

पूरी दुनिया विश्व विज्ञान दिवस नवम्बर महीने की 10 तारीख को मनाती है। परंतु, पूरी दुनिया साल भर इतंजार करती है, उस दिन का जिस दिन एक-एक करके विज्ञान, कला, साहित्य, मानवता के क्षेत्र में मानव समुदाय के हित में किये गए उत्कृष्ट कामों के लिए प्रसिद्द नोबल पुरस्कारों की घोषणा होती है। कोई भी वैज्ञानिक, कला का सृजक, साहित्यकार या मानवता के भलाई में काम करने वाला व्यक्ति अपने काम को पूरी शिद्दत के साथ करता है। सिर्फ एक उद्देश्य से उसकी खोज, उसका साहित्य या उसका किया गया काम मानव प्रजाति के काम आ सके।

नोबल के इन कैटोगरी में हर किसी का अपना-अपना महत्व है पर विज्ञान एक अलग ही दुनिया है। महिलाओं ने भी इन केटेगरी में दुनिया में बेमिसाल काम किए हैं, पर नोबेल पुरस्कार में उनकी भागीदारी अभी भी तुलनात्मक रूप से कम दिखती है।

आइए जानते हैं उन महिला वैज्ञानिकों के बारे में, जिन्होंने मानवता को एक नई दिशा दी और विज्ञान दुनिया में अमर हो गईं।

रसायन और भौतिक विज्ञानी मैरी क्यूरी

मैरी क्यूरी दुनिया की एक मात्र महिला जिन्होंने एक बार नहीं दो बार नोबेल पुरस्कार की उपलब्धि को अपने नाम किया। वह यूनिवर्सिटी आंफ पेरिस की पहली महिला प्रोफेसर भी रहीं। अपने पति पियरे क्यूरी और हेनरी बेक्यूरेल के साथ मिलकर रेडियोधर्मी कणों और उसके पीछे के सिद्धांत का पता लगाया। रेडियोधर्मिता शब्द उनका ही दिया हुआ है विज्ञान को। वह सभी जांचों में अपने टीम का नेतृत्व कर रही थीं। उन्होंने पोलोनियम और रेडिम की खोज भी की। आइसोटोप शुरू करने का विचार भी मैरी का ही था। उन्होंने पेरिस और वारसां में क्यूरी संस्थान की स्थापना की। उन्होंने रेडियोधार्मिता के खतरों का आकलन नहीं किया था वह इससे बिल्कुल ही अनजान थी। लंबी अवधि तक विकिरणों के संपर्क के कारण अप्लास्टिक एनीमिया से उनकी मौत हुई। उनके जर्नल और शोधपत्र भी इतने रेडियोधर्मी हैं कि उन्हें भी सीसे के बक्से में रखा जाता है।

रसायन वैज्ञानिक आइरीन क्यूरी-जोलिओट

महान वैज्ञानिक मैडम क्यूरी की बेटी आइरीन ने अपने काम के बूते पर अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कृत्रिक रेडियोधर्मिता की खोज की। जब वह डाक्टरेट की उपाधी ले रही थी तब उनकी मुलाकात जोलियोट से हुई। उन्होंने जोलियोट से निवेदन किया कि वह रेडियोधर्मी रसायनों के अध्ययन में प्रयोगशाला तकनीक विकसित करने में उनके साथ आए और साथ मिलकर काम करे। आइरीन क्यूरी को भी अपनी मां मैडम क्यूरी के तरह उनके बेहतरीन काम के लिए नोबल पुरस्कार मिला। पूरी दुनिया में क्यूरी परिवार सबसे अधिक नोबेल पुरस्कार जीतने वाला परिवार है। उनके बच्चे हेलेन और पियरे भी नामी वैज्ञानिक है और विज्ञान की सेवा में समर्पित है। इस परिवार की वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता और विवेक का पूरी दुनिया अभारी है।

जीवाश्म विज्ञानी मैरी एनिंग

मैरी एनिंग समुद्र के किनारे पाए जाने वाले शंख और सीप पर किए गए शोध कार्यो के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। उन्होंने बताया कि वे जीवाश्म हैं। मैरी ने पृथ्वी के इतिहास के बारे में वैज्ञानिक समुदाय की समझ बढ़ाने में मदद की। एनिंग ने डोरसेट में इंग्लिश चैनल के सहारे बनी चट्टानों पर जीवाश्म अध्ययन किया। उन्होंने पहली बार मीनसरीसृप कंकाल को दुनिया के सामने पेश किया। लिंगभेद के कारण उन्हें 19वीं सदी के वैज्ञानिक समुदाय का सदस्य ही स्वीकार नहीं किया गया। वर्ष 2010 में रायल सोसायटी ने उन्हें विज्ञान में सबसे प्रभावशाली ब्रिटिश महिलाओं की सूची में शामिल किया।

