हमारे साथ मौजूद हैं विमेंस वेब-हिंदी के टॉप लेखक जिनको आज हम तहे दिल से धन्यवाद देते हैं। कुछ दिन पहले हमने इनके साथ एक लाइव किया था। पेश है उस लाइव के कुछ अंश, ख़ास आपके लिए।
हमारे साथ मौजूद हैं विमेंस वेब-हिंदी के टॉप लेखक जिनको आज हम तहे दिल से धन्यवाद देते हैं। कुछ दिन पहले हमने इनके साथ एक लाइव किया था। पेश है उस लाइव के कुछ अंश, ख़ास आपके लिए।
एकता ऋषभ: मैं वाराणसी से हूं। लिखना-पढ़ना मुझे बचपन से ही बहुत पसंद रहा है और महिला मुद्दों पर लिखना मेरा फेवरेट टॉपिक है। इस मंच से जुड़कर मैंने अपनी आवाज़ को, जो मेरी भावनाएं हैं उनको लिखा और मुझे बहुत खुशी होती है। इस मंच ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। मुझे बहुत सपोर्ट भी किया। विमेंस वेब से जुड़कर मुझे बहुत खुशी हुई। हर तरह से यहां मेरी ग्रोथ ही हुयी है, एक लेखक के तौर पर और एक पर्सन के तौर पर…
प्रशांत प्रत्यूष: मेरा नाम प्रत्युष प्रशांत है। मैं वूमेंस वेब पर काफी समय से लिख रहा हूं। मैं देख रहा था कि महिलाओं के मुद्दों पर इतनी राइटिंग नहीं हो रही है तो मैंने फिर अपनी राइटिंग में डायवर्सिटी लाने की कोशिश की इस प्लेटफार्म पर मैंने फिल्म रिव्यूज पर काफी कम किया है। खासकर, हाल के दिनों में महिलाओं के ऊपर काफी फिल्में बन रही हैं, वेब सीरीज़ आ रही हैं। वह दावा करती हैं की वह वूमेंस के बारे में है पर उसमें भी डाइवर्सिटी को एड्रेस नहीं किया जाता है तो वीमेंस इश्यूज की डायवर्सिटी को लोगों तक पहुँचानें के लिए मैंने इस प्लेटफार्म पर लिखना शुरू किया। काफी मज़ा आया। जिस तरह के रीडर्स और जिस तरह के व्यूज मिले, मुझे तो अच्छा लग रहा है प्लेटफार्म पर वीमेन्स इश्यूज को डिफरेंट एंगल से देखना उन पर लिखना उसके लिए धन्यवाद विमेंस वेब का।
अनुराधा अग्निहोत्री: मैं विमेंस वेब की टीम को धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने यह अवसर हमें दिया। मेरा लेखन विमेंस वेब से जुड़ा क्योंकि यहां ऐसी समस्याओं को भी दिखाया जाता है जिन्हें लोग समस्या नहीं समझते हैं लेकिन औरत की जिंदगी में वह क्या नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगा और हर तरह के टॉपिक्स को इसमें विशेष सम्मान दिया जाता है कि हाँ, यह भी एक समस्या है। ऐसा नहीं कि यह रोज़मर्रा की जिंदगी है और चली आ रही है कि हाँ आपको यह करना ही है। मुझे बहुत अच्छा लगा यह देख कर और मैं यहाँ से जुड़ना चाही और मुझे काफी सफलता भी मिली है। आपके मंच में मेरी जर्नी बहुत लंबी नहीं है कुछ ही समय पहले लिखना शुरू किया है। पढ़ने का शौक था लेकिन लिखा कभी नहीं था। अब लिखना शुरू किया है तो देखते हैं कहां तक ले जाएगा।
रागिनी अजय पाठक: मैं एक सामान्य गृहणी हूं। मेरा नाम रागनी अजय पाठक है तो जो नाम आता है ‘अजय’ अजय मेरे हस्बैंड का नाम है जो मैं अपने साथ लेकर चलती हूं क्योंकि वह भी वूमेंस इश्यूज पर बहुत सपोर्टिव हैं और मैं तीन खूबसूरत बेटियों की माँ हूं।
मैं मुंबई महाराष्ट्र थाना से हूं। अपने फादर की जॉब की वजह से मैं वाराणसी रही, दिल्ली भी रही, गाजियाबाद भी रही तो इसलिए बहुत सारे वूमेंस इश्यूज को मैंने देखा है बहुत पास से देखा है। वीमेन्स इश्यूज की जब मैं बात करती हूँ तो ये मैं दिल के बहुत करीब है क्यूंकि विमेंस वेब एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां आप महिलाओं के हर मुद्दे पर खुलकर लिखते हो। मुझे बहुत सारी प्रोत्साहन मिली, बहुत सपोर्ट मिला इस मंच से और मुझे हर तरह से यह मंच बहुत पसंद है क्योंकि मैं हर मुद्दे पर बहुत खुलकर लिख पाती हूं। चाहे वह घरेलू समस्या हो, सामाजिक समस्या हो, या आपके व्यावहारिक जीवन में हो या प्रोफेशनल, हर समस्या को बहुत खुलकर बहुत बारीकी से लिख सकते हैं और यहां इसको सुना जाता है और उसको प्रकाशित भी जिस तरीके से किया जाता है, वह नए लेखकों के लिए प्रोत्साहन बन जाता है। यह इस मंच की विशेषता है जिसने मुझे बहुत आकर्षित किया।
