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मेरा नाम दिव्या है और मैं बिहार मुजफ्फरपुर की निवासी हूं और पेशे से पत्रकारिता की छात्रा हूं।
अक्सर लोग तनाव को गंभीरता से एक बीमारी के रूप में नहीं लेते हैं और इस वजह से तनाव हमारे ऊपर शारीरिक और मानसिक तौर पर हावी होता जाता है।
बुरे वक्त में समाज आगे आ कर मेरे साथ क्यों नहीं खड़ा होता? जब समाज उस वक्त मेरा साथ नहीं दे सकता तो वह कौन होता है जो मेरे जीवन का फैसला ले?
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं का खतना का कोई डेटा रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए भारत में इस पर कोई विशिष्ट कानून भी नहीं है।
जब महिलाएं इस क्षेत्र के बारे में सोचती तक नहीं थीं, तब पद्मा एक मिसाल बनीं। हाल ही में डॉ पद्मा बंदोपाध्याय को पद्म श्री से नवाज़ा गया।
यहां मैं सभी की बात तो नहीं कर रही पर बचपन से ही हमें अक्सर सुनने को मिलता, "तेरा तो व्याह हो जायेगा! तू तो ससुराल चली जायेगी! फिर तेरा यहां कौन?"
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