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माँजी, मेरी डिलीवरी पर आपके घर के काम करने मेरी बहन नहीं आएगी…

पल्लवी जब घर आयी तब उसकी दोनों ननदे घर पर हीं थी। उमाजी ने जुबान में मीठी चाशनी घोलकर पल्लवी से बोल-बोल कर सारे काम कराने लगी।

पल्लवी जब घर आयी तब उसकी दोनों ननदे घर पर हीं थी। उमाजी ने जुबान में मीठी चाशनी घोलकर पल्लवी से बोल-बोल कर सारे काम कराने लगी।

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अगले दिन भावेश ने अपनी मां से कहा, “मां मैं सोच रहा हूं रागिनी अपने मायके चली जाए। जब बच्चा हो जाएगा तब आ जाएगी। क्योंकि उसकी तबियत अभी ठीक नही रहती और डॉक्टर ने भी उसे आराम करने के लिए बोला है।”

इतना सुनते हीं उमा जी ने तपाक से कहा, “अरे इसके लिए मायके क्यों जाना? उससे बोलो अपनी छोटी बहन पल्लवी को यहाँ बुला ले। रागिनी को आराम भी मिल जाएगा और मन भी लगा रहेगा। आखिर बच्चे के जन्म के समय तो उसको आना हीं होगा। वरना रागिनी बच्चे के साथ घर के काम कैसे करेगी? उनको सम्भालने के लिए कोई तो चाहिए ना।”

अब आगे : 

रागिनी का जवाब सुनकर उमा जी ने गुस्से में भावेश से कहा, “देख लिया इसका ताव, नहीं बुलाना तो मत बुलाए। हमें क्या करना? कौन सा मैं अपने आराम के लिए बोल रही थी। लेकिन मेरी एक बात कान खोलकर सुन ले भावेश मैं किसी कीमत पर इसकी विदाई नहीं करने वाली।” कहकर गुस्से में पैर पटकते उमा जी कमरे से चली गयी।

बाद में जब कमरे में भावेश आया तो उसने कमरे में रागिनी को देखकर उससे कहा, “रागिनी ये क्या तरीका था माँ से बात करने का? आखिर गलत ही क्या कहा उन्होंने? तुम्हारे भले के लिए ही तो बोल रही थी।”

भावेश बोले जा रहा था और इधर आज रागिनी का मन अतीत की गलियारों में चला गया। जब उसने अपनी छोटी बहन पल्लवी को अपने पास बुलाया था आज से ठीक दो साल पहले। रागिनी का जब अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था। तब उसने अपनी बहन को उमाजी के कहने पर बुलाया था।

पल्लवी जब घर आयी तब उसकी दोनों ननदे घर पर ही थी। उमाजी ने जुबान में मीठी चाशनी घोलकर पल्लवी से बोल-बोल कर सारे काम कराने लगी। और देखते हीं देखते उससे घर के रसोई से लेकर दोनों बेटियों के कपड़े धोने प्रेस करने तक के काम कराने लगी। अपेंडिक्स का ऑपरेशन होने के बाद जब रागिनी अस्पताल से घर आयी तो उसने देखा, कि पल्लवी रसोई में अकेली खाना बना रही थी। बर्तनों का ढेर लगा हुआ था।

उसने पल्लवी को अपने पास बुलाया और कहा, “ये क्या तू अकेली काम कर रही है बाकी लोग कहाँ है? रहने दे आ बैठ तो मेरे पास। तू तो अस्पताल भी नहीं आयी मुझसे मिलने और तूने सबसे ऐसा क्यों कहा, कि दीदी घर आएगी तो मैं मिल लूँगी।”

पल्लवी ने अपनी दीदी के गले लगते हुए कहा, “दीदी मैंने तो ऐसा किसी से नहीं कहा। वो तो आंटीजी ने मुझे कहा कि, दीदी घर आएगी तो मिल लेना, अस्पताल जाकर क्या फायदा। और काम के लिए तो माँ ने मुझे यहाँ भेजते समय साफ-साफ कहा था कि जो कोई भी कोई काम कहे तो मना मत करना चुपचाप कर देना। मुझे कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए। इसलिए आंटी जी और सब जो भी काम बोलते हैं मैं कर देती हूं।”

पल्लवी की बातें सुनते रागिनी को बहुत बुरा लगा लेकिन वो चुप रही। फिर अगले दिन उसने गौर करना शुरू किया। पल्लवी को उमा जी घर के काम बताकर खुद अपनी बेटियों के साथ चुपचाप कमरे में बैठकर टीवी देखती।