सोमा सुर: मैं इलाहाबाद में पली-बड़ी हूं और अभी मैं चंडीगढ़ में रहती हूं। हस्बैंड मेरे फोर्स में हैं तो ऑल ओवर इंडिया में हम लोग घूम चुके हैं। अब बच्चों की वजह से बच्चों के साथ मैं चंडीगढ़ में रहती हूं और वह अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। मेरा लेखन का सफर शुरू हुआ 2015 से सक्रीय लेखन मैंने स्टार्ट किया और विमेंस वेब पर मैंने 2017 से लिखना शुरू किया तो विमेंस वेब क्यों पसंद है मुझे? इसलिए पसंद है कि जब भी महिला के विषय में कोई भी लेख लिखता है, कोई लेखिका हो, कोई लेखक हो वह हमेशा एक महिला को अबला एक निसहाय दिखाते हैं लेकिन यहां हम इस तरह से प्रेजेंट करते हैं कि एक लड़की है या औरत है या जो भी है किसी भी एज ग्रुप की है, उसके खुद के राइट्स हैं।
जीवन जीने के समाज में रहेगें तो राइट को जानना बहुत ज्यादा जरूरी है तो इस मंच से हम उसे चीज को बहुत बेहतर तरह से बता सकते हैं। दूसरे वेबसाइट्स पर सिर्फ महिलाओं के घर की बातें, सास-बहु के झगड़े यह सब ही है लेकिन महिलाएं अब आगे बढ़ चुकी है। उनकी ऑफिस में भी प्रॉब्लम्स होती हैं एक लड़की को उसकी समानता का अधिकार है और समानता का अधिकार तभी होगा जब स्त्री और पुरुष साथ में चले। स्त्री को आगे बढ़कर भी समानता नहीं आएगी और पिछड़ा दिखाकर भी समानता नहीं आएगी तो यह मंच मुझे इसलिए बहुत पसंद है कि यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ पर मैं इस तरह की बातें कर सकती हूं और जो पाठक वर्ग है, वह इतना समृद्ध है की वह इसको समझ सकता है और पॉजिटिव में लेता है।
बबीता कुशवाहा: मेरा नाम बबीता कुशवाहा है और मैं छतरपुर मध्य प्रदेश से हूं और फिलहाल में एक हाउसवाइफ हूं कभी-कभी थोड़ा बहुत लिख लेती हूं। विमेंस वेब पर मेरा सफर लगभग डेढ़ साल का हो गया है। एक्चुअली मेरा लिखने का सफर अभी एक दो साल का ही हुआ है। मैं अपने आप को लेखक तो नहीं कहती लेकिन हाँ कभी-कभी थोड़ा बहुत लिख लेती हूं तो मैं ऐसे ही फेसबुक पर एक दिन स्क्रॉल कर रही थी तो मुझे कहानी का नाम याद नहीं है, मैंने किसी की कहानी पढ़ी। फिर होता है ना की अरे! वाह कितनी अच्छी कहानी है… कहाँ प्रसारित की गई है तो अपन इसको देखते हैं और मैंने एक के बाद एक इतने अच्छे मुद्दों पर इतनी अच्छी कहानियां पढ़ी कि मैंने एक ही दिन में तीन कहानियां पढ़ डाली। महिलाओं पर आधारित मुद्दों के बहुत ही कम प्लेटफार्म पर होते हैं बस मुझे यही कारण था कि मैं अपने आपको इसे जोड़ने पर रोक नहीं पाई और इस तरह से मैं आपसे जुड़ गई और आज आपने और आपकी टीम ने मुझे इतने प्यार और सम्मान से बुलाया है तो मैं बहुत आभारी हूं थैंक यू सो मच।
रागिनी: मेरे लेखन का सफर मेरी थर्ड डॉटर के बाद, मेरी तीन बेटियां हैं, स्टार्ट हुआ। मैंने समाज में देखा की बहुत सारी कॉम्प्लिकेशंस है और लेखन का सफर मेरे वहां से स्टार्ट हुआ जहां पर मुझे यह बताया गया की तीसरी बेटी क्यों? यह पढ़ी-लिखी होकर तुमने यह मूर्खता क्यों की और एक समय ऐसा भी मेरे सामने आया जब मैं भी इस बात के लिए राजी हो गई थी की अब अबो्र्ट कर देते हैं लेकिन उस दिन मेरे हस्बैंड मेरे साथ पिलर की तरह खड़े रहे। वे कहे कि सब लोग 2 बेटियों के बाद बेटा रख सकते हैं तो तीन बेटियां क्यों नहीं रह सकती घर में और हम क्यों नहीं उनको बड़ा कर सकते हैं?
उस समय मैं बहुत डिमोटिवेट थी समाज की बातों से। कहते हैं न नियर एंड डियर फ्रेंड्स जो होते हैं आपके, मैं उनकी बातों से बहुत हर्ट थी लेकिन उस टाइम पर मेरे हस्बैंड, मेरी मदर इन लॉ और बाकी के फैमिली मेंबर्स मेरे साथ बहुत स्ट्रॉगली खड़े रहे। फिर, मुझे जब मेरी डॉटर प्री मेच्योर थी, 26 वीक की, उस समय मेरे सामने बहुत सारी चीज़ें आईं। सबने कहा, “कोई बात नहीं, कुछ हो जायेगा तो दो बेटियां तो हैं ही।”
हस्बैंड वहां पर भी बोले कि इन बातों को हम इग्नोर करके अपने आप को सकारात्मक रखते हुए, हम कमजोर नहीं पड़ने देंगे। वो चीज़ मैंने सीखी और फिर मुझे यह समझ में आया कि जब आप परेशानी में हो जिसका सॉल्यूशन आपके पास नहीं है, तो बहुत खास आपके दोस्त, मित्र या परिवार उनका क्या रोल होना चाहिए? क्या एक लड़की होने के नाते उसको जीना का अधिकार नहीं है?
मैं अकेली रहती हूँ तो सब कहते हैं, “अरे! तीन दिन बेटियों को तो अकेले कैसे संभालोगी?” हस्बैंड तो बाहर रहते हैंजनरली, आउट ऑफ इंडिया । मेरे घर में कोई एक लड़का तो होना चाहिए मेल पर्सन तो होना चाहिए… क्यों?
