कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
Myself Pooja aka Nirali. 'Nirali' who is inclusion of all good(s) n bad(s). Not a writer, just trying to be outspoken. While playing the roles of a daughter, a wife, a mother, a friend, and a human...I am trying to be Me.
औरत ही औरत की संगिनी होती है, वह उसका दर्द समझ सकती है और उसके दर्द की दावा भी कर सकती है, आख़िर वो औरत जो है, उसका ह्रदय सौहार्द से लबरेज़ है।
उम्मीद है कि यह कविता उन औरतों का दर्द बयां कर पाए जो एक घर की, एक रिश्ते की चार दिवारी में कैद हैं, और नयी उम्मीद का सृजन कर, उनको सालों की चुप्पी तोड़ने को प्रेरित कर दे।
हमारा इंटरेस्ट तो फिल्मी हस्तियों पर ज़्यादा है, उनकी बातें हमें इफ़ेक्ट करती हैं। नेताओं और ढोंगी बाबाओं की बातें प्रभावित करती हैं। मृत समाज है हमारा।
मेरा घर कौन सा है, बस इतना बता देना - वो, जो कहता है बेटा वही तेरा घर है, या वो, जो कहता तू दुजे घर से आई है।
हाँ, मैं औरत हूँ और आप सब से यही पूछती हूँ- क्यूँ मेरे अत्याचारी को, हिन्दू-मुस्लिम बना दिया, क्यूँ सफ़ेद कफन को भी, हरा और लाल कर दिया?
वर्तमान में जिस तरह धर्म को आधार बना शोषण और बुराइयों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वो निंदनीय है लेकिन उससे ज्यादा दुःख का विषय है कि देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो सिर्फ मूक दर्शक हैं। रोज़ बढ़ते बलात्कार और वहशियों की बढ़ती संख्या ने मुझे एक बात कहने को मजबूर किया है-“सौ मूक रामों से एक रावण भला।”
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