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टुकटुकी दास और उनकी एम.ए इंग्लिश चायवाली का बुलंद सफर उनके मन में उसी दिन शुरू हो गया, अपनी अलग ब्रांड वाली चाय का एक टी स्टॉल बनाना!
टुकटुकी दास और उनकी एम.ए इंग्लिश चायवाली का बुलंद सफर उनके मन में उसी दिन से शुरू हो गया, अपनी अलग ब्रांड वाली चाय का एक टी स्टॉल बनाने के लिए!
टुकटुकी दास!
इस नाम में अलग कुछ नहीं है। ना ही उनकी इंग्लिश में फर्स्ट क्लास वाली एम.ए डिग्री में। अनगिनत लड़कियाँ हर साल इस देश में ऐसे ही किसी न किसी विषय पर एम.ए पास करतीं हैं। फिर उनका क्या होता है? ज्यादातारों की शादी और बचे-खुचे कुछ नौकरी की तलाश में खोती रहती हैं अपनी जूतों के सोल। कभी सिस्टम को, कभी समाज और परिवार को, तो कभी अपने नसीब को कोसती हुयीं यह बस लड़कियाँ खो जातीं हैं गृहस्थी नाम की मझधार में।
घिसीपिटी इस कहानी से टुकटुकी की ज़िन्दगी अलग नहीं थी, किसी माईने से।
जैसे उनका परिवार पश्चिम बंगाल में, हाबरा नाम के छोटे शहर में बसतें हैं। पिता प्रशांत कभी अपने मामूली सा किराने का दुकान चलातें है, तो कभी वैन-रिक्शा। माँ देविका है हाउसवाइफ, बड़े भाई छोटेमोटे काम करते हैं इधर-उधर। मतलब किसी भी ओर से टुकटुकी ने अपने घर में कभी आर्थिक सहूलियत नहीं देखी। पर उन्हें अपने पैरों पर कैसे भी हो खड़ा होना था।
एक साल पहले टुकटुकी ने रवींद्रभारती विश्वविद्यालय से इंग्लिश साहित्य में 61% नम्बर के साथ एम.ए किया। फिर शुरू हुई नौकरी की तलाश। पर तमाम कोशिशों के बाद भी टुकटुकी की हाथों में हताशा के सिवा कुछ नहीं लगा।
पर टुकटुकी को ऐसे हार कर बीच रास्ते से वापस आना मंज़ूर नहीं था, क्योंकि वह आर्थिक रूप से खुदको और अपने परिवार को सशख़्त बनाने का सपना देखती रहीं हमेशा। टुकटुकी फिर सोशल मीडिया और यु ट्यूब में कम पैसों से सम्भव होने वाले व्यवसायिक उद्योगों के बारे में खोज-पड़ताल करना शुरू की।
इस दौरान अचानक उनकी नज़र ‘एम.बी.ए चायवाला‘ ब्रैंड के जनक और सफल एंटरप्रेन्योर प्रफुल्ल बिल्लोर की कहानी पर पड़ी। प्रफुल्ल की सोच और सफलता से टुकटुकी सिर्फ प्रोत्साहित ही नहीं हुयीं, पर उनके इरादे भी और पक्के हो गये। उन्हें भी अब हर हाल में ऐसे ही अपनी छोटी सी एक चाय की स्टॉल शुरुआत कर अपना अलग ब्रैंड बनाना था। टुकटुकी और उनकी “एम.ए इंग्लिश चायवाली” की बुलंद सफर उनके मन में उसी दिन से शुरू हो गई।
अपने चारों ओर देख कर टुकटुकी खूब समझ गयीं कि चाय की बिक्री इस देश में कभी कम नहीं होनेवाली है, तो खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए, इससे बेहतर कम पूंजीवाला ऑप्शन भी नहीं होनेवाला। पर रास्ते की शुरुआत स्वाभाविक रूप से ही सुगम नहीं थी। सबसे पहले, सबसे भारी भरकम बाधा घर से ही आयी। अपने जवान और एम.ए पास बेटी से चाय स्टॉल खोलने और अकेले उसे चलाने की प्लान सुन कर घरवालों ने साफ मना कर दिया।
उठे वही पुराने सवाल, “जवान लड़की हो कर बाहर चाय बेचोगी?”
“इतनी पढ़ी-लिखी हो कर आखिरकार चाय का दुकान?”
“अपने ही इलाके में?”
“लोग क्या कहेंगे?”
“बुरे लोग तुमसे बुरा सुलूक करेंगे तो खुद को कैसे बचाओगी?”