मेरे हस्बैंड का क्वेश्चन यही था, क्यों? अगर हम नहीं सुधरेंगे तो हम समाज को क्या सुधारेंगे? अगर आज हम पढ़े लिखे हैं और हम उस प्रेशर में आते हैं और इस तरह के डिसीजन लेते हैं तो फिर हम कैसे समाज में बात कर सकते हैं कि नहीं भाई महिला पुरुष एक समान है और महिलाओं को भी आगे बढ़ना चाहिए। आपको गिल्ट नहीं होगा आपको अंदर से शर्मिंदगी नहीं महसूस होगी? आपकी अंतर-आत्मा होती है जो आपको कहीं ना कहीं पूरी उम्र धिक्कारेगी। मेरी बेटी को फंगल इन्फेक्शन था जिससे डॉक्टर ने कहा था कि वह सरवाइव नहीं करेगी तो हम पूरा टाइम हॉस्पिटल में बैठे होते थे तो मुझे लगा की नहीं इस टॉपिक पर हमें लिखना चाहिए और वहां से मुझे समझ में आया कि नहीं अब खुद स्ट्रांग बनो। आज जस्ट बिकॉज़ ऑफ माई हसबैंड कि वो पिलर की तरह खड़े रहे, आज सोसाइटी कहती है कि और माँ तो रागिनी के जैसी होनी चाहिए।
आज मैं लिखती भी हूं और मेरी बेटी भी बहुत हेल्दी है।
बबीता: मैं रागिनी जी की बातों से बिल्कुल सहमत हूं। वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त भी हैं। तो मतलब जैसे इंस्पिरेशन के लिए बोलते हैं ना कि बहुत से ऐसे राइटर्स होते जो समाज की वजह से ही लिखना शुरू करते हैं, उनकी आपबीती होती है या वह कहीं किसी को घटित होते हुए देखते हैं घटना को तो यह समाज मोटिवेट भी कर सकता है। तो एक लेखक सामाजिक मुद्दों से निकल कर बनता है । ऐसा मेरा मानना है और मैं अपनी पर्सनल बात करूं तो मैं अपना मोटिवेशन अपने पाठकों को मानती हूं क्योंकि जब मेरी लेखन की जर्नी शुरू हुई थी तो मैंने नहीं सोचा था कि मैं इतना आगे लिखूँगी। ऐसे ही मैंने शौक-शौक में फेसबुक डाल दी थी फिर जब पाठकों के कमेंट पढ़ते हैं ना अपन, फीडबैक पढ़ते हैं तो वह अनुभव जो होता है वह बयां नहीं किया जा सकता। कुछ ऐसा बोलते हैं कि आपने तो मेरे मन की बात लिख दी है। कुछ ऐसे कमेंट आते हैं कि आपने बिल्कुल मेरी कहानी लिख दी है। मेरे पाठक ही मुझको प्रेरित करते हैं कि मतलब हमारा लिखा हुआ अगर पसंद आ रहा है तो हम और लिखें। मोटिवेशन तो मेरे पाठक ही हैं। मैं पूरा श्रेय उनको ही देती हूं।
अनुराधा: मैं पढ़ने की शौकीन रही हूं। हमेशा सुनती हूं, पढ़ती हूं लोगों को। हम ऐसे समाज में रहते हैं कि जहां कहीं गलत हो रहा है हमें लगता है कि वह हमें सही करना है। मेरा एक स्वभाव है- अगर कुछ गलत हो रहा है, वह किसी के प्रति भी हो, चाहे वह एक बच्चा हो, मेल हो या फीमेल हो कोई भी हो, मुझसे थोड़ा सहन नहीं होता है तो मैं उसके प्रति कुछ ना कुछ जो मेरे बस में हो, वह मैं करती हूं, करने की कोशिश करती हूं।
जब मै लोगों को पढ़ती हूं, सुनती हूँ, तो मुझे लगाता था कि ये तो मैं भी सोचती हूं तो मैं भी लिख सकती हूं …तो 2019 में मैंने लिखना स्टार्ट किया।
मेरा बैचलर्स ऑफ़ इंजीनियरिंग है मैकेनिकल से तो मेरा जॉब भी उसी में था। मैं प्रोफेसर थी। अभी मेरे दो बच्चे हैं तो घर पर हूं और अभी मेरी लेखन क्रिया चल रही है। जितना भी मुझे समय मिलता है मैं लिखती हूं। जैसा कि सोमा जी ने कहा कि स्त्री को हम आगे नहीं रख सकते, ना ही हम पीछे रख सकते हैं क्योंकि यह कोई दौड़ नहीं है। हम एक समाज में रह रहे हैं, जहाँ सबको बराबर होना चाहिए तभी हम एक सभ्य और खुशहाल समाज की उम्मीद रख सकते हैं। तो मेरा लेखन इसीलिए है कि हम सब मिलकर अच्छे से रहे खुशहाल रहें और कोई किसी से कम ना हो। सबको समझा जाए, चाहे वो एक स्त्री हो चाहे, वह पुरुष हो सबकी सोच को हमें सम्मान देना चाहिए और एक दूसरे को दबाना नहीं चाहिए। एक दूसरे को पकड़ कर हमें आगे बढ़ना है। हमारी समाज की जीत तभी है जब हम हम सब मिलकर आगे बढ़े।
सोमा सुर: आपने पूछा की मोटिवेशन कौन है तो लेखक का सबसे बड़ा मोटिवेशन उसका पाठक होता है तो पाठक तो ओबवियसली है ही मोटिवेशन, पर पाठक जब आप लिखना शुरू करते हो तब आपको मिलता है। लेकिन उससे पहले हमें कौन सी चीज है,जो हमें प्रेरित करती है तो मुझे प्रेरित किसी चीज नहीं किया। जैसे कि अभी हमारी डिस्कशन हुआ कि समानता जब मैं देखती हूं कि नारी के अधिकारों के प्रति कोई भी लेख होता है तो लेखक है या लेखिका उसको ऐसे शो करते हैं कि मतलब अतिवादिता हो जाती है तो अतिवादिता चाहे पुरुष हो या स्त्री दोनों से ही समाज बेहतर नहीं बन सकता। समाज तभी बेहतर बन सकता है जब हम समाज की समानता की बात करेंगे तो मुझे लगा कि मुझे इस चीज पर लिखना है तो मैंने लिखना शुरू किया।
फिर कुछ चीज़ें होती हैं जैसे कि हमारा धर्म है। ऐसी सामाजिक संरचना है उसमें आप अपने धर्म को भी नहीं छोड़ सकते। कोई नास्तिक है कोई आस्तिक, जो भी है तो हर धर्म में कुछ अच्छाइयां होती हैं हमें उन्हें लेकर आगे बढ़ाना चाहिए। बुराइयां जो हैं आप उसे छोड़ दीजिए तो इस चीज में भी मेरा फोकस रहता है कि मैं थोड़ा शो करूं, जैसे कि मेरा एक लेख था कनकांजलि। उसे जब मैंने देखा तो उसमें मिलियंस में व्यूज थे तो उसने ये मुझे बहुत मोटिवेट करता है। कितने लोगों ने मुझे पढ़ा, अगर मैं गूगल में सर्च करूं तो कनकांजलि के साथ विमेंस वेब पर मेरा नाम आता है तो मुझे बहुत खुशी होती है बहुत मोटिवेट होती हूं।
कनकांजलि पर बहुत ज्यादा सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हुई थी तो मेरा लिखने का यही था कि माता-पिता के ऋण को कोई वापस नहीं दे सकता इसलिए कनकांजलि का जो मीनिंग होता है वह मीनिंग क्या है… मुझे लगता है की लोगों ने पढ़ा है और उससे एग्री किया है। उससे तो एक पॉइंट ऑफ व्यू है लिखने का कि मैं किसी के प्रति जागरूकता ला सकती हूँ।
मैं भी सीख रही हूं, मैं चाहती हूं कि जो भी मुझे पता चलता है वह मेरे पाठक भी समझें, जैसा कि रागिनी जी की तीन बेटियां हैं, जिसकी वजह से उन्होंने बहुत सुना और मेरे दो बेटे हैं और मुझे भी बहुत कुछ सुनना पड़ता है। जब भी मैं, मेरी फ्रेंड को जिनकी बेटियां हैं, लड़कियों के बारे में कुछ बताती हूं तो वह कहती हैं, “तुम क्या जानो तुम्हारे तो बेटे हैं।” ऐसा नहीं है, मैं औरत हूं तो समझ सकती हूं। ऐसा नहीं है कि मेरे बेटे हैं तो मैं बेटियों के बारे में नहीं समझ सकती मैं अपना व्यू नहीं रख सकती हूं।
मैं अपने बेटे को घर का काम करवाती हूं। हेल्प करते हैं वह मेरी और ऐसा नहीं है कि बेटियां नहीं हैं तो मैं नहीं करवाऊँगी। बेटे हैं तो मैं नहीं करूंगी ऐसा नहीं है। भूख सबको लगती है, अपना पेट भरना हर किसी को आना चाहिए। हम घर में रहते हैं अपने घर के साफ-सफाई ठीक से रखना सबको आना चाहिए। लड़कों को भी आना चाहिए लड़कियों को भी आना चाहिए तो बस यही छोटी-छोटी चीज़ें हैं जो मुझे मोटिवेट करती हैं लिखने के लिए।
जब मैं अपने आसपास सुनती हूं, “नहीं नहीं ऐसा नहीं है! लड़की है, तुम क्या जानो? लड़कियों को बाहर नहीं भेजते।” मैं यह कहती हूं कि हम लड़कों को भी भेजते हैं तो हमें बहुत चिंता होती है। आपका टीनएजर बेटा घर से बाहर जाता है अकेले तो मन को बहुत चिंता होती है। ऐसा नहीं है कि मन को चिंता नहीं होती है। तो बस यही चीज है छोटी-छोटी तो मैं चाहती हूं कि समानता होनी चाहिए समाज के अंदर। तो बस यही चीज मुझे मोटिवेट करती है।
प्रशांत प्रत्युष: मेरा जर्नी, विमेंस वेब पर लिखना एक अलग एंगल से शुरू हुआ क्योंकि मैं खुद एक मेल हूं और वुमेन इश्यूज पर लिखता हूं तो मुझे पहले टोका गया की तुम क्यों लिख रहे हो ? तुम कैसे लिख सकते हो?
