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मैं एक अध्यापिका हूँ,पढते पढाते हुए लिखने के शौक के प्रति रुचि हुइ,इसलिए खास तौर महिलाओं के ऊपर लिखना मुझे अच्छा लगता है।
पहचान तो उसी दिन बदल गयी थी जिस दिन रजनी से मिसेज नायर बनी थी। इसी नाम से तो जानते है सब मुझे। मेरा नाम रजनी है यह तो मैं भी भूल गयी थी।
देवी स्वरुपा बताकर उसको, सदियों से हरता आया मानव, नारी तेरी यही नियति, तुझसे जन्म पाकर तेरा ही शोषण करता, वह संस्कारी नहीं है...
कदम से कदम मिलाकर जब चलती हूँ पुरूष के, तब भी मर्यादा का मान बनाये रखती हूँ। नारी को कमजोर समझने की सोच को बदल कर उसकी शक्ति को पहचान दिला सकूँ।
तूने जो सिखाया है उसका मान बढ़ाऊंगी, जो कभी टूटने लगे हिम्मत मेरी, आकर कंधा थपथपा देना, दो बोल हिम्मत के तुम बतला जाना...
नहीं था कोई जवाब खुद के ही सवालों का खुद के पास, बस एक ही आवाज़ आ रही थी, कौन हूँ मैं? आखिर कौन हूँ मैं?
लाचार नहीं है अब मजबूत है इरादों से, यह आज की नारी है कोई खिलौना नहीं।
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