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आकांक्षा कुरील बी.एड., महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
तेरी चुप्पी कहीं, उनका हौसला न बन जाए! दिखला दो ज़माने को, है हममें भी, उड़ान भरने की कुव्वत! बंदिशों से भरी गुत्थी, आखिर कब, सुलझाएगी तू?
जब कोई विपदा आती है या कोई बीमार होता है उस दौरान सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही काम आती हैं। जिसको हम सभी को अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए।
मेरी कविता का उद्देश्य भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है और कृषि ही उसकी रोजी-रोटी है।
एक ही पल में अचानक, बदली दी तूने दुनिया! लेकिन इस कोरोना काल में, बंद नहीं हुआ!
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