मैंने किसी दूसरी प्लेटफार्म पर दो रिपोर्ट की थीं, तो उस रिपोर्ट को वहाँ के एडिटर ने बदल दिया। जब मैंने उनसे सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, “तुम्हें समझ नहीं आएगा, तुम बस रिपोर्टिंग करो। ये एडिटर डेस्क का काम है।” तो यह सवाल मेरे अंदर पिंच कर गया कि मुझे क्यों नहीं समझ में आएगा और मैं एग्जैक्ट रिपोर्टिंग जो किया हूं, वह क्यों नहीं पब्लिश हो सकती है?
और फिर जर्नी आगे बढ़ी। फिर मैंने जर्नलिज्म की पढ़ाई की। वहां पर वुमेन स्टडीज का कोर्स चलता था। एम.ए, एम.फिल, पीएचडी, तो जब हमारी क्लासेस नहीं होती थी, मैं उन क्लासेस में जाकर बैठता था। वहां से मुझे पता चला कि मुझे थोड़ी एक्सपर्टीज लेनी होगी वीमेन् इश्यूज को समझने के लिए। वीमेन्स इश्यूज को समझना होगा। इसकी डायवर्सिटी को समझना होगा तो मैंने फिर एम.फिल किया, पीएचडी किया, अख़बारों में काम किया।
फिर मुझे समझ आया कि न्यूज़ पेपर का ट्रीटमेंट वुमेन इश्यूज के साथ किस तरह का हो रहा है और वह कहीं से भी वूमेंस इश्यूज को सही प्रोस्पेक्टिव से एस्टेब्लिश नहीं कर रहे हैं। वह बार-बार खाना पकाओ कॉलम पर और किचन के कॉलम पर उसको सीमित कर दे रहे हैं। अभी मेंसुरेशन पे बात हो रही है जो पहले नहीं होती थी। मैंने 20 साल तक हिंदी के चार-पाँच अखबारों में काम किया है। उन पर कोई आर्टिकल आपको नहीं मिलेगा। अभी भी मैं कह रहा हूं मेंटल हेल्थ, पीरियड्स पर जो बात हो रही है, वह बहुत लिमिटेड है उसके दायरे को हमें और अभी खोलने की जरूरत है।
हम बस अभी प्रॉब्लम पर बात कर रहे हैं, हम अभी तक इसके आगे नहीं गए हैं क्यों सिर्फ 11% महिला ही पैड यूज़ का रही हैं। हम खुलकर बात नहीं कर रहे हैं तो उन सारी इश्यूज के साथ मुझे लगा और अपने आसपास ऐसे मेल जब मैं सोसाइटी में मूव करता हूं और छोटे-छोटे प्रॉब्लम्स को देखता हूं। मेरी हेल्प की प्रॉब्लम के बारे में बताता हूँ, वह एक दिन बोली कि मुझे जाना है, तो यह समझ नहीं आया कि क्यों जाना है, कहाँ जाना है। तो मैंने अपनी एक फीमेल कलीग् से कहा कि पूछो इससे क्या प्रॉब्लम है तो उसने कहा की उसको पीरियड्स आए हैं और वह यहां नहीं बैठ सकती तो मैंने कहा कि तुम्हारे पास पैड तो होगा तो उसको दे दो। तो जब उसने उसके सामने पैड रखा तो वो बोली, “इसका इस्तेमाल कैसे करना है?” मेरा दिमाग भक्क हो गया कि हमारी सोसाइटी में पैड का इस्तेमाल कैसे किया जाता है यह तक महिलाओं को नहीं पता है तो हम इन इश्यूज के साथ कैसे फाइट कर सकते हैं?
जितने भी इश्यूज को डायवर्सिटी के साथ देखता हूं एक प्रस्पेक्टिव से कि मेल सोसाइटी में उस को कैसे देख रहा है? फीमेल का सोसाइटी उसको कैसे देख रही है? तो यह मेरे लिए यह बहुत सारे सवाल एक साथ खड़े हो जाते हैं। और सबसे इंटरेस्टिंग यह है कि जब मैं वुमेन स्टडीज में एम.फिल और पीएचडी के रजिस्ट्रेशन के लिए जा रहा था J N U जैसे इंस्टीट्यूट में… तो मुझसे पूछा जाता था की तुम मेल होकर वुमेन स्टडीज क्यों पढ़ रहे हो? वुमेन स्टडीज में तुम पढ़ते क्या हो?
