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Anuradha Agnihotri

Voice of Anuradha Agnihotri

अब तू ही बता इन सात जन्मों के बंधन को कैसे मानूँ मैं…

एक मेरा सिंदूर और बिछिया ही पहचान बनायी समाज ने तुम्हारी पहचान थी, फिर इस सफ़ेद पोशाक में कौन पहचानेगा मुझे कि “मैं तुम्हारी हूँ?”

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मुझे बराबरी नहीं बस साझेदारी चाहिए…

सिर्फ़ मुस्कान में ही नहीं, आंसुओं में भी चाहिए, सिर्फ़ मौज मस्ती में ही नहीं, ज़िम्मेदारियों में भी चाहिए, घोंसला साँझा है तो जिम्मेदारियाँ भी सांझी होनी चाहिए...

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एक दोस्त मेरा भी है इस घर में…

हाँ एक ऐसा हमराज़ है इस घर में मेरा, जिससे कुछ भी छिपा नहीं है, उसके सामने जाते हीवो मेरा चेहरा पढ़ लेता है, ऐसा हमराज़ है इस घर में मेरा!

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एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है…

जो बेफ़िक्री के पंख लगाए यहाँ वहाँ उड़ती फिरती थी,अब बच्चे के साथ हर पल घर में बंद हो जाती है।एक अल्हड़ सी लड़की जब माँ बन जाती है।

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क्या बेटी बिन पैसे ब्याही ना जाएगी?

कह लो उसको चाहे उपहार या फिर कह लो दहेज, मत करो जेब ख़ाली सच यही है, मत करो ख्वाहिशें पूरी इसकी, बिन पैसे कैसे ब्याही जाएगी।

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इन कठिन दिनों में भी मुझे मिली कुछ छोटी-छोटी ख़ुशियाँ

क्योंकि कहते है ना एक ग्रहणी के काम तो कभी ख़त्म नहीं हो। पर कहीं ना कहीं मन में परिवार के साथ सुकून के पल गुज़ारने की कमी खलती रहती थी।

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ये 6 बातें कोरोना काल में सकारात्मक सोच के साथ अपनानी ज़रूरी हैं

कोरोना काल में सकारात्मक सोच और अपने अंदर आत्मविश्वास बनाए रखने की कोशिश करें। जो आपका ख्याल रख रहे हैं उन पर विश्वास करें। 

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जीवन की हर सीख सिखाती है माँ

नेकी की राह पर चलना, धर्म कर्तव्य को निभाना, खुद को खुद के लिए भी जीने को समझना - जीवन की हर सीख मेरी प्यारी माँ ही सिखाती है।

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माँ सिर्फ़ प्यार नहीं करती, ममता लुटाती है माँ

कुछ भी ना पाने की उम्मीद कर, तुम सदा ख़ुश रहो, आसमान के सितारे की तरह चमको,बस यही प्रार्थना करती जाती है। माँ सिर्फ़ प्यार नहीं ममता लुटाती है।

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हाँ, अब मैं खुद को तराश रही हूँ!

हाँ मैं हूँ आधुनिक नारी, किरदार बहुत हैं मेरे लेकिन अब मैं खुद को भी तराश रही हूँ, हाँ मैं अपना अस्तित्व बना रही हूँ।  

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हाँ, अब मुझे झुकना नहीं है…

हाथ जोड़ने वाली ने अब हाथ उठाना सीख लिया, चूड़ी वाले हाथों ने अब बंदूक़ चलाना सीख लिया, नारी अब कमजोर नहीं है, नारी अब लाचार नहीं है।

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अब मैंने भी अपनी मर्ज़ी से जीना सीख लिया है!

जब मेरा मन करता है, सजती हूँ, संवरती हूँ, सिंदूर भी लगाती हूँ, पर दकियानूसी बातों पर अब मैं एतराज जताती हूँ, क्यूंकि अब मैं अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ!

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चलो आज फिर एक नयी मंज़िल तलाशते हैं…

जो रह गयी थी ज़िम्मेदारियों के बीच अधूरी, अब उसको पाने के नए रास्ते निकालते हैं, चलो फिर एक नए रास्ते पर अपने कदमों के निशाँ बनाते हैं...

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विदा होकर भी कहाँ विदा हो पाती हैं बेटियाँ…

घर के किसी कोने में आज भी उनकी साइकल सजती है, त्योहारों में अब पहले सी शरारत कहाँ होती है, कहीं रूमाल तो कहीं हेयर क्लिप छोड़ जाती हैं बेटियाँ!

