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सब लोग जल्दी ही तैयार होकर गाड़ी में बैठ गए। जूही पिछली सीट से दादा-दादी को बाय-बाय कर रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि...
बहु को भी तो हम लक्ष्मी के रूप में देखते हैं। लक्ष्मी के आने पर जैसे हम घर को सजाते हैं वैसे ही मन को भी सजा संवार कर तैयार कर लेना चाहिए।
बात उन दिनों की है जब मैं गर्भवती थी। सेना के किसी जवान को देखती तो सोचती कि हाय! इनकी माँ कितना गर्व महसूस करती होगी।
मैं चाय बनाने जा ही रही थी कि वो बोल उठी मैंने चाय पीना छोड़ दिया है। उसकी हंसी से मुझे पता चल गया कि कितनी बेस्वाद चाय बनाती थी मैं।
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