तो मैं अपने आप तो कर ही रहा था साथ-साथ अपने सर्कल को भी समझ रहा था। 5 साल की प्रैक्टिस के बाद मेरा जो पूरा फ्रेंड सर्कल है वह कम से कम इतना सेंसेटिव हो गया है कि वुमेन इश्यूज को सोचते हैं वह लोग, तो मुझे लगता है की अगर हमको सोसाइटी को बदलना है तो सबसे पहले तो मेल को बदलना है। मेल के पूरे बिहेवियर को बदलना है, जो पितृसत्तात्मक है उसको समझ ही नहीं आ रहा की वह पैट्रिआर्केल है।
मैंने एक आर्टिकल लिखी थी कैसे पीरियड से मुझे पितृसत्तात्मक बना दिया….. वह बहुत पसंद किया गया। तो उस आर्टिकल को मैंने अपने बचपन की जर्नी को उसमें एस्टेब्लिश किया था कि मेरी जितनी भी फ्रेंड्स थीं, बचपन की महिला दोस्त उन लोगों ने मुझे अलग कर दिया कि हम तुमको अपने साथ नहीं रख सकते हैं। फिर मुझे गौरी पूजा के दिन बुलाया प्रसाद खाने के लिए और फिर पूछा कि तुम हमारे साथ नहीं खेलते हो। उससे मैं कैसे क्रिकेट की तरफ चला गया और वहां मुझे पता चला कि खेलों के अंदर भी जेंडर होता है कि लड़के क्रिकेट खेलेंगे, फुटबॉल खेलेंगे और लड़कियां जो है वो ड़ेंगा-पानी खेलेंगी। तो वह सारी चीज़ें मुझे अलग ही नोटेशन में ले जा रही थीं।
लेकिन जब मैंने जेंडर स्टडीज पढ़ना शुरू किया तो मुझे पता चला की सोसाइटी बिहेवियर से कैसे मुझे पैट्रिआर्केल बना रही है। तब मुझे लगा कि इन चीजों को समझना बहुत जरूरी है। जितना महिलाएं समझ रही हैं उतना पुरुषों को भी समझना जरूरी है लेकिन हम उसे प्रैक्टिस में जा नहीं रहे हैं कि हम पुरुषों को कैसे समझाएं? यह सारे चेंज मुझे सोसाइटी के आसपास बसों में, ट्रेनों में हर जगह मुझे देखने को मिलते हैं। मेट्रो में तो जो चीज है मुझे दिखती हैं उन सारी चीजों को मैंने जनरल स्टडीज में जो रिसर्च की है काफी किताबों को पढ़ने के बाद उसको फिर मैं आर्टिकल में लिखने की कोशिश करता हूं तो मेरी इंस्पिरेशन वहीं से आती है।
एकता ऋषभ: विमेंस वेब पर मैंने बहुत अलग-अलग विषयों का चुनाव किया और अलग-अलग विषयों पर लिखा है। सामाजिक मुद्दे, महिला मुद्दे ,बच्चों से संबंधित मुद्दे सब के बारे में लिखा लेकिन अगर आप किसी एक कहानी को चुनने को कहेंगी तो मैं ‘मेरे बेटी बिल्कुल अपनी माँ जैसी बनेगी’ को चुनूंगी।
जैसे कि सोमा जी ने कहा हम लेडीज रिलेटेड प्रॉब्लम्स पर तो बहुत गौर करते हैं बहुत बात होती है जैसे बेटियों की मां है तो यह प्रॉब्लम होगी बेटों की माँ के बारे में इतनी बात नहीं होती और वैसे ही यह कहानी मेरे दिल के इसलिए पास है क्योंकि सिंगल पेरेंट अगर मदर है तो उसके बारे में तो हम बहुत बात करते हैं कि हाँ बेचारी कैसे करेगी? क्या करेगी? क्या प्रॉब्लम फेस करेगी लेकिन अगर वह पापा हैं मतलब बच्चे के फादर हैं, तो उनकी लाइफ में क्या प्रॉब्लम होगी अगर उनकी वाइफ की डेथ हो गई, बच्ची छोटी है, तो उस पर ही यह कहानी मैंने लिखी है।
सुनील और नैना की कहानी है और पाठकों ने इसे बहुत पसंद किया है। सुनील, जो फादर है वह अपनी छोटी सी बच्ची को वाइफ के खोने के बाद कैसे उसे रेडी करते हैं। अगर संघर्षों की बात करूं तो जरूरी नहीं की लाइफ में बहुत बड़ी-बड़ी चीज़ें हो बड़े-बड़े संघर्ष हों छोटी-छोटी चीज़ें होती है कि कैसे एक फादर जो है वह अपने बच्चे को रेज़ कर रहा है। वह भी एक डेली लाइफ के संघर्ष ही है। उसको रेडी करना, व्हाट्सएप ग्रुप में मम्मियों के साथ जुड़ना। एक फादर के दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो वह उसके लिए एक डेली के माइलस्टोन हैं।
यह कहानी मैं जब भी पढ़ती हूं मेरी आंखें भर आती हैं। मुझे बहुत ज्यादा पसंद है कहानी और एक लेखक के तौर पर ओबवियसली हमारी जिम्मेदारी होती है समाज के प्रति हम ऐसी कहानी को आगे बढ़ाए जो लोग उससे कुछ सीखें, उससे कुछ समझें, जुड़ें, उन्हें लगे कि यह कहीं मेरी तो कहानी नहीं है? तो मुझे बहुत खुशी होती है सब लोग लिखते हैं कि हाँ आपने शायद मेरी कहानी लिख दी या हाँ ऐसा हमारे साथ भी हुआ कि काश ऐसा मेरे साथ भी होता जैसा कि आपकी कहानी में हुआ है तो लगता है कि हाँ, शायद मैं पाठक को छू रही हूं। उनके मन को छू रही हूँ और बहुत खुशी होगी मुझे की अगर मेरी रचना पढ़कर एक दो जन की भी सोच में बदलाव आए तो बस यही चीजों को लेकर मैं लिखती हूं।
और मेरे फेवरेट, जो बोलते हैं वह महिला संबंधी ही होते हैं। लड़कियों के विषय में लिखना जैसे घरेलू हिंसा और भी कई मुद्दे जिनके बारे मे कोई बात नहीं करना चाहता। मेंसुरेशन टाइम में लेडिस के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है या फिर छोटी बच्चियां, हमारे आसपास बाहर के लोगों से तो बचा लेते हैं उन्हें, पर हमारी जो घर की सराउंडिंग है, वहां से?