पल्लवी रागिनी से छ: साल छोटी थी। और घर में सबकी लाडली भी। लेकिन उसकी लाडली बहन की ऐसी दुर्गति और अपमान उसके अपने ससुराल में होगा उसने सोचा नही था।

रागिनी ने अस्पताल से घर आने के दो दिन बाद ही पल्लवी को बुलाकर कहा, “पल्लवी अपना सामान पैक करो। तुम कल घर जा रही हो। मैंने उमेश (रागिनी का भाई) को बुला लिया है, वो आ रहा है।”

उमा जी ने कहा, “अरे बहु इतनी जल्दी क्या थी पल्लवी को भेजने की? पहले हमसे पूछ तो लिया होता। अभी तो तुमको भी आराम की जरूरत है। फिर पल्लवी चली जायेगी तो अकेले सारी जिम्मेदारी तुम्हारी हो जायेगी।”

रागिनी ने गुस्सा दबाते हुए कहा, “माँ जी आपकी बहू मैं हूं और ये मेरा ससुराल है। इसलिए कहीं जाने-आने की इजाजत लेने की जरूरत मुझे है पल्लवी को नहीं। वैसे भी इसने बहुत सेवा कर ली। और बहुत काम किया।” और फिर अपनी दोनों नन्दों की तरफ देखते हुए कहा, “वरना तो इससे बड़ी उम्र की लड़कियां अभी तक बच्ची बनी बैठी आराम फर्माती हैं।”

तभी भावेश ने कहा, “कहाँ खो गयी सुन भी रही हो? मैं क्या बोल रहा हूं?”

तब रागिनी ने कहा, “हाँ भावेश सुन रही हूं। अगर पल्लवी मौसी बन रही है, तो सुरभि और सुमन दीदी भी तो बुआ बन रही है। तो क्या बुआ का कोई फर्ज नहीं बनता? मैं अपने आराम के लिए अपनी बहन को परेशानी में नहीं डाल सकती। वैसे भी पल्लवी के अभी बी.एस.सी फाइनल के एग्जाम होंगे और घर पर माँ को भी उसकी जरूरत है। इसलिए मैं उसको यहाँ नहीं बुलाऊंगी।”

दरवाजे पर कान लगाकर सुनती उमा जी के चेहरे की हवाइयां रागिनी की बातें सुनकर उड़ चुकी थी। उन्हें पता चल चुका था कि अब उनका कोई दाव काम नहीं करने वाला।

नौ महीने बाद रागिनी ने ऑपरेशन से प्यारे से बेटे को जन्म दिया। एक महीने रागिनी को खाने-पीने की तकलीफ हुई। कभी चाय सात बजे 2 बिस्कुट या सूखेब्रेड के साथ मिलती तो कभी 11 बजे। दोपहर के खाने में कभी 2 रोटी सादी दाल, तो कभी सिर्फ चावल दाल नतीजा ये हुआ कि उसको दूध आना बंद हो गया। और उसको बेटे को दूध बोतल लगानी पड़ी।

उमा जी ने आस-पड़ोस नजदीकी रिश्तेदारों से ये कहना शुरू कर दिया की मॉडर्न बनने के चक्कर में रागिनी ने बेटे को दूध का बोतल पकड़ा दिया। उसके मायके वालों को भी निर्मोही साबित कर दिया गया। और दुनिया की नजरों में खुद को सबसे अच्छी सास-ननद साबित किया गया। जिन्होंने तन-मन से बहु के जापे में एक महीने तक सेवा की। सच से अंजान जो भी उससे मिलने आता उसको समझा कर जाता, “देखो बेटा सास की हर बात माना करो। ऐसी सास-ननद किस्मत वालों को मिलती है।”

दुनिया की नजरों में रागिनी बुरी बहू साबित कर दी गयी। लेकिन उसको एक बात की संतुष्टि थी कि उसने अपनी बहन को इस मुसीबत से बचा लिया था। और बच्चा होने के बाद अब वो बिना किसी को कुछ बोले चुप-चाप जितना कर सकती अपना काम करती। अपना और अपने बच्चे का ख्याल रखती।

सखियों, अधिकतर ससुराल में जब बहू के मायके से उसकी बहन माँ या भाभी कोई भी आता है तो उसे ससुराल का हर सदस्य ऐसे व्यवहार करता है जैसे उनके घर मुफ्त में कोई काम करने वाली नौकरानी आयी हो। मान-सम्मान तो दूर की बात उसे चैन से बैठकर साँस तक नहीं लेने देते, लेकिन खुद के लिए पूरे सम्मान की उम्मीद करते हैं। ऐसे लोगों को आप क्या कहोगे?

इमेज सोर्स: Still from HealthPhone Hindi Diet Care During Pregnanacy Film, YouTube 

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