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यदि हमारी बहू ख़ुश नहीं है तो हम ख़ुशी-ख़ुशी दीवाली कैसे मनाएँगे?

मोक्षा, यह ससुराल में तुम्हारी! पहली दीवाली है और लक्ष्मी पूजा घर की लक्ष्मी के बगैर कैसे होगी? तुम दीवाली के बाद भाई दूज पर अपने मायके चली जाना।

मोक्षा, यह ससुराल में तुम्हारी! पहली दीवाली है और लक्ष्मी पूजा घर की लक्ष्मी के बगैर कैसे होगी? तुम दीवाली के बाद भाई दूज पर अपने मायके चली जाना।

देशी घी की खुशबू पूरे घर में फैली थी। मेरी माँ और मोक्षा भाभी किचन में बेसन के लड्डू बनाने में लगी थीं। शांता बाई का बेटा अंकुर सुबह से किचन के चक्कर काट रहा था। लड्डू उसे बहुत पसंद थे, पर उसे पता था कि माँ बिना पूजा किये लड्डू नहीं देंगी। लेकिन लड्डू की खुशबू उसे बार-बार किचन की ओर खींच लेती।

सारी मिठाई बन चुकीं थी। माँ बाहर शांता बाई के साथ व्यस्त हो गईं।

“शांता, जल्दी से जाले निकाल दे और पुराना कबाड़ा सब बेच देना आज। दीवाली में अब दिन नहीं बचे हैं। कल तक सब कुछ सेट हो जाना चाहिए।”

शांता बाई दीवाली की सफाई में जुटी थीं। घर में पेंटिग हो चुकी थी और पूरा घर चमक रहा था पर बहुत सारा टूटा-फूटा सामान निकल आया था। मैंने पूरे सामान को एक बार गौर से देख लिया कहीं मेरा कुछ सामान तो नहीं है। हर साल कबाड़े के साथ भी मोह हो ही जाता है।

मैंने देखा मोक्षा भाभी पुरानी सी एक वाल हैंगिंग को हाथ में लिए घूर रही थीं। तभी माँ ने कहा, “अरे मोक्षा, यह सब पुराना हो गया है। पुराने सामान से क्या मोह करना? सब फिंकवा दे शांता से। इस बार तुम्हारी पहली दीवाली है। सब कुछ नया! मेकओवर किया है हमने घर को!”

मोक्षा भाभी ने धीरे से हाँ में सर हिलाया और अंदर चली गईं।

पिछले साल ही मेरे भैया रूद्र की लव मेरिज हुई थी और जब से मेरी भाभी मोक्षा घर आईं तब से वह पूरे घर की चहेती बन गई थीं। हम दोनों तो बेस्ट फ्रेंड बन गए थे। लोग हमें ननद-भाभी नहीं बल्कि दोस्त ही समझते थे। पर मैं पिछले सप्ताह से देख रही थी मोक्षा भाभी का मूड कुछ उखड़ा सा था। मैंने पूछने की कोशिश भी की पर उन्होंने टाल दिया।

दोपहर में मोक्षा भाभी सारे काम निपटा कर माँ के कमरे में पहुँचीं और चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गईं। माँ ने उन्हें ऐसे बैठे देखा तो पूछ लिया, “क्या हुआ मोक्षा तबियत सही नहीं है क्या?”

“नहीं माँ, तबियत सही है पर मैं आपसे एक परमिशन लेने आई हूँ। माँ मैं दीवाली अपने मम्मी-पापा के साथ मनाना चाहती हूँ।”

माँ चुपचाप सुनती रहीं फिर धीरे से बोलीं, “मोक्षा, यह ससुराल में तुम्हारी! पहली दीवाली है और लक्ष्मी पूजा घर की लक्ष्मी के बगैर कैसे होगी? तुम दीवाली के बाद भाई दूज पर अपने मायके चली जाना।”

“जी माँ!” कहकर मोक्षा भाभी बाहर निकल आई।

मैंने उन दोनों की पूरी बात सुनी। अब मैं बात समझ गई। मोक्षा भाभी अपने माता-पिता की इकलौती बेटी हैं और पहली बार उन दोनों से दूर हुई थीं। मैंने मन में सोच लिया कि मैं अपनी भाभी की पहली दीवाली अनोखी दीवाली बनाऊँगी।

शाम को जब रूद्र भैया और पापा घर आये तो मैंने पूरी बात उन दोनों को बताई। माँ भी बाहर आ गई थी।

“माँ-पापा, आप दोनों से एक बात पूछना चाहती हूँ। कल जब मेरी शादी होगी तो मैं भी तो आपसे मिलने का इंतजार करुँगी और यदि आपसे नहीं मिल पाऊँगी तो क्या बीतेगी मुझ पर और आप पर भी? सामान पुराना होने पर फेंक सकते हैं पर रिश्तों को नहीं तोड़ा जाता। आप को भी भाभी की हालत समझनी चाहिए। पहली बार वो अपने माँ पापा से दूर हुई हैं। कितना अच्छा हो आप उन्हें दीवाली मनाने उनके मायके भेज दें?”

माँ-पापा भी मेरी बात सुनकर चुप हो गए और अंदर चले गए। मैं भी बात नहीं बढ़ाने के इरादे से चुप हो गई।

दीवाली के दिन माँ ने दरवाजे पर तोरण बांधे और मंदिर सजा दिया। मैंने और भाभी नए कपड़े पहन के मिट्टी के दिए धो के रख रहे थे। सारी तैयारी हो चुकी थी बस पूजा करनी बाकी थी तभी मैंने देखा माँ जल्दी से बाहर की ओर चली गईं।

अचानक मोक्षा भाभी खड़ी हो गईं और जोर से चिल्लाईं, “पापा मम्मी, आप!”

मैंने मुड़ कर देखा भाभी के मम्मी पापा और मेरे माँ पापा साथ खड़े थे।

“हाँ मोक्षा!” माँ ने कहा, “आज से हम सभी दीवाली साथ में मनाएंगे, इस बार यहाँ और अगली बार तुम्हारे मायके में। बेटा यह घर तुम्हारा है और हम सब भी तुम्हारे हैं यदि हमारी बहु खुश नहीं है तो हम कैसे दीवाली ख़ुशी ख़ुशी मनाएँगे? आज से कभी मत सोचना कि तुम्हारे मम्मी-पापा अकेले हैं।  इस दीवाली मेरा तुमसे वायदा है कि जितना तुम इस घर की हो उतना ही अपने मम्मी पापा की हो और रहोगी। आज से सभी त्यौहार पर तुम्हारे माँ-पापा अकेले नहीं होंगे। उनकी बेटी हमारी ख़ुशी है और उनकी खुशियाँ हमारी ज़िम्मेदारी हैं। बहू की ख़ुशी ससुराल की ख़ुशी होगी।”

यह दीवाली हम सब के लिए अनोखी दीवाली बन गई। मोक्षा भाभी पूरे घर में चहकती घूम रही थीं।  उनके चेहरे की चमक अलग ही दिख रही थी।

अपने पाठकों से यही कहूँगी कि त्योहारों पर सबकी ख़ुशी मायने रखती है। यदि परिवार का एक भी सदस्य खुश नहीं है तो त्यौहार ख़ुशी का कारण नहीं हो सकते। इसलिए सभी की ख़ुशी को महत्त्व दीजिए।

शुभ दीवाली!

इमेज सोर्स: From Author 

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About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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