लक्ष्मी कुमावत: मैंने विमेंस वेब पर अभी कुछ ही दिनों पहले लिखना स्टार्ट किया है। मुझे मेरा खुद का लिखा लेख ‘आखिर मैं कब तक चुप रहती’ मुझे बहुत पसंद है क्योंकि यह एक सच्चा सच्चाई पर लिखा गया लेख है। यह एक कलीग की स्टोरी है जिसने मुझे बताया था कि उसका कलर थोड़ा साँवला है और उसकी शादी जब हुई थी तो उसके हस्बैंड ने उसको देखा नहीं था। पहले आपको पता है कि दिखाया नहीं जाता था। जब उसकी शादी हुई थी तो बहुत उसको सुनाया जाता था कि तुम तो काली-कलूटी हो तो उस स्टोरी को मैंने थोड़ा सा मॉडरेशन करके मैंने लिखा था क्योंकि कई मुद्दे ऐसे होते हैं आपको पता है सोशल मीडिया पर लोग ऑब्जेवशन उठा देते हैं। तो उसी की स्टोरी को मैंने लिखा कि काफी शुरुआत में उसने बर्दाश्त किया था लेकिन फाइनली जब वो मां बनी और जब उसके बच्चों के साथ भी अच्छा नहीं होने लगा तब उसने बोलना शुरू किया कि आखिर कब तक चुप रहूँ मैं? मैं अपनी फ़ेवरेट खुद ही बन जाऊँगी ठीक है हसबैंड पसंद नहीं करता तो.. मैं अपने लिए जीना स्टार्ट करूँगी…
और आज जब मैं उस बंदी को देखती हूँ तो उसका जो आत्मविश्वास है न वाकई उसको देखकर मुझे अच्छा लगता है। बाकी जो मैं स्टोरीज लिखती हूँ वो मेरे कलीग की, कुछ मेरी खुद की मेरी पर्सनल लाइफ से जुड़ी होती हैं और मैं जो आस-पड़ोस में मैं देखती हूँ वो चीजें लिखतीं हूँ तो काफी चीजें देखने को मिलतीं हैं।
अरशीन फातिमा: मुझे ज्यादा टाइम तो नहीं हुआ है पर जब मैंने लिखना शुरू किया इस पर तो बहुत अच्छा लगा और इसके बारे में मुझे मेरी बहन ने बताया था।
मैंने भी ऐसे ही आस-पास देख कर लिखना शुरू किया था और मैंने एक छोटा सा लेख लिखकर भेजा था मुझे पता भी नहीं था कि वो मेरा लेख छप जाएगा और मैंने जिसपर लिखा था उसको डिलीट भी कर दिया था फिर कुछ समय बाद उसको ऐप को देखा उसमें मेरा छपा हुआ था। मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हुई थी कि क्या वाकई में मुझे लिखना आता है? मैं ज्यादा बोल नहीं पाती थी तो मैं लिखती थी। कॉपी लेकर लिखती धीरे धीरे धीरे धीरे तो मैं उसको छुपा कर रखती थी यह लगता था कि कहीं कोई देख न ले कही कोई देख कर मज़ाक न बनाये मेरा और जब लिखा मेरी तारीफ हुई तब मुझे लगा कि मैं लिख सकती हूँ। फिर मेरी एक रचना थी ‘वो जैसी भी है मेरी पत्नी है’ उस पर मुझे बहुत ज्यादा तारीफ मिली थी और उसमें थोड़ा बहुत मैं जीती भी थी फिर जो है उसी की वजह से मैं कह सकती हूँ धीरे-धीरे मैंने लिखना शुरू किया और मेरी जर्नी है बस आप समझ सकती हैं वहीं से शुरू हुई थी।
ज्यादातर महिलाएं घर में होती हैं और घर में क्या होता है वो बात नही करना चाहती हैं बाहर किसी से बताना नहीं चाहती हैं । घर में वो बर्दाश्त करतीं हैं कभी पति से कभी सास-ससुर से और वे उस पर बात नहीं करतीं तो मैं इसको अपने आने वाले लेखों में लिखना चाहती हूँ।
प्रशांत प्रत्युष: मैं बताना चाहूंगा मैं इन दिनों जिस सोसाइटी में रह रहा हूं, मैं बच्चों की कहानियाँ कलेक्ट कर रहा हूं। उनके एक्सपीरियंस से ले रहा हूं। छोटे-छोटे बच्चे हैं, क्लास फिफ्थ के होंगे उससे छोटे भी होंगे, कि वह छोटे बच्चे इस चीज को कैसे देखते हैं या फैमिली में उनको गुड टच, बेड टच कैसे इंट्रोड्यूस कर रही है? माएँ, उनकी या फैमिली के लोग कैसे बता रहे हैं?
फैमिली के लोग उनके साथ उनके बाकी चीजों को कैसे देख रहे हैं? मतलब, अगर हम फैमिली में बच्चों को टीच कर रहे हैं कि सोसाइटी में तुमको आपका सोशल बिहेवियर कैसा रखना है, थोड़ा सा डेमोक्रेटिक, थोड़ा सा लोकतांत्रिक टाइप, तो मैं भी उसे प्रैक्टिस से गुजर रहा हूं। मेरी कोशिश है कि मैं बच्चों का एक्सपीरियंस जो हैं, एक्सप्लोर करूँ। तो अभी वुमेन इश्यूज पर जो ऐड आ रहे हैं, वह काफी प्रोब्लेमेटिक हैं । उन पर लिखता हूं, फिल्म रिव्यूज लिखता हूं। पर उसमें, थोड़ा खास कर लड़की बच्चियां जो है मेरा अपना एक पर्सनल अनुभव है कि लड़कों का एक्सपीरियंस जो है सोसाइटी को देखने का थोड़ा सीमित होता है लड़कियों का दायरा थोड़ा 360 का होता है तो उसे हिसाब से मैं उसको उसकी स्टडी कर रहा हूं। मेरा अगला टारगेट जो है बच्चों के एक्सपीरियंस होंगे।
अनुराधा: अब मैं आगे इस मुद्दे पर लिखना चाहूंगी कि जो औरत से कहा जाता है कि आप समझौता करें, किसी रिश्ते को निभाएं। अभी तक मैंने इस पर लिखा नहीं है सिर्फ विचार मंथन चल रहा है तो एक समझौता किस हद तक होना चाहिए।
हमें समझौते और अत्याचार में फर्क महसूस होना चाहिए की हम समझौता कर रहे हैं या कुछ गलत हो रहा है हमारे साथ तो इसको मैं लिखना चाहूंगी और ऐसे ही कुछ बच्चों के प्रति जैसे की अभी प्रशांत जी ने कहा की बच्चे क्या महसूस करते हैं। जैसे पेरेंटिंग। पैरेंटिंग एक बड़ा मुद्दा है और आज के परिवेश में बहुत बड़ा मुद्दा है की कुछ पेरेंट्स का कहना है कि भाई बच्चों को गैजेट देना ठीक है। हम अकेले रहते हैं, दोनों पेरेंट्स वर्किंग हो तो आप कैसे बच्चों को संभालोगे?
