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Author✍ Student of computer science Burhanpur (MP)
एक घर ने नाम रखा है, ये तो परायी है, तो दूजा घर कहता है ये तो पराये घर से आयी है, और नाम जिसका रखा है दुनिया ने बोझ...
पिता कैसे अपने कलेजे को छलनी होने से रोक पाएगा, ज्यादा कुछ नहीं बस वह अपनी बेटी के घर का मेहमान हो जाएगा, बाकी सब वैसा का वैसा ही तो रहेगा।
कई बीमारियाँ भी निकलेगी और उन बीमारियों का ईलाज भी होगा। लेकिन इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ये तो सदीयों से चली आ रही है...
कभी- कभी दम घुटता है इन ऊंची- ऊंची दीवारों में। खुली हवा भी कैसे खाऊंहैवान बैठे है सडक़ों के किनारों में।
मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया और आप उसे डाँटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हो...
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