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Arshin Fatmia
"मम्मा यार! मैं आपकी तरह बहादुर नहीं हूँ। कहीं और जाकर रहना, वो भी सारी जिंदगी के लिए .सोचकर भी मेरा बी.पी डाउन होने लगता है।"
"ये रिश्ते, ये नाते, मेरी समझ में नहीं आते। सच्ची बताऊँ दिल भर गया है इनसे। मन करता है एक लम्बी नींद सो जाऊँ कभी आंख ना खुले कोई ना दिखे..."
माँ, अनुज का चक्कर दूसरी लड़की से चल रहा है। पहले वो घर से बाहर मिलता था लेकिन जब मैंने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया तो वो निडर हो गया...
माँ बहुत कोशिश करतीं थीं कि आंसू ना बहे, खासकर बच्चों के सामने मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता था तो आंसू अपने आप ही निकल आते...
उसका कितना मन था कि मंगनी के बाद दोनों की बातचीत शुरू हो जाए। मगर पवन ने ना तो बहन से नम्बर मंगवाया ना तो खुद चुपके से उसे फोन किया।
मैं सब कुछ बर्दाश्त कर लूंगा मगर मेरे बच्चों की बारी आएगी तो बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करुंगा। वो उसे समझाने की हर कोशिश कर रहा था और आज...
वो बता भी नहीं पाई कि कोई है जो उससे शादी करना चाहता है। उसकी मामूली शक्ल से उसे कोई दिक्कत नहीं है। उसने सिर्फ उसकी सीरत देखी थी।
जब भी जरूरत होगी एक आवाज़ देना तुम्हारा ये भाई हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा मिलेगा, मरते दम तक...
दीदी से बात होती तो जीजाजी के दोस्त की फैमिली की तारीफ ही करतीं थीं फिर ये सब कैसे हो गया...
बस कर लल्ला! ज्यादा मत बोल। सबका दिल एक जैसा नहीं होता। इसको प्यार की जरूरत है इस तरह करोगे तो वो और बीमार हो जाएगी।
उसको लगता कि जब से उसकी जब से शादी हुई तब से आजादी खत्म हो गई थी। पति भी कभी कुछ नहीं बोलते लेकिन एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि...
बस मम्मी बस! अब और नहीं। क्या चाहतीं हैं आप? घर का काम करुं? शादी कर लूँ? कब करना है? आज? आपका जब दिल करे, आप करवा दीजिए।
उन्होंने तो मना कर दिया मगर क्या अवि गलत था या नैना? दोनों को उसकी खुशी प्यारी थी मगर उन्हें लगता था जब इतना वक्त गुजर गया है तो...
सब उससे हमदर्दी रखते, अफ़सोस भी करते कि हाय बेचारी बहुत सीधी है, हाय बेचारी जबसे आई है कभी ऊंची आवाज में बोली नहीं, हाय बेचारी!
तुम लोगों ने मुझे क्या कोई मशीन समझ रखा है कि एक के बाद दूसरी, तीसरी, अब फिर?अकल-वकल है तुम लोगो में? मैं इन्सान हूँ जानवर नहीं...
मुझे पेंशन मिलता है बच्चों, मुझे तुम्हारे पैसों की जरूरत नहीं है। मैं घर में अपने कमरे में अकेली पड़ी रहती हूँ। मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है।
मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं थी। सर में दर्द था और हल्का बुखार भी था। मैं अपने कमरे में लेटी थी, कोई भी नहीं आया था। सुबह से मैंने कुछ खाया भी नहीं।
"अम्मा! बेटा, बेटी तो हमारे हाथ में नहीं होता ना। भगवान जो चाहे वो दे दे...", बहू ने सर झुका कर इतना ही कहा था कि अम्मा गुस्से में फुफकार उठीं।
नीलिमा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ने माँ को इतमिनान दिला दिया या शायद उन्होंने खुद को मना लिया कि वो संजीव के साथ खुश है।
रोहित ने जब भी मुझे अपने साथ ले जाने की बात की, कुछ न कुछ हो ही जाता, कभी मम्मी जी बीमार हो जातीं, तो कभी पापा जी रोक लेते मगर वो 'कुछ दिन बाद' आया ही नहीं।
अपनी माँ का वो सामान, जो उन्हें हद से ज्यादा अज़ीज़ था, उसको बेचने पर मजबूर कर दिया। सिर्फ दिखावे के लिए!
झुंझलाहट उस वक़्त होती,जब सारा काम खत्म करने के बाद खाना खाने बैठो तो पता नहीं बच्चों को कैसे पता चल जाता है। उसी वक़्त नैपी गंदी करके रोना शुरू!
आखिर क्यों बेटियों को उनके घर में और ससुराल में उनके हक़ का प्यार नसीब नहीं होता ? संजना की भी कुछ ऐसी ही बेबसी की कहानी थी..
हाँ मैं हूँ! मैं एक बहादुर...देश के लिए जान देने वाले इंसान की पत्नी हूँ...मैं कमज़ोर कैसे हो सकती हूँ? वो एक सच्चे देशभक्त की पत्नी थी...
उसने कहा था वो उतना ही सहेगी जितना सहने की ताकत रहेगी, जिस दिन वो ताकत खत्म होगी, उस दिन वो पता नहीं क्या करेगी और आज वो दिन आ गया था...
माँ आप हमेशा संजना के पीछे पड़ी रहतीं हैं, अगर उसने आपको जवाब देना शुरू कर दिया तब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा, क्यों कि सहने की भी एक सीमा होती है।
मुझे लगा वो मेरे पीछे आएंगे इसलिए मैंने मोबाइल कैमरा छुपा कर चला दिया, इतने दिनों से मेरे पास सबूत नहीं था इसलिए मैं बता भी नहीं रही थी।
मुझे कोई समस्या नहीं, मेरे लिए तो अच्छा है मुझे दो-दो मांओं का आशीर्वाद मिलेगा और तुम भी बेफिक्र रहोगी। बच्चे भी खुश रहेगें दादी-नानी का साथ पाकर।
"कसम से आप इतनी मासूम हो कि मेरे जैसा इंसान आपके ऊपर होने वाली ज्यादती बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। पता नहीं ये लोग किस मिट्टी के बने हैं।"
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