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मैं पूनम सिंह, अपने मन में आये विचारो,भावो को अपने लेखन की कलम से शब्दों के जरिये खाली पन्नो पर तारने का एक प्रयास करती रहती हूँ।
जो लोग मुझे अभी भी अबला नारी समझते हैं, वे समझ लें कि बात घर की हो या आफिस या सामाजिक स्तर की, हर जगह मैंने अपनी योग्यता से कमान संभाल ली है!
इस जिंदगी की जद्दोजहद में किश्त जैसे एक समस्या बनती जा रही है, जो न केवल इंसान का सुख चैन छीन रही है बल्कि उनके अपने भी दूर होते जा रहें हैं।
लंबी सांस लेते हुए नेहा की सास की आंखे नम हो गयीं, क्यूँकि ससुराल में कदम रखते ही उन्हें दहेज़ के इस घिनौने अभिशाप से झूझना पड़ा।
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