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मैं इस घर की बहू हूँ कोई बंधुआ मज़दूर नहीं…

इतने कहते ही, उसकी सास उस पर बरस पड़ी, "तुझे तो आराम फ़रमाने के बहाने चाहिए बस एक बहाना बना लो और सारा दिन बिस्तर तोड़ो।”

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सखी हाथ बढ़ा देना

नहीं ज़रूरत सीता बनने की,ना अहिल्या सी मूरत बनने की,तूँ तो बन जा दुर्गा काली जिसे देख डर जाए हर बलात्कारी।

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एक कदम बदलाव की ओर

प्रीति अपने पढ़ाई करने के बाद अच्छी नौकरी भी करने लगी और आज वो अपने पापा की आर्थिक सहायता करने में पूर्णतः सक्षम हो गयी।

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ये है मेरा वतन!

तीन रंग का तिरंगा है गर्व मेरा, जिस पर फ़ना है सर्वस्व मेरा। ऐसे पथ पर चले अपने ध्वज को लिये, अब ना आता नज़र कोई तूफ़ान मुझे।

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भारत का परचम

भारत का परचम फहरा है सारे विश्व में आज, जन जन के मन में भाये है मेरा हिंदुस्तान, हर हिंदुस्तानी गाये है मेरा देश महान।

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और बच्चा तभी होगा जब मैं चाहूंगा…

क्या हुआ? मुझे तो लग रहा था कि आप बहुत ख़ुश होंगे ये बात सुनकर...अब हमारी शादी को भी ३ साल हो गए हैं। अब हमें अपनी फ़ैमिली बढ़ानी चाहिए।

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परिवार से हैं हम, हम से है परिवार!

चाहे दूर रहे या पास, पर दिल तो सबके है साथ। जैसे बूँद-बूँद से बनता सागर, वैसे ही रिश्तों से बनता परिवार। आखिर परिवार है तो हम हैं...

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तुझमें अभी भी तू ज़िंदा है

अगर आने दोगे अपनी सीरत को कभी सूरत पर तो इस ज़िंदगी का सच्चा सुकून पाओगे। पल भर के लिए ही सही पर खुली हवा की तुमको भी ज़रूरत है।

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मेरी ज़िंदगी की पतंग…

मानो जैसे मोहब्बत की हवा में सिमटकर, भरोसे के तेरे माँझे से लिपटकर, मेरी ज़िंदगी की पतंग, तेरे अंगना के आसमाँ में उड़ने चली है।

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देखते-देखते ना जाने मैं कहाँ खो गयी?

आज दर्पण में खुद को देखते-देखते ना जाने मैं कहाँ खो गयी। चाँद की चाँदनी को देखते-देखते ना जाने मैं कहाँ खो गयी। 

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मेरा हाथ बटाने में क्या तुम्हारा अपमान होता है…

क्यों कभी मेरा हाथ बटाने की पहल तुम खुद नहीं करते हो? जबकि  मैं अब बोझ नहीं हूँ तुम्हाराये तुम भी अब ख़ूब समझते हो...

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तेरी सास तो बड़ी मॉडर्न लगती है…

काजल की सास बोलीं, "तुम दोनों बहुत वर्षों बाद मिले हो, बहुत सारी बातें होंगी जो एक दूसरे से कहनी होंगी। मैं अपने कमरे में जाती हूँ।"

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अलविदा 2020!

अब कुछ वक्त की ही है देरी, 2020 को अलविदा कहने में। 2020 के साथ साथ इस आपदा को भी पीछे ही छोड़ आएगा 2021 का नया साल...

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अपने अस्तित्व का प्रमाण

बार बार वार करता है उसकी मासूमियत पर कभी गालों पर तो कभी हाथों पर कभी चेहरे पर तो कभी आँखों पर इंसान नहीं सामान समझ वो खुद को समझे भाग्यविधाता।

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हाँ मैं एक औरत हूँ और औरत होने पर गर्व है मुझे

औरत कमजोर नहीं है वो लोगों की बातों से अपने को कमजोर समझती है, जो एक नये जीवन को दुनिया में ला सकती है वो कुछ भी करने की ताक़त रखती है। 

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करवा चौथ है आज भी मेरे लिए ख़ास…

ज़िंदगी की उलझनों से ठहरकर फिर याद दिलाना, हम एक दूसरे के लिए बहुत ख़ास, इस दिन के बहाने ही सही, एक बार फिर अपने प्यार को पुलकित करते हैं...

