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वह उसकी मनोदशा समझ रहा था लेकिन वो भी कुछ नहीं कर पा रहा था। स्वत वह अतीत में खो गया, जब उसके माता-पिता को उनके बारे में पता चला...
जो मर्द औरत से जलन रखता है वह मन ही मन बखूबी जानता है कि एक औरत बहुत सारे रोल को बखूबी और उससे ज़्यादा अच्छे से निभाती है।
अब जब हमारा समाज इस सोच से ऊपर उठ रहा है तो हम क्यों वो पिछड़ी और दकियानूसी सोच रखें क्यूंकि कोई काम किसी किसी एक जेंडर के लिए नहीं है।
"लॉक डाउन है तो क्या? आज तेरी भांजी का पहला बर्थडे है, इसी शहर में रहकर हम अगर नहीं गए तो समधी जी क्या सोचेंगे?" क्या ये आप हैं?
बात तब की है जब मैं स्कूल में थी, तब इमली बेचने वाली अम्मा रोज़ हमारे स्कूल के पास आती और सारी लड़कियां उससे इमली खरीदतीं।
चाहे कोई कुछ भी कहे पर अभी भी ज़्यादातर माँ-बाप को बेटी के ससुराल के साथ निभाना ही पड़ता है, चाहे वो लड़की के परिवार के साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें।
इस कन्या पूजन पर सोचें, माँ-बाप के दिए हुए ये संस्कार, जो आज भी हर लड़की को बचपन से ही सिखाते हैं कि हर हाल में सहनशील बनना चाहिए, कितने ज़रूरी हैं?
जिसने अपने घर में कभी रसोईघर में कदम न रखा हो, उसे पहली ही बार में बीस लोगों के लिए खाना बनाने को कहा जाए, तो सोचिए उसका क्या हाल होगा!
हे भगवान! मेरा ऑपरेशन हो रहा है और ये डॉक्टर क्या कर रहे हैं। इन्हें अपनी छुट्टियों का प्लान बनाने के लिए यही जगह मिली है क्या?
ये तो 'एक अनार और सौ बीमार' वाली बात हो गई क्योंकि एक सोने का सिक्का पाने के लिए हजारों महिलाओं की भीड़ जमा हो गई थी।
"क्या?" इतना सुनते ही माया का कलेजा मुँह को आ गया। क्या डाॅक्टर को पता नहीं कि लिंग जाँच करना कानूनन अपराध है?
आज भी हमारे समाज में विधवा औरतों को शुभ कार्यों से दूर रखा जाता है, उन्हें अशुभ करार दिया जाता है। सुहागन और अभागन बनना किसी के हाथ में नहीं होता।
लगता है आप पहली बार ऐसे दर्शन करने आए हैं। देखिए, पांच मिनट के दो सौ रुपए, दस मिनट के चार सौ, पन्द्रह मिनट के छः सौ पर हेड।
कभी-कभी हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन हमें दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए।
जब लड़के वाले दहेज लेते हैं तब उन्हें बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब अपनी बेटी की शादी में दहेज देना पड़ता है, तब बहुत तकलीफ होती है।
रोज की तरह रमा घर का काम कर रही थी। तभी पड़ोस की मुनिया चाची आई। मुनिया चाची के स्वभाव से सब परिचित थे। वो सच बोलती थी जो की बहुत कड़वा लगता था सभी को, सेठाईन डर गई ना जाने क्या बोल जाए।"
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