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छोटे छोटे बर्तनों में निरा प्रेम पका, थालियों में परोस देना भूख के साथ, मैंने सीखा है स्त्री होना, अपनी माँ से सानिध्य में।
जाने क्या था जो माँ को कभी समझ नहीं आया? "तू पागल है" वो समझा देना चाहते थे, ना मानने पर माँ के गले, कमर, बाजू, जांघों पर निशान थे, पापा की समझदारी के...
विद्यालय प्रांगण में जहाँ, एक ओर दिन का आरंभ सरस्वती पूजन से किया जाता है, वहीं बच्चों के बचपन तथा नारी अस्मिता को तार-तार किया जा रहा है!
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