कुछ का है कि नहीं देना चाहिए तो यह सब बहुत सारे बच्चों को लेकर ऐसे मुद्दे हैं जिनके बारे में अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है तो मेरे मुद्दे यही रहने वाले हैं। पैरेंटिंग हो गया है, बच्चों को लेकर उनकी सोच जो हम घर में बोथ पेरेंट्स वर्किंग हैं तो उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? आज कल बच्चे इतने डिस्कशन करते हैं कि आपकी मां वर्किंग है, मेरी नहीं है, तो क्यों नहीं है? यह समाज में एक मुद्दा है क्योंकि वहां बच्चा समझ रहा है कि मेरी माँ वर्क नहीं कर रही है उसको सैलरी नहीं मिल रही है इसका मतलब उसका इतना सम्मान नहीं है। यह बच्चों के मन में क्वेश्चन है और बच्चे आपस में बहुत बात करते हैं तो मैं चाहूंगी कि पेरेंट्स को बच्चों से खुलना चाहिए बात करनी चाहिए कि वह क्या सोच रहे हैं? उनके मन में क्या चल रहा है? जितना ज्यादा बात करेंगे उतना ज्यादा उनको हम महसूस कर सकेंगे कि वह अपने आप में क्या सोच रहे हैं? कहां जा रहे हैं? उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है? तो बस यही मुद्दे रहने वाले हैं।
एकता ऋषभ: मैंने ऐसे बहुत से लेख लिखे हैं, जिनमें महिलाएं खुद को इग्नोर करती रहती हैं। वूमेंस वेब पर ऐसे आर्टिकल भी काफी लिखें है और काफी कहानियां भी लिखी हैं कि कैसे वह अपनी प्रॉब्लम को इग्नोर करती हैं। वह फर्स्ट प्रायोरिटी अपने फैमिली, बच्चे, हस्बैंड, सास-ससुर सबको देगीं, लेकिन खुद पर ध्यान नहीं देंगी तो ये छोटी-छोटी जो परेशानियां होती हैं जो वह अवॉइड कर करके करके, कहते हैं ना तिड़ का ताड़ ,वैसे हो जाती हैं और यह हमारी कॉमन प्रॉब्लम है ही फीवर है तो चलो पेरासिटामोल लेली। यह नहीं देखेंगे की क्यों बुखार आ रहा है। हम क्यों नहीं डॉक्टर के पास जा रहे और हस्बैंड कहता भी है तो हाँ चले जाएंगे कल परसों।
मैं हर लेख में रिक्वेस्ट करती हूं अपने पाठकों से कि वो अपनी छोटी-छोटी चीजों को ऐसे इग्नोर ना करें। मैं लेडीज से भी अनुरोध करूंगी कि आप भी अपनी प्रॉब्लम इग्नोर ना करें। आप बहुत इंपॉर्टेंट होती हैं, फैमिली से जुड़ी होती हैं, तो मैं इस मुद्दे पर लिखती भी हूं और आगे भी लिखना चाहूंगी जी बस मैं तो इतना ही कहूंगी।
सोमा सुर: आपने कहा रचना पद्दति, तो मुझे रचना पद्दति में लघु कथाएँ लिखना काफी ज्यादा पसंद है और छोटी बहुत कम शब्दों में आप अपनी बात को बता सकते हैं। पॉइंट टू पॉइंट बात होती है।
कहानी में क्या होता है कि जब हम कहानी लिखते हैं तो हो सकता है कई बार ऐसा होता है कि जिस विषय में हम बात कर रहे हों वह विषय भटक जाता है। लेकिन जब हम शॉर्ट स्टोरी यानी लघु कथा लिखते हैं तो वह पॉइंट टू पॉइंट और टारगेट वही होता है जिस जॉनर पर आप बात करना चाहते हैं सिर्फ उस ही जॉनर पर ही बात होती है। तो मुझे लगता है कि वह जल्दी से कनेक्ट हो पाते हैं। वैसे तो मैं लगभग सभी विषयों को चाहती हूं टच करना जो भी हम अपने आसपास देखते हैं जो भी मुझे लगता है कि हाँ इसस विषय को उठाना जरूरी है तो मैं कोशिश करती हूं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जिस पर बहुत कम बात होती है।
शारीरिक लोग कहेंगे कि आप अपनी हेल्थ का ध्यान रखें ,आप योग करिए वह करें खाना पीना ठीक करें पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात नहीं होती है। अगर कोई डिप्रेशन में है तो उस डिप्रैस पर्सन के साथ हम बात करना भी पसंद नहीं करते, कि क्या यह हमेशा अपनी ही प्रॉब्लम्स बताती रहती है! क्या है मतलब फ्रेंड्स इग्नोर करने लग जाते हैं तो मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हमारे देश में बात बहुत ही कम होती है और हमारे समाज में खासकर बच्चों के और स्त्रियों के इनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में तो बात ही नहीं होती है।
बच्चा है! बच्चे को क्या प्रॉब्लम हो सकती है मेंटली? उसको हम ऐसे करके इग्नोर कर देते हैं । उसको और स्त्रियां तो खुद ही इतनी सशक्त होती है की घर को संभालती है। उसको क्या प्रॉब्लम हो सकती है? और उसको कौन सा बाहर जाना होता है? कौन सा लोगों के साथ मिलना होता है? या उसको डिप्रेशन हो भी सकता है?
किसी बात पर घर के बड़े-बड़े कहते हैं कि अगर कोई महिला परेशान है तो क्या हुआ तुम्हारा हस्बैंड तो इतना कमाता है, पैसे आ रहे हैं घर में, तुम्हारा बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है। कपड़े मिल रहे हैं तुम्हें क्या प्रॉब्लम है? यह तो मेंटली तुम प्रॉब्लम में नहीं हो, ऐसा नहीं हो सकता तो यह बातें होती रहती हैं। डिप्रेशन एक ऐसीचीज है जिसमें जरूरी नहीं की आप वेल एस्टेब्लिश हों, आपके पास पैसे हों, कपड़े हों, हस्बैंड भी आपका बहुत अच्छा हो लेकिन यह जरूरी नहीं है, क्योंकि जैसे हमें बहुत प्रोटेक्शन लेने के बाद भी सर्दी-जुखाम हो सकता है, वैसे ही मेंटल प्रॉब्लम भी मतलब मेंटल हेल्थ के बारे में बात करें तो वह आपको हो सकती है।
अभी दो साल पहले जब स्कूल सारे ओपन थे तो अचानक से ऐसा हुआ की मेरे बेटे के स्कूल से हमारे पास रात को मैसेज आया कि कल स्कूल ऑफ होगा और उसके बाद हमें पता चला की क्लास 11th का एक बच्चा जो की 10th में जिसने टॉप किया था और अदर एक्टिविटीज में भी एक्स्ट्रा करिकुलम में भी वह बहुत ज्यादा, बहुत ही ज्यादा अच्छा था। वह बच्चा, जिस दिन उसने सुसाइड किया स्कूल से जाने के जस्ट बाद, उस दिन उसको 10 मेडल मिले थे, ‘आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस’ के लिए। वह घर में गया है और उसने अपने फादर की गन से शूट किया अपने आपको।
बहुत सारी बातें हुई कि 5 साल पहले उसकी मम्मा ने भी सुसाइड किया था। उसकी स्टेप मदर थी , बहुत सारी बातें लेकिन मुझे यह चीज स्ट्राइक की, घर में उसकी दादी थी, पापा थे, चलो स्टेप मदर हर कोई कहता है कि ‘स्टेप मदर ने क्या ध्यान दिया होगा?’ लेकिन फादर तो उसके सगे थे न?
