कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि लड़कियों को बार बार अपनी क्षमता साबित करने के लिए लंबी जद्दोजहद करनी पड़ रही है?
क्या वास्तव में देश में लड़के और लड़की के बीच किया जाने वाला फ़र्क़ मिटता जा रहा है? इसका जवाब अभी भी पूरी तरह से हां में नहीं मिलता है।
शिक्षा बदलाव का कितना बड़ा माध्यम है यह बात तमन्ना समझ चुकी है और यही वह अपने समुदाय को भी समझाना चाहती है।
बिहार में जारी पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी सुर्ख़ियों में बना हुआ है। यहां जानें उन्हीं की कुछ कहानियां...
पहाड़ी महिला ने आवाज़ उठा, शराब परोसने वाले परिवारों से आर्थिक दंड का प्रावधान किया, इससे कुछ हद तक ग्रामीण क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध लगा।
अजमेर के ग्रामीण क्षेत्र की महिला न केवल राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल में अपनी पहचान बना रही हैं, बल्कि गांव की लड़कियों को राह दिखा रही हैं।
बाढ़ में सबसे बड़ी समस्या महिलाओं और किशोरियों के लिए है, जिन्हें महिला शौचालय और माहवारी जैसी चीज़ों से समझौता करना पड़ता है।
बीते कुछ समय में यौन हिंसा और अपराध के ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जहां पानी या शौचालय का अभाव उस घर की बेटी-बहू के रेप की वजह बन गया।
महिलाओं का पोषण वाटिका के पीछे एक और उद्देश्य है, इनका मानना है कि कोरोना और आर्थिक संकट से निपटने के लिए केवल सरकार पर निर्भर रहना गलत है।
आज यह महिलाएं मुख्यमंत्री कोसी मलवरी परियोजना के तहत रेशम के धागों से अपनी पहचान बुन रही हैं, जिससे समाज में उनका सम्मान बढ़ा है।
लेटेस्ट ट्रेंड में इको फ्रेंडली राखियां काफी पसंद की जा रही हैं। ऐसी ही कोकून से बनी ईको फ्रेंडली राखी बिहार की महिलाओं ने बनायी है।
सच्चे अर्थों में महिलाओं के लिए आज़ादी के मायने उस दिन बदलेंगे जब वह घर की चारदीवारी से लेकर बाहर तक स्वयं को आज़ाद महसूस करेंगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय मिलकर रहते हैं। इन्हें प्रेरित करने के लिए उन्हीं के बीच से कोई जो इनकी भाषा व व्यवहार को समझता हो चाहिए।
किशोरी बालिकाओं में कुपोषण होने के कारण वे आगे चलकर कई रोगों का कारक बन जाती हैं और उस पर लड़कियों के उपचार को गैर जरुरी खर्च माना जाना...
महामारी की परिस्थिति से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अभी भी ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य अवस्था के क्षेत्र में बहुत काम करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ गया ‘जय माँ दुर्गा महिला स्वसहायता समूह’ को, जो ग्रामीण लोगों का कुपोषण दूर करने के लिए 'रेडी टू ईट' आहार बनती हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का दूर होना और समय पर उचित इलाज नहीं मिलना आज भी महिलाओं को प्रसव के दौरान पड़ता है भारी।
हम सामाजिक बुराई से लड़कर, जागरूक होकर और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करके घरेलू हिंसा के खिलाफ काम कर सकते हैं।
बहरहाल वैज्ञानिक नज़रियों और अंधविश्वासों का झगड़ा तब तक चलता रहेगा जब तक देश के हर ग्रामीण इलाकों तक शिक्षा और सही सूचना नहीं पहुंच जाती है।
कहने को तो यह नाता प्रथा महिलाओं को अधिकार देने और अपने पसंदीदा साथी के साथ जीवन जीने का अधिकार देने की बात करती है, लेकिन...
बैंक सखी योजना से महिलाओं को रोजगार तो मिल ही रहा है साथ ही वह आत्मनिर्भरता की ओर स्वतंत्र रूप से अग्रसर हो रही हैं। आइये जानें कैसे।
मासिक धर्म एक जरूरी और प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसको बारे में आडंबरों और गलत धारणाओं के कारण कई पहाड़ी किशोरियां परेशान हैं।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में 14 फीसदी लोग कुपोषण के शिकार हैं जबकि 37 फीसदी बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से छोटे कद के हैं।
छत्तीसगढ़ के अरंड गांव में जनवरी 2020 में महिला कमांडो समूह का गठन हुआ और तब से महिलाओं ने गांव में शराबबंदी को लेकर व्यापक मुहिम छेड़ दी है।
देश में महिला सशक्तिकरण योजनाएं भले ही महिलाओं के स्वाभिमान में सहायक हों, लेकिन लिंगानुपात आंकड़े इन योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
बिहार की कुछ महिलाएं हैं जिन्होंने मशरूम की खेती के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी उदाहरण बन रही हैं।
माहवारी के दिनों में लड़कियों की शिक्षा बाधित हो जाती है क्योंकि इस दौरान उन्हें स्कूल या कॉलेज में सैनेट्री पैड उपलब्ध नहीं हो पाता है।
देश की पहली एम.बी.ए शिक्षा प्राप्त सरपंच छवि राजावत को अपना आदर्श मानते हुए ललवाड़ी गांव की राधा आज उन्हीं की राह पर चल रही हैं।
राजस्थान की सोहिना जैसी कुछ लड़कियां आगे बढ़ कर अपने ही समुदाय में अशिक्षा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ अलख जगा रही हैं...
जब कोरोना के समय कई उद्योग-धंधे संकट में थे, उस वक्त इचलकरंजी गारमेंट क्लस्टर की महिलाओं के पास अगले कुछ महीनों के लिए पर्याप्त काम थे।
अपना ईमेल पता दर्ज करें - हर हफ्ते हम आपको दिलचस्प लेख भेजेंगे!
Please enter your email address