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नहीं रहना चाहती ऐसे समाज में जहाँ स्त्री-पुरूष आपस में ही द्वन्द करें, अपने अहं के लिए, न ही ऐसा समाज चाहती हूँ जहाँ पितृसत्ता व मातृसत्ता का नाम भी हो...
वो एक खून का कतरा, उसी एक कतरे से दुनिया में अस्तित्व तुम्हारा होता है मानव, फिर भी तुमने स्त्री की उस पीड़ा को एक हौआ बना कर रख दिया है?
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