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किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।
“मैं जीवन में विश्वास करती हूं, प्रेम में, और प्रकृति के नियमों की महानता में” कहने वाली इज़ाडोरा डंकन का जीवन के संगीत पर नाचता।
आज कित्तूर की रानी चैन्नम्मा का राजमहल और दूसरी इमारतें लोगों को उनसे प्रेरणा लेने को विवश करता है। बेशक उनको भुलाया नहीं जा सकता है।
क्या घर और बाहर महिलाओं के योगदान के एवज़ में सामाजिक स्तर पर उनको लेकर मान्यताओं में बदलाव आया है? उनके बारे में पुरुषों की सोच बदली है?
2021 फोर्ब्स सूची में शामिल भारतीय महिलाएं साबित करती हैं कि वे डटी रहीं बेखौफ, केवल अपने ऊपर और अपनी क्षमताओं पर भरोसा करके।
अक्सर शादी के बाद एक परिवार की संस्कृति को प्राथमिकता और दूसरे परिवार की संस्कृति की प्राथमिकताओं की अवहेलना दंपति में क्लेश का कारण बनने लगती है।
अब वह सोच रही है अगर थियेटर प्रैक्टिस का टाइम चेंज नहीं होता है तो उसे थियेटर छोड़ देना चाहिए। पर क्या वह कुछ और कर सकती है?
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर भले ही अधिकांश लोग रामदेवी चौधरी को नहीं जानते हों पर उड़ीसा के जनसामन्य में वह आज भी मौजूद हैं।
फेमिनिज्म कभी भी महिलाओं को समाज से अलग-थलग रखकर देखने और हर क्षेत्र में पुरुषों के खिलाफ उन्हें प्रोत्साहित करने का दर्शन नहीं रहा।
हर जगह डबल मीनिंग बातों और महिलाओं को ज़बरदस्ती छूने वाले पुरुष मौजूद हैं! कुछ ऐसे हैं जो दिखने में शरीफ और टॉप की कॉलेज से पढ़े हुए हैं...
कुर्रतुल ऐन हैदर साठ के दशक में जब हिंदुस्तान पहुंचीं तो पहला बेशमीमती अफसाना जो उन्होंने लिखा, वह था अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो...
एक थीं शांति घोष, जिन्होंने किशोर दिनों में वह काम कर दिया जिसके बारे सोचना भी दांतों तले अंगुली दबाने बराबर है। 22 नवबंर 1916 को उनका जन्म हुआ।
अपनी लेखने क्षमता से लेखिका मन्नू भंडारी ने जिस स्त्री विमर्श के साथ-साथ बाल विमर्श स्थापित किया, उसको मील का पत्थर कहा जाए तो कम है।
क्या आप जानते हैं पद्मश्री दुलारी देवी कभी स्कूल नहीं गईं और एक समय ऐसा था जब वह झाड़ू-पोछा करके अपने परिवार का पालन-पोषण करती थीं।
भारत की पहली महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी मुम्बई विश्वविद्यालय से पहली महिला स्नातक और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
अबादी बानो बेगम उर्फ़ बी अम्मा, बी अम्मन के नाम से भी जानी जाती थीं। वह पहली मुस्लिम महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लिया।
12 नवंबर 2021 को 110 साल के होने जा रहीं अमल प्रभा दास अमूल्य धरोहर हैं असम समाज के लिए, जो समाज को पुर्नपरिभाषित करने की प्रेरणा दे रही हैं।
ये समझने की कोशिश करें, विश्व स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के दावे और घोषणाएं पद्मश्री तुलसी गौढ़ा जैसे पर्यावरण संरक्षकों के आगे बौना हैं।
हम सब जानते हैं कि महिलाओं का विज्ञान में योगदान बेमिसाल है, पर नोबेल पुरस्कार में उनकी भागीदारी अभी भी तुलनात्मक रूप से कम दिखती है।
वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक जानकी अम्मल के ही कारण भारतीय गन्नों को मिठास मिली।
कभी नहीं होगी धन की कमी! लक्ष्मी पूजन का समय दिवाली पर रहेगा कभी भी अगर ध्यान रखेंगे इन ज़रूरी बातों का। भूल कर भी ना भूलें इन्हें!