पर टुकटुकी जानती थीं कि वह हर हाल में सही है, क्योंकि अनिश्चित समय तक उनके लिए नौकरी ढूंढ कर हताश होते रहना और फिर लाचार हो कर शादी कर लेना असंभव है। उन्होंने महीनों तक घरवालों को प्रफुल्ल बिल्लोर समेत विश्वभर के अनेकों ऐसे ही उच्च शिक्षित लोगों के वीडियो दिखाईं और खबरे पढ़ कर सुनाई जो अपने हटके से उद्योगों से अपना अलग पहचान बनाने में सफल हुए हैं।
टुकटुकी ने अपने माँ-बाप को वही पुरानी बातें फिर से समझाईं, कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, ना शिक्षागत योग्यता से आर्थिक सफलता का है कोई सम्बंध, ना ही कोई ज़रूरत है लोगों की बेबुनियाद बातों को तवज्जो दे कर अपनी राह रोकने की।
आखिरकार महीनों की मशक्कत के बाद माँ-बाप टुकटुकी की फौलादी इरादों के सामने हार मान गए।
अब शुरू हुया संघर्ष का दूसरा पड़ाव। एक तो जवान लड़की, ऊपर से एम.ए. पास। टुकटुकी को हाबरा में कोई भी दुकान किराये पर नहीं देना चाहते थें। अपनी फेसबुक हेंडल पर लंबे समय तक उन्होंने एक छोटी सी जगह अपनी दुकान के लिए ढूंढ़ी।
लोगों ने कहा, दुकान चलाने जैसा कठिन काम शांत स्वभाव की टुकटुकी से नहीं होगा। पर इरादों की पक्की इस लड़की को काफी जद्दोजहद के बाद हाबरा रेलस्टेशन की 2 नम्बर प्लेटफार्म में 4फिट/4 फिट की एक तिनका सा स्टॉल 1800 रुपये प्रति महीने किराये में मिल ही गया। उन्होंने अपनी दुकान की आइकोनिक नाम सहित एक अनोखा फ्लेक्स छपवाया और 2 नवंबर से शुरू कर दी अपनी चाय की स्टॉल “एम.ए इंग्लिश चायवाली”।
इसी नाम की एक यूट्यूब चैनल भी उन्होंने शुरू किया है, जहाँ वह वलोग के रूप में अपने रोज़ाना सफर को कर रहीं है रिकॉर्ड।
टुकटुकी दास ने उत्तर 24 परगना के हावड़ा स्टेशन में एक चाय की दुकान खोली। टुकटुकी की स्टॉल में 5 रुपये से ले कर 35 रुपये तक बहुत से किस्म की चाय और कुछ एक स्नैक्स मिलती है। 2 नवम्बर शुरुआत के दो घण्टे उन्होंने स्टेशन पर आते जाते लोगों की फीडबैक पाने के लिए मुफ्त में चाय भी पिलाई। ज़ाहिर सी बात है, जबसे टुकटुकी की यह व्यतिक्रमी पहल मीडियावालों की नज़र में आई है, तब ही से वह उत्तर 24 परगना के हावड़ा स्टेशन की एक नई सेलिब्रिटी बन चुकीं है। इंग्लिश बोलनेवाली, एम.ए पास इस ‘चायवाली’ को देखने, उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी सुनने और चाय पीने अब तमाम मीडिया और आम लोगों की होड़ अब हावड़ा स्टेशन की 2 नम्बर प्लेटफॉर्म में लगी रहती है।
टुकटुकी ने कहा, उन्हें अब बस अपनी टी-स्टॉल को हर तरीके से विकसित करके खुद की एक अलग ब्रैंड और पहचान बनानी है। कोविड, बेरोज़गारी और बाकी सारे संकट के स्थिति में पश्चिम बंगाल हो या पूरे देश से, ऐसे आम, बेरोज़गार शिक्षित नवजवानों के लिए हर तरीके की एक अच्छी वेतनवाली नौकरी मोलने की सपना असंभव होते जा रहा है।
मीडिया में हर ओर अब ज़्यादातर नकारात्मक खबरें ही छायी रहती है। अंधेरे के इस आलम में टुकुटुकी जैसी सशख़्त किरदारों के बिना किसी बहाने के खुद के लिए एक नया रास्ता खोजना और उस पर डट कर चलना, बेशक़ हताशा में डूबे अनगिनत भारतीय युवाओं के लिए एक नया क्षितिज खोल देता है। एक बेहद आकर्षक ब्रैंड नेम, दिलकश टैग लाइन और पोस्टर्स, अक्लमंद विज्ञापन स्ट्रेटेजी और अपने सपने को सच करने की अटल फौलादी हौसला.. टुकटुकी दास को ज़िन्दगी अब नहीं हरा पाएगी आगे कभी।
इमेज सोर्स : YouTube, MA English Chaiwali
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