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सुनो, मैं हर धर्म कर्म में तीर्थ यात्रा में दूँगी साथ तुम्हारा, पर तुम भी चलना हाथ पकड़ कर, पढ़ लेना मन मेरा, यदि हाँ बोलो तो आओ ले लो संग में पहला फेरा...
जो माँ उन दोनों के जन्मदिन को उत्सव की तरह मनाती थी, वो दोनों आज उसी का जन्मदिन भूल गये और उसी दिन घर बेच दिया जो माँ को सबसे ज्यादा प्यारा था।
मैंने देखा है स्वतन्त्रता की उम्मीदें जोहते परतन्त्र भारत को, मैं 15 अगस्त हूँ।
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