भौतिक विज्ञानी लीज माइटनर

लीज माइटनर और ओटो हैन ने बेहतरीन कार्य नहीं होता तो परमाणु ऊर्जा और हथियारों की दुनिया संभव नहीं होती। दोनों ने मिलकर विखंडन प्रक्रिया की खोज की, जिससे विशाल मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलती है। वैज्ञानिक खोजो में महत्वपूर्ण भूमिका निभने के लिए हैन को वर्ष 1944 में रसायन का नोबेल पुरस्कार मिला, पर माइटनर को नजरअंदाज किया गया। हालांकि कई वैज्ञानिकों और पत्रकारो ने नोबेल समिति के इस निर्णय का विरोध किया। नोबेल समिति ने अभी तक उनके कामों को मान्यता नहीं दी। वह जर्मनी में फिजिक्स की प्रोफेसर बनने वाली पहली महिला थी। उन्हे बर्लिन अकेडमी आंफ साइंसेस की ओर से लाइवनिट्स पदक से सम्मानित किया जा चुका है। रसायन तत्व 109 माइटनेरियम का नाम उनके नाम से ही लिया गया है।

खगोल भौतिक विज्ञानी जोसेलिन बेल बरनेल

जोसेलिन बेल बरनेल भी उन महिला वैज्ञानिकों में से है जिनको नोबेल केमेटी ने नजरअंदाज किया। 1967 में रेडियो पल्सर की खोज की और विश्लेषण शुरू किया। जब इसके बारे में उनके शोध पर्यवेक्षक एंटनी हेविश को पता चला तब उन्होंने कहा उनकी खोज केवल मानव निर्मित हस्तक्षेप का परिणाम है। हेविश ने इस घटना को एक पेपर में प्रकाशित करवाया। बरनेल इसके पांच लेखकों की सूची में दूसरे स्थान पर थीं। नोबेल पुरस्कार हेविश और मार्टिन रेयल को दिया गया। कई वैज्ञानिकों ने इस निर्णय का विरोध किया। बरनेल ने टेलीस्कोप के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कोशिका आनुवांशिक विज्ञानी बारबरा मैकक्लिंटांक

बारबरा मैकक्लिंटांक की बदौलत पूरी दुनिया जानती है कि क्रोमोसोम किस तरह से काम करते हैं। उन्होंने आनुवांशिकी पर फोकस किया और मक्के के लिए पहला आनुवांशिक नक्शा तैयार किया। इससे पता चला कि किस तरह से क्रोमोसोम शारीरिक लक्षणों को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि जीन्स के कारण शारीरिक विशेषताओं में बदलाव आ सकता है। उनका शोधकार्य अपने समय से काफी आगे था। जिसके कारण उनके काम की काफी आलोचना की गई। आखिर उन्होंने 1953 में अपना कार्य प्रकाशित करना बंद कर दिया। सौभाग्य से इसकी पुन: खोज हुई और उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला।

प्रीमैटोलॉजिस्ट जेन गुडॉल

महिला वैज्ञानिकों में अपने समय में सेलिब्रिटी रही हैं- जेन गुडाल। गुडाल चिम्पांजी का अध्ययन करने के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हुई। यह ख्याति उन्हें किसी सेलिब्रिटी के तरह रातों-रात नहीं मिली थी। इसके लिए उन्होंने तंजानिया में जंगली चिम्पांजियों के सामाजिक और पारिवारिक संबंधों का 55 वर्ष तक अध्ययन किया। गुडाल बचपन से ही चिप्पांजियों को लेकर काफी उत्सुक रहीं। उन्होंने केन्या के प्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी लुइस लीके के साथ काम किया। लीके ने गुडास को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी डिग्री प्राप्त किए बिना ही पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली।

नोबेल में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी अब तक मात्र 3.29 प्रतिशत ही है, जो यह साबित करता है कि विज्ञान के दुनिया में महिलाओं की जगह अभी भी वैसी जगह नहीं है। पर महिलाएं अपने को साबित करने के लिए नोबेल के लिए कहां ही रूकती हैं? वह डटी रहती हैं और आगे बढ़ती रहती हैं और मिसाल कायम भी करती हैं, मिसाल बन भी जाती हैं।

इमेज सोर्स: ऑथर द्वारा 

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