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रिश्तों और परिवार की अहमियत मेरे लिए सबसे ज्यादा है।
सुरभि ने कहा भी था, "मां तुम मेरे बारे में किसी से चर्चा क्यों नहीं करती हो?" मां ने कहा था, "बेटा मैं क्यों बताऊंगी? वह लोग खुद जान जाएंगे।" वक्त से पहले बोलना नहीं चाहती थी वो।
रोहन ने रजनी से कहा, "रजनी बिना सबूत कुछ साबित नहीं कर पाओगी? क्यों समाज में अपने परिवार और रीना का नाम बदनाम कर रही हो?"
अभी मैं सिर्फ 16 साल की हूँ और इस उम्र में मेरी शादी एक कानूनन अपराध है। मुझे पढ़ना है, अभी बस पढ़ना है...
सरला और सौम्या ने इस बार मिसेज शर्मा को दीवाली पर एक साथ उत्सव पर शामिल करने का प्लान बनाया है। सरला और सौम्या दोनों ने मिसेज शर्मा को फोन किया...
उस औरत ने किसी भी तरह का साज श्रृंगार नहीं किया हुआ था। फिर भी वह सभी को आकर्षित कर रही थी। 10 बच्चे और अकेली वह...?
दीदी, सुरेश क्या बोलेंगे? मैं उनसे तो पैसे लेती नहीं हूं। मैं अपनी कमाई के कुछ पैसे अपनी मां को भेजती हूं। वह चाहकर भी मुझे मना नहीं कर पाते।
आपके पड़ोस में भी कोई ऐसी महिला ज़रूर होगी जो सिर्फ बेटा पैदा होने पर ही खुशियां मनाती होगी। अब उसे क्या पता खुशियों के कारण और भी हैं...
तुम्हारी पहली बीवी जो भी है, जैसी भी है, तुम्हें क्यों बर्दाश्त कर रही है? तुमने उसके साथ भी नाइंसाफी की है और मुझे भी तुमने धोखा दिया।
अपनी पोती को गोद में लेकर उन्होंने कहा, "यह बच्ची अभी दुनिया में आयी है, इसने तुम्हें क्या दुःख दे दिया जो रो रही हो? क्या ले लिया इसने?"
सीमा को अपने पति पर गर्व होता। उसने सपने में न सोचा कि उसका पति उसका साथ देगा। क्या करती, बचपन से उसने देखा कि ज़रूरत सिर्फ पति की होती है।
"मेरे बेटे ने पसन्द किया है लड़की को और लड़की रहना चाहती है। मैं माँ हूँ अगर मैं साथ न दूँगी तो मेरे बच्चे दुनिया में अकेले हो जायेंगे।"
शादी के बाद सुगंधा ससुराल गयी, तो वहाँ कभी खाना मिलता तो कभी नहीं, कभी ये नहीं तो कभी वो नहीं। घर की माली हालात अच्छी न थी।
पर शादी में जितनी महिलाएं आयी थीं, दुल्हन से ज्यादा शिवानी पर सबकी नजरें थी। कुछ तो "अनर्थ" कहकर चल दीं उठकर शादी से।
बहुत बुरा लगता मुझे कि मुझे ससुराल और ससुराल के रिश्ते होते हुए भी कुछ नहीं मिला। और मेरे ही कारण मेरे पति भी परिवार से अलग हो गए...
अब घरवाले उसकी शादी की तैयारी कर रहे थे। जैसे-तैसे उसने अपने माँ-पिता को बहुत अच्छे से समझा कर दो साल शादी न करने के लिए मना लिया।
जग तारूं, उद्धार करूँ,दया भाव से, सबको निवारूँ,न अपना कोई न बेगाना,बिन स्वार्थ सबका कल्याण करूँ,कल्याणी सी भव्यता हो मुझमें।
उन्हें खेद था लेकिन मैं आंसू पोंछकर, आत्मविश्वास से दमक रही थी। मेरा मन हल्का हो गया था कि मैंने अपने आत्मसम्मान को मरने नहीं दिया।
मैं जन्मदात्री, मैं ही हूँ उर्मि, और रानी चेन्नमा। मैं सहती कभी गृहप्रताड़ना, पर अब आजाद हूँ, मैं मजबूत हूँ, हूँ मैं कल्पना। मैं नारी, आजादी हमें प्यारी।
मेरे पति उसकी माँ बनकर उसके साथ रहते थे। स्कूल में उसका एडमिशन भी करवा दिया, उसे स्कूल छोड़ना, लाना, खिलाना, साथ में सुलाना सारा काम करते।
मैंने अपनी बेटी के सफर की शुरुआत अलग तरीक़े से किया है,जहाँ बचपन में खोना है, और किस्मत के साथ, खुद जिंदगी की मिल्कियत चुनना है।
इसी तरह चाचा के द्वारा कई बार कहने के बाद एक दिन माँ ने कहा, "पढ़ी है तो क्या हुआ? कोई गलत काम थोड़ी ना करी है।"
शबरी सी भक्त हूँ, दुर्गा सी सशक्त हूँ। मेरे नाम अनेक, रूप अनेक, मैं औरत हूँ, हाँ मैं नारी हूँ, शक्ति मेरी अपार मैं महिला अवतारी हूँ।
मेरी आँखें भर आईं। मेरी आँखें बरस रही थीं और बारिश का बरसना कम हो रहा था और परीक्षा देने के लिये जब मैं घर से निकली तो बारिश रुक चुकी थी।
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