कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

ना मायका न ससुराल, कोई घर नहीं मेरा!

छह गज की साड़ी में मायके की इज्ज़त लिए,आंखों में बिना कोई सपना पाले नए जीवन का,चल दी ससुराल की ओर एक नए घर को संवारने। 

मायके से बाबुल की दुआओं का लेक्चर लिए,
पिटारी में खानदान की सामग्रियों को सहेजे,
छह गज की साड़ी में मायके की इज्ज़त लिए,
आंखों में बिना कोई सपना पाले नए जीवन का,
चल दी ससुराल की ओर एक नए घर को संवारने।

छुटपन में बाल सुलभ आदतों से नाता तुड़ाया,
जवानी में समाज के आदर्शों का ताना-बाना समझाया,
गलती होने पर प्यार की जगह दुत्कार मिली ये कहकर,
ससुराल में जाएगी तो मायके की नाक कटाएगी।

बचपन से जिस घर को अपना समझा उसने,
बड़े होते ही पता चला कि ये तो अपना नहीं पराया है,
ससुराल ही तेरा अपना असली घर है।

ससुराल की चारदीवारी में खुद को उसने कैद पाया,
समझ नहीं आया अपना घर कैदखाना कैसे हुआ?
ना विचारों में कोई उसे पूछता ना रिवाज़ों में,
बनकर बुत सी सजती वो बस त्योहारों में।

अरे! कौन सा घर है मेरा इस संसार में,
कौन मुझे आकर ये बात बतलाएगा?
जीवन के इस मौलिक सार को कौन मुझे समझाएगा?

इमेज सोर्स : Rajat Sarki via Unsplash

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

80 Posts | 402,353 Views
All Categories