दादी थी, चाचा थे, चाची थी किसी को उसकी प्रॉब्लम के बारे में पता नहीं चला? स्कूल में उसकी टीचर्स थी उनको उसके प्रॉब्लम के बारे में पता नहीं चला? उसके फ्रेंड्स को पता नहीं चला और जब भी ऐसे केस होते हैं अक्सर यही बात पता चलती है कि उसको क्या प्रॉब्लम थी उसने ऐसा क्यों किया? हम हमेशा इन्हीं प्रॉब्लम्स में उलझे रहते हैं और असल जो बात होती है कभी निकल कर नहीं आ पाती है तो इसीलिए मुझे बहुत शॉक किया और एक आर्टिकल में मैंने लिखा था कि ‘काश! हर एक इंसान को अपने सुसाइड नोट फाड़ने का मौका मिलता’ लेकिन इस पर बात नहीं होती है तो मैं इस टॉपिक पर और भी लिखना चाहती हूं। इस चीज को सिर्फ लिखना नहीं इस चीज को सर्च करके थोड़ा सा वह करके जितना भी मैं कर सकती हूं इस बात पर मैं थोड़ा आगे इसको हाईलाइट करना चाहूंगी यह कितना ज्यादा जरूरी है।
रागिनी अजय पाठक: कहते हैं न जितना अच्छा बीज होता है उतना अच्छा पेड़ होता है। कहावत कही जाती है कि “बोय बीज बबूल का तो आम कहां से होए?” तो चाहे बेटा हो या बेटी हो परवरिश जब तक माता-पिता घर का समस्त परिवार सदस्य मिलकर सकारात्मक तरीके से नहीं करेगा समाज में सामाजिक मुद्दे व्याप्त रहेंगे।
मैं हर पैरेंट से कहूंगी चाहे वह माता हो और चाहे वह पिता हो, बच्चे की परवरिश में आपके पास जो भी है, चाहे बेटा है या बेटी है, दोनों ही भगवान के रूप है भगवान ने कभी कोई भेद नहीं बनाया। भगवान ने बेटियों को भी बिना कपड़े के और 9 महीने के गर्भ के बाद ही भेजा है, बेटों को भी उसी प्रक्रिया से भेजा है तो जब ईश्वर ने… हमारी प्रकृति ने कोई भेद नहीं किया तो आप माता-पिता होने की जिम्मेदारी निभाइये और जो ईश्वर रूपी संतान को इतने अच्छी परवरिश दीजिए। मुद्दे ही यहां से शुरू होते हैं कि हमारी परवरिश भटकी हुई है। परवरिश भटकी हुई है परिवार का माहौल ही भटका हुआ है चाहे कितनी भी सकारात्मकता हो कितनी भी कोशिश कर ले बेटी को या बेटी को सकारात्मक नहीं बना सकती क्यों? क्योंकि वह मार खा रही है, गाली खा रही है तो वह कहां से बताएगी क्योंकि उसका बच्चा तो देख रहा है। मेरा पिता तो ड्रिंक कर रहा है,माँ को गाली दे रहा है । मेरा फादर अपने फ्रेंड से बात कर रहे हैं, माँ-बहन की गलियां दे रहे हैं।
हमारा जो सामाजिक और पारिवारिक वातावरण है हमको उसको सुधारना होगा । जिस दिन यह सुधर जाएगा उस दिन हम अपने समाज में बदलाव देख पाएंगे।
प्रशांत प्रत्युष: मैं बस यह संदेश देना चाहूंगी कि लड़कियां बोलें। उनका बोलना बहुत जरूरी है क्योंकि उनका बोलना किसी भी समाज के लिए और सवाल करना बहुत जरूरी है क्योंकि हमसे पहले जो महिलाएं थी उन्होंने लोक कविताओं में लोक रचनाओं में उसको एक्सप्रेस किया। उनको लिखने पढ़ने नहीं दिया गया, वे वहीं से एक्सप्रेस कर रही थीं तो वही एक्सप्रेशन से आज हम वुमेन हिस्ट्री को समझते हैं। तो वह बोलें, वह जितना बोलेगीं लोग उनको समझेंगे आने वाला जेनरेशन इसको ज्यादा समझेगा और अपने आप को वैसा बनाएगा इसलिए उनको बोलना बहुत जरूरी है।
बबीता कुशवाहा: जैसा प्रशांत जी ने कहा कि लड़कियां बोलें, तो बिल्कुल मैं उनकी बात से एग्री करती हूं। लेकिन हम महिला लेखक हैं तो हमारे लिए इतना आसान नहीं होता कि हम हर बात को इस तरीके से लिख पाए क्योंकि कुछ ऐसे होते हैं जो लिख देते हैं क्योंकि उन लेखकों के ऊपर भी बहुत उंगलियां उठतीं हैं कि यह ऐसे कैसे लिख दिया?
कहीं तो ऐसे होते हैं सभी के हस्बैंड, सभी के फैमिली मेंबर सपोर्ट नहीं करते हैं। अपने फैमिली वाले ही कहते हैं कि यह क्या लिख दिया तुमने? हमारी बदनामी करवा दी इस तरीके से टॉपिक लिख दिया। इस तरीके से मुद्दों के ऊपर ऐसा लेख लिख दिया या फिर फलाने ने हमें बताया कि आपकी बहु ने, बेटी ने ऐसा लिखा तो बिल्कुल लड़कियां बोलें और अगर वह लिख रहीं हैं तो लेखक होने के नाते उनका कर्तव्य है, उनकी जिम्मेदारी है कि वह किस तरह से इन मुद्दों पर लिखें और इस तरह की बातों से अपने आप को भटके नहीं और अगर वह लिखतीं है तो बिल्कुल बेबाक होकर लिखें।
महिलाओं के लिए बहुत ही मुश्किल घड़ी होती है कि अगर आप शादीशुदा हैं तो फैमिली सबसे पहले है। लेकिन आप अपनी जर्नी को स्टार्ट करें। महिला लेखकों से बस यही कहना चाहूंगी कि आप कोशिश कीजिए, लिखते रहिए और जरूर आपकी बात एक दिन परिवार और समाज तक पहुँचेगी।
तो ये थे हमारे क्रांतिकारी टॉप लेखक। आपकी जो कलम है, आपका हथियार है तो इस हथियार को अपने साथ रखिएगा। लिखते रहिएगा क्योंकि जब तक आप लिखते रहेंगे यह समाज आगे बढ़ता रहेगा।
आप सभी का धन्यवाद कि आप विमेंस वेब- हिंदी के साथ जुड़े। आपने अपना कीमती समय निकाला और अपनी इतनी सारी अच्छी-अच्छी बातों को हमारे साथ शेयर किया। बस इतनी दुआ है कि हम जल्द मिलें एक बार फिर…
इमेज सोर्स: ऑथर प्रोफाइल्स