मार्गरेट नोबल भगिनी निवेदिता बनकर भारत में ही बस गईं और यहां की महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए रखी सिस्टर निवेदिता गर्ल्स स्कूल की नींव।
MAID वेब सीरिज़ हो या बेबी हालदार की आलो-आंधारि, दोनों में एक बात है, रिश्ते यकीनन नहीं टूटने चाहिए लेकिन रिश्तों में जिंदगी टूटने लगे...
तापसी पन्नू फिल्म रश्मि रॉकेट के उस डायलॉग की तरह है “हार-जीत तो बस परिणाम है कोशिश करते रहना अपना काम है...”
अपराजिता शर्मा ने महिलाओं की भावनाओं को अलबेली, हिमोजी स्टीकर्स से अलग ही रूप से न केवल विकसित किया, पहली बार नये कल्चर में प्रस्तुत भी किया।
सिंदूर खेला, स्त्री शक्ति का उत्सव है, इसलिए इसको सिर्फ विवाहित महिलाओं तक सीमित रखना, वहां के समाज से उचित नहीं समझा।
अपने अब तक के सफर में तमाम तरह के विवादों के साथ जिस तरह अभिनेत्री रेखा ने जीवन जीया है, वह समाज के सामने आईने रखने जैसा कहा जा सकता है...
आज बेगम अख्तर यानि अख़्तरी बाई फ़ैजाबादी का जन्मदिवस है, जिनका जादू उर्दू शायरी और संगीत के दुनिया में बड़े अदब और सम्मान से लिया जाता है।
देवी दुर्गा के नौ रूप! विडंबना है कि नवदुर्गा स्तुति हर घर में करेंगे लेकिन जीवन में मौजूद महिला को सशक्त बनाने का शायद ही कोई काम करे।
गांधीजी के बताए अहिंसा मार्ग पर चल दुनिया में हक की कई लड़ाईयां जीती जा चुकी हैं और ये महिलाएं उन गांधीवादी मूल्यों का प्रयोग कर रही हैं।
महिला टेस्ट क्रिकेट का आयोजन कराने वालों ने कभी सोचा है कि सफ़ेद ड्रेस में विमेंस क्रिकेट खेलना, खिलाड़ियों के लिए तनाव का कारण बन सकता है?
अलविदा कमला दी! मेरे लिए यकीन करना मुश्किल था, जिनको अब तक पढ़ा, वो मेरे सामने बेवाक अंदाज में बोल रही हैं, कमला भसीन ने मेरी सोच बदल दी!
बकौल योहानी दिलोका डी सिल्वा "मणिके मगे हिथे" का तर्जुमा उन भाषाओं में भी हो रहा है जिस भाषा के बारे में वह खुद नहीं जानती हैं।
प्रीतिलता वादेदार ज़िंदा पुलिस के हाथों नहीं आना चाहती थी, इसलिए उन्होंने साइनाइड की गोली खा ली जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गयी।
तमाम सवालों के बीच किशोर बेटी और अकेले पिता के बीच भरोसे का जो मजबूत पूल बांधने की कोशिश शॉर्ट फिल्म शिम्मी करती है, वह बहुत खुबसूरत है।
कैडबरी नए डेयरी मिल्क ऐड के साथ महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करने का मौका गवाँना नहीं चाहती है, लेकिन अभी भी इस ऐड में कुछ मिसिंग है...
सुष्मिता बंधोपाध्याय की हत्या के बाद 'काबुलीवाले की बंगाली बीवी' मैंने पढ़ी। मेरे जेहन में यह बात खबरों को पढ़कर बार-बार कौंध रही थी कि...
"2020 में भी हम स्त्रीवादी साहित्य आलोचना दृष्टि पर नहीं लिखेंगे तो फिर कब?" कहती हैं पुस्तक आलोचना का स्त्री पक्ष की लेखिका सुजाता...
हिंदी साहित्य में इन महिला साहित्यकारों का योगदान इतना है कि इनकी रचनाएं, हर पाठक को उसके जीवन के उद्देश्यों के तलाश करने में मदद करेंगी।
हमें अक्सर कुछ उदार पुरुषों की टिप्पणी देखने को मिल जाती हैं, “एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है”...लेकिन इस टिप्पणी के रचियता कौन हैं?