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अब बस! बेटी शादी करेगी तो अपनी मर्ज़ी से…

बेटी आपकी मर्ज़ी से शादी तो कर लेगी पर वो ख़ुश नहीं रह पाएगी। रोहिणी चाहे तो आपके ख़िलाफ़ पुलिस कम्प्लेन भी कर सकती है पर उसने ऐसा नहीं किया।

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और उसकी ये लड़ाई अपनी बेटी के लिए थी…

वह इस बात का अनुभव कर चुकी थी कि एक औरत, चाहे वो जो भी हो, किसी की पत्नी हो, बहु हो या माँ हो, हर रूप में उसका शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।

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…और इस तरह सास बहु के इस रिश्ते को एक नया जीवन मिल जाएगा…

एक माँ सदा अच्छी है तो फिर सास क्यों बुरी है? एक बेटी सदा अच्छी है तो बहु ही क्यों बुरी है? जब दोनो ही करुणामई हैं, तो फिर सास बहु के रिश्ते से करुणा कहाँ गयी है।

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तब समझना प्रेम पूर्ण और साकार हुआ है…

जब एक के बिना दूसरा अपूर्ण हो जाए, तब समझना इस संसार में सबसे बड़ी जीत हंसिल की है तुमने। तब समझना प्रेम पूर्ण हुआ है!

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अब फ़ैसलों में मजबूरी नहीं मंज़ूरी शामिल होनी चाहिए…

जब ज़रूरी हो, तब अपने लिए भी, मौन व्रत भंग कर कदम और आवाज़ उठानी चाहिए अपने फ़ैसलों को अपने दमख़म पर लेना चाहिए...

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तुम मेरे जिस्म को डरा सकते हो आत्मा को नहीं!

ऐसा करके तुम अपने को मर्द समझ रहे थे? जिस्म को जलाकर आत्मा को डरा रहे थे? मीडिया फिर भरा था ब्रेकिंग न्यूज़ से, न्यूज़ वही बस लड़की बदल गयी!

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कई रिश्तों में प्रेम नहीं सिर्फ सात फेरों का बंधन होता है…

कई रिश्ते लोग सात फेरों का बंधन समझ निभाते रहते हैं, कभी आर्थिक निर्भरता, तो कभी बच्चों की निर्भरता और ये हमारे समाज का एक और कड़वा सत्य है!

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मुझे देवी बना कर हर किये की माफ़ी क्यों चाहते हो तुम?

मेरी झल्लाहट पर तुम,अपना रौद्र रूप दिखलाते हो, ऐसा होने पर भी तुम काली मुझे ही बतलाते होऔर फिर एक बार शोषण मेरा कर जाते हो?

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बहु भी बेटी बन जाए अगर सास माँ बन जाए…

बहु ने घर के पर्दे बदल दिए हैं, किचन का समान भी अपने हिसाब से मंगाती है सुरेश से। ऐसे ही और भी कई घर की चीजें...अब क्या क्या बताऊँ तुझे?

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हाँ! तुम मेरे कातिल हो।

हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उस रूह के, जिसमें क्षमा थी। उस आत्मा के, जिसमें दया थी। हाँ! तुम मेरे कातिल हो।

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कठघरे में हर बार हम ही खड़े थे…

विश्वास के क़त्ल को हम सह ना सके थे, अपनों से दग़ा खाकर ज़हर का घूँट हम पी रहे थे। इतने मजबूर थे की फिर भी हम जी रहे थे...

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ज़िंदगी को आज फिर गले लगा लिया है…

आँखों की नमी को फिर पोंछ लिया है, लबों को आज फिर मुस्कुरा लिया है। छोड़कर सारी चिंताएँ ज़िंदगी को आज फिर गले लगा लिया है।

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मैं भी सही हूँ, पर ये तू नहीं समझेगा…

मैं भी सही हूँ, पर ये तू नहीं समझेगा, तेरा अहम तुझे कभी समझने ही नहीं देगा...तेरा अहम तुझे कभी समझने ही नहीं देगा...!

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ये वक्त भी गुज़र जाएगा…

ज़िंदगी तो जंग है इम्तिहानों की, हम नहीं डरते इम्तिहानों से, तू बस ख़ुद पर विश्वास रख, उस विश्वास से ही तू जीत जायेगा।

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मीठी सी नोक-झोंक और थोड़ी सी तकरार, कुछ ऐसा ही है पति और पत्नी का प्यार!

पति-पत्नी का प्रेम जैसे - लबों पर शिकायतें, आँखों में प्यार, वो मीठी सी नौक झोंक और थोड़ी सी तकरार, कुछ देर बाद, फिर वो पहले जैसा प्यार!

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