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Home maker at present. Worked as English teacher. My short stories and poems are published on platforms like saranga and pratilipi.
माँ दुर्गा को शक्ति रूपिणी मानते, नारी को तो अबला बोलते। कन्या पूजन करते लेकिन, बेटी को तो नहीं चाहते। फिर ये कैसी पूजा है?
ये कैसी संस्कृति है? एकलव्य से इस बेटी तक, कुछ नहीं बदला। तब उस का अंगूठा काटा, तो अब इस की जीभ? सदियों से कुछ नहीं बदला।
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