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ऐसे आदमी से तो बिना आदमी के अच्छी हूँ मैं…

यूं तो विमला मेरे घर काम करने आती है पर हम दोनों एक दूसरे से अपने मन की कह लेते हैं, वरना इस चार दीवारी में मेरा दम कब का घुट गया होता।

यूं तो विमला मेरे घर काम करने आती है पर हम दोनों एक दूसरे से अपने मन की कह लेते हैं, वरना इस चार दीवारी में मेरा दम कब का घुट गया होता।

घड़ी में 11 बज चुके हैं और मैं कभी घड़ी की और देखती तो कभी दरवाज़े की ओर। विमला अभी तक नहीं आई थी। कल जब घर आई थी तो बहुत उदास और परेशान थी। पूछने पर सिर्फ इतना कहा, “आरोप लगात हैं, हमाए ऊपर। कहत हैं कि काम के बहाने जाने कहाँ जाती हो।”

 इतना कहते-कहते वो रोने लगी और मैं उससे न ही कुछ और कह पाई और न ही पूछ पाई। 

यूं तो विमला मेरे घर काम करने आती है पर हम दोनों एक दूसरे से अपने मन की कह लेते हैं, वरना इस चार दीवारी में मेरा दम कब का घुट गया होता। यहाँ कोई बोलने-बताने वाला भी तो नहीं है। घर की दीवारें काटने को दौड़ती हैं। मन करता है कहीं भाग जाऊँ, पर कहाँ जाऊँगी? कहाँ रहूँगी? क्या करूँगी?

मेरे माँ-बाप ने  मेरी पढ़ाई से ज्यादा पैसा तो मेरे दहेज़ देने में लगा दिया और मुझे हमेशा सपनों के राजकुमार की कहानियां सुनाते रहें कि जब शादी हो जाएगी न तब करना सब। और शादी के बाद कहानी में जो राजकुमार राजकुमारी को कैद से छुड़ाता था, उसी राजकुमार ने राजकुमारी को कैद कर दिया है। अब किसे रखूँ मैं? अपना दम घोट दूं या अपने सपनों का?

कभी-कभी मन करता है कि बस सोती रहूँ और सोते वक्त आने वाला वो सपना कभी न टूटे, जहाँ मैं खिलखिलाते हुए न जाने कितने पहाड़ों की सैर कर आई हूँ और न जाने कितने समुद्रों में तैर आई हूँ। पर वास्तविकता सपनों से बहुत अलग है कि डोरबेल बजती है और मेरा सपना टूट जाता है…

“अरे! आ गईं तुम? मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी।” 

विमला ने कहा, “आएंगे नहीं तो खायेंगे क्या? अभी कुछ हारी बीमारी हो जाये तो किसके सामने हाथ पसार देगें और कौन देदेगा हमें रुपया? हमें फर्क नाही पड़त कहत रहो जो कहना हो। हम जानत हैं हम का करत है और का ना ही।”

 एक सांस में ये कहने के बाद विमला अपना काम करने लगी। 

वो दो बच्चों की माँ है हालांकि अभी बचपना उसका भी नहीं गया है। छोटी-छोटी बातों पर ऐसे खिलखिलाकर हँसती है जैसे कोई छोटा बच्चा आई! त्या! करने पर किलकारियां मार कर हँसने लगता है। वक्त ने उसको बहुत सब्र और बहुत मजबूत बना दिया है।

“अब क्या होगा दीदी? से अब जो होगा देखा जायेगा” तक मैंने उसे अपनी आँखों से देखा है। विमला की बातें और कहानी कभी-कभी मुझे बहुत हिम्मत देतीं हैं। कैसे उसने अपने पति को शराब पीकर आने के बाद तीन दिन तक घर में नहीं घुसने दिया था।

कैसे पति के मारने पर उसने भी एक ज़ोरदार चाटा अपने पति के मार दिया था और कहा था, “अबकी बार मारा तो इससे ज्यादा तेज़ पड़ेगा। तेरी कमाई नहीं खात हैं हम और मेरे हाँथ पैर अभी सही है, मेहनत मजदूरी करके गुजर हो जाएगी। ऐसे आदमी से तो बिना आदमी के अच्छे।”

ये शब्द उस रात  जिस दिन मैंने फैसला लिया कि ऐसे आदमी से तो बिना आदमी के अच्छे! मेरे कानों में रात भर बजते रहे और मुझे सुनाई देती रहीं, अपनी चीखें, अपने आसूँ  और वो सिसकियां जो 5 सालों से  मेरे साथ कैद हो जाती थीं एक कमरे में हर रात।

 मैंने उस रात खुद को चुना था और जो भी जमां पूँजी थी मेरे पास उससे मैंने होम बेकरी खोली थी जिसका नाम था ‘फ्लाई बर्ड’।  इस बात को करीब 8 साल हो गए हैं अब होम बेकरी के साथ-साथ ‘फ्लाई बर्ड’ कैफ़े भी बन गया है और अब तो विमला के साथ साथ 10 महिलाएं और भी मेरा हाँथ बटाया करती हैं। 

विमला का पति अब उसके साथ नहीं रहता। एक दिन शराब पीकर विमला को बहुत मारा पीटा तो विमला में पुलिस में शिकायत करदीं और फिर उसे कभी अपने घर में नहीं घुसने दिया।

‘फ्लाई बर्ड’ बहुत तेज़ी से उड़ रहा है और हमनें अपने कैफ़े में ‘आत्मसम्मान’ नाम का एक बगीचा भी लगाया है। जिसे हम रोज़ बड़ी मेहनत से सीचतें हैं ताकि ‘फ्लाई बर्ड’ वहाँ थोड़ा सा आराम करने के बाद और तेज़ी से उड़ सके…

इमेज सोर्स : Urdu Studio: Tumhare khat me ek naya: Daag Dehlavi: Aditi Kalkunte with Manish Gupta/YouTube

 

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