बूस्ट का विज्ञापन हमारे सोच के दायरे, परंपरागत स्त्री-पुरुष सोच, से मुक्त होने की वकालत करता है। क्या आपने बूस्ट का नया विज्ञापन देखा है?
फिल्म हेलमेट एक लाइन, “चाहिए सब को, मगर मांगता कोई नहीं है” पर टिकी है परंतु अपने मुख्य बिंदु को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाई।
'द एम्पायर' अभिनय और भव्य सेट के नज़रिये से निराश नहीं करती। कहानी में महिलाओं के पक्ष को जिस तरह पिरोया गया वह कहानी को रोचक बना देती है।
जब अमृता की कलम से पिंजर उपन्यास में विभाजन की टीस उभरी तो हिंदी-पंजाबी-उर्दू भाषी समाज में धूम मच गई। कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ।
सिक्किम की हेलेन लेपचा का त्याग और जन सेवा के प्रति समर्पण आज की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल बन सकता है, बर्शते हम उनके बारे में जानें।
यह फैसला देश के एक अहम संस्थान यानी एनडीए के अंदर एक लैंगिक दीवार के टूटने जैसा है, महिलाओं के लिए "एनडीए" में नए अवसर तराशता फ़ैसला।
प्रचलित कहानियों के अनुसार गुड़िया को पीटना महिला और बहन पीटने का प्रतीक है, जिसको पीटने में शौर्य है, इज्जत पर लगे हुए बट्टे की धुलाई है।
शॉर्ट फिल्म ट्रांजिस्टर में पवन के पास ट्रांजिस्टर के पैसे न जुटा पाने के कारण अब एक ही रास्ता है। ये रास्ता क्या है? उसके बाद क्या होता है?
नवरस की गिटार कम्बी मेले निंद्रू बताती है पुरुष कैसे मार्डन जीवन साथी की तलाश तो करते हैं लेकिन उसमें अपनी मां की सोच भी खोजते हैं।
सिफान हसन की कहानी अपने देश में जरूर सुनाई जानी चाहिए क्यूँकि वो जिस देश का प्रतिनिधित्व टोक्यो ओलंपिक में कर रही थी, वह वहाँ रिफ्यूजी है...
पर्दे पर उतरी हुई इस्मत चुगताई की सबसे अधिक बहस में रही कहानी 'लिहाफ़' इसे एक दफ़ा फिर से पढ़ने की ज़रूरत को पुख़्ता ज़रूर कर देती है।
अगर ओलंपिक में महिलाओं का इतिहास देखिए तो धीरे-धीरे हर खेल में महिलाओं की भागीदारी का रास्ता खोल दिया गया, उसके बाद आप जानते हैं...
फिल्म नटखट में सोनू की माँ अपने बेटे को इस सोच से बाहर निकालने का प्रयास करती है जो उसकी अपनी पीड़ा, दर्द, मनोदशा से भी जुड़ी हुई है।
फिल्म मिमि के एक संवाद में कृति सेनन डाक्टर से कहती हैं, “पेट के बाहर किसी को मारना गलत है तो पेट के अंदर किसी को मारना कैसे सही है?”
मल्लिका समग्र इस बात की चर्चा ज़रूर करता है कि अगर भारतेंदु अपनी जीवनी पूरी कर पाते तो अवश्य मल्लिका के बारे में कोई जानकारी मिल जाती।
भवानी देवी का संघर्ष अपने परिवार की आर्थिक चुनौतियों और तलवारबाज़ी प्रतियोगियों में मिली निराशाओं की आग में तपकर कुंदन बन रहा है।
निवेदिता मेनन की किताब 'नारीवादी निगाह से' का मूल बिंदू यह कहा जा सकता है कि मार्क्सवाद विचारधारा की तरह नारीवाद भी सार्वभौम नहीं है।
जनसंख्या नीति के तमाम नीतिगत फैसले महिलाओं के गर्भ से होकर जाते हैं और उनको ही जनसंख्या नियंत्रण के फैसलों में शामिल नहीं किया जाता है।
महिलाओं के शरीर पर उसकी पसंद को समझना जरूरी है खासकर जब मातृत्व की बात आती है तब, यही Sara's की कहानी का मुख्य थीम है।
आप या तो हिंसा के समर्थक दिखेंगे या हिंसा के विरोध में। इसके लिए न किसी गांधीवादी दर्शन की जरूरत है न ही किसी मार्क्सवादी दर्शन की।
आधुनिक मानवीय सभ्यता में कुछ नए आविष्कार हुए हैं, जिसकी वजह से महिलाओं की दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान सरलतापूर्वक संभव हो सका है।
डा. शर्वरी इनामदार को देख कर लगता है कि आज महिलाओं को साड़ी के साथ अपनी सहजता का प्रमाण देना पड़ रहा है, पता नहीं क्यों?
आज देश को जरूरत है कि न केवल मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहेन को जाने, बल्कि उनकी मेहनत, उनके संघर्ष और उनकी लगन के बारे में भी जाने।
“पागलपन की हद से ना गुजरे तो प्यार कैसा, होश में तो रिश्ते निभाए जाते हैं...” फिल्म हसीन दिलरुबा की कहानी इस संवाद के तरह ही उलझी हुई है।
दीपिका कुमारी कहती हैं, “समाज में कई जगहों पर पुरुष लेडीज फर्स्ट का जुमला उछाल देते हैं। महिलाएं भी बेहतर कर सकती हैं उनको पहले मौका तो दो।"
वेब सीरीज़ ग्रहण का डायलॉग, "जो हुआ जिनके साथ हुआ और जिन्होंने किया, कोई दान, धन, धर्म, पश्चाताप उसकी माफी नहीं दे सकता...” रूह को छूता है।
"औरतों ने किचेन के सुस्वाद भोजन के जायका बिगाड़ दिया है। अगर आप स्वस्थ्य रहने के इच्छुक हैं तो योगा या रस्सी कूदने की ज़रूरत नहीं है।"
स्त्री विमर्श में जिसको सिस्टरहुड, एक महिला का दूसरी महिला पर भरोसा, कहा जाता है, उसकी सहज अभिव्यक्ति है शेरनी फ़िल्म की यह तस्वीर।
बदलाव की इन कहानियों से हर पिता कुछ सीख रहा है और सामाजिक संरचना के सामने दीवार बन रहा है,जो बेटियों को दहलीज के बाहर जाने नहीं देना चाहते।
शेरनी को पकड़ने के लिए जंगल में कैमरे लगाए जाते हैं, पहरेदारी बढ़ाई जाती है, यहां तक दफ्तर में यज्ञ-हवन भी कराया जाता है।
ट्वीटर पर संजय दत्त का एक वीडियो, जो काफी पुराना दिखता है, बीते दिनों अचानक से बहस के दायरे में आ गया है। ऐसा क्या है इस वीडियो में?
फिल्म स्केटर गर्ल के एक संवाद में महारानी जैसिका से कहती हैं, “यहां के लोगों को बदलाव नहीं पसंद है। खासकर तब जब बदलाव एक औरत ला रही हो।"
फिल्म शादीस्थान का ये डायलाग बहुत कुछ कहता है, "हम जैसी औरतें लड़ाई करती हैं ताकि आप जैसी औरतों को अपनी दुनिया में लड़ाई न करनी पड़े।"
राबिया नाज़ शेख़ ने भले ही अपने शौक को इंटरनेट से जोड़कर उसको रोजगार में बदल दिया, परंतु उसके लिए यह सफर आसान कतई नहीं था।
मैं यह बात बिल्कुल ही नहीं जानता था कि अरूणिमा मैम के. शारदामणि की बेटी हैं जिनकी किताबों के संदर्भ मैं नोट्स के बतौर लिखा करता था।
फैमली मैन सीजन 2 में पहले सीजन में आगे क्या हुआ इसकी जानकारी फ्लैश बैक में आती है और नए सीजन की कहानी भी साथ-साथ चलती है।
रानी भारती कैसे-कैसे भष्ट्राचार, नरंसहार और पति के गोली कांड के तह तक पहुँचती है, यह सब जानने के लिए आपको वेब सीरीज महारानी देखनी होगी।
पारुल खख्खर की कविता शव वाहिनी गंगा सिर्फ एक माध्यम था उनका अपनी मन की तकलीफ को व्यक्त करने का लेकिन ट्रोल्स ने इसे कोई और ही रूप दे दिया।
फिल्म द वुमन इन द विंडो में हर पल नया मोड़ आता है, जो क्राइम, थ्रिलर और मनोविज्ञानिक रूप में कहानी को रोचक बना देता है।
ईद के मौके पर सलमान खान की ईदी उनकी फ़िल्म राधे - योर मोस्ट वांस्टेड भाई, निराश भी करती है महिलाओं के छवि को लेकर।
वेब सीरीज़ एस्पायरेंट्स यूपीएससी तैयारी करने वालों के सवलों को जवाब देती है या नही? मसलन अगर सफल नहीं हुए तो प्लान बी क्या रहेगा?
माँ तुम कौन हो? कहां से आई हो माँ? क्या माँ सिर्फ वह चेहरा है, जिसे मैंने जन्म लेने के बाद सबसे पहले देखा या मांँ उसके भी परे है, एक भाव या...
पिछले दिनों कोरोना महामारी के दौरान अचानक ट्विटर पर मनीषा मंडल का मैसेज वायरल होने लगा कि "क्या कोई डोनर ब्रेस्ट मिल्क दे सकती हैं?"
युद्ध में वो झाँसी की रानी की ढाल बनीं, अंग्रेज़ों को लगा कि उन्होंने लक्ष्मीबाई को पकड़ लिया है मगर यह झलकारी बाई की रणनीति थी।
‘हिज़ स्टोरी’ देखने के बाद जो पहला सवाल ज़हन में आया वह यह कि एलजीबीटीक्यू (lgbtq) समाज के लोगों कि अन्य समस्याएं और क्या-क्या हो सकती हैं।
असम के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक जीवन में महिलाओं को समान स्तर दिलाने के संघर्ष में चंद्रप्रभा सैकयानी का नाम अग्रिम है।
सोनी लिव की नई सीरीज काठमांडू कनेक्शन का थ्रिल महिलाओं के सवाल से जुड़ता है, जिसपर अब तक बातेें नहीं होती थीं।
जब यह बात मैंने अपने कुछ महिला साथियों से पूछी, तो उन्होंने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी, जिसको वाक्य में समेटने का प्रयास मैंने किया है...
अजीब दास्तान्स को देख कर आप बिल्कुल हक्के-बक्के रह जाते हैं क्योंकि इन कहानियों के अंत कल्पना से परे हैं और किरदारों का अभिनय कमाल का है।
कहा जाना चाहिए की भारतीय महिलाओं को मौजूदा दौर में अधिकांश अधिकारों को दिलाने की पहली नींव बाबा भीमराव अंबेडकर ने ही रखी थी।
मिसेज श्रीलंका पुष्पिका डिसिल्वा के ताज के छिन जाने के बाद एक ही सवाल आया और वो ये कि तलाकशुदा या सिंगल मदर से समाज को एतराज क्यों है?
मानते हैं ना आप भी शार्ट फिल्म 'दहेज़ का स्कूटर' की इस बात को, 'प्रथाओं का क्या है कोई मान के चले तो इच्छा, न माने तो रीत।'
मणिबेन नानावटी एक आम इंसान के लिए अस्पताल और महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की ज़रूरत को अपने जीवन संघर्ष से अच्छे से जानती थीं।
साइना नेहवाल की इस बायोपिक फ़िल्म में अमोल गुप्ते ने भावुकता पर इतना फोकस किया है कि उसमें उनका वर्ल्ड चैपियन बनने का संघर्ष खो गया है।
आस्तिक की मौत से उसकी तेहरवीं तक संध्या की ज़िन्दगी कैसे बदलती है? पगलैट और भी कई गंभीर मुद्दों को बहुत ही हलके-फुल्के अंदाज़ में कहती है।
मेरे लिए महादेवी वर्मा की कविता में ये लाइन हमेशा से प्रेरणादायक रही है, “घर तिमीर में, उर तिमीर में, आ! सखि एक दीपक बार ली।”
देश के सुप्रीम कोर्ट ने स्त्रीवादी न्याय के पक्ष में कुछ गाइडलाइन्स दी हैं, जिसको ऐतिहासिक बताया जा रहा है। सच में! ऐतिहासिक है!
मेडलीन स्लेड यानि मीरा बहन को भारत में कई लेखक मीरा बाई का दूसरा जन्म मानते हैं और उन्हें बीसवी सदी का मीरा बाई भी कहते हैं।
जनाब, सदियों से असमानता की जो खाई खोद कर स्वयं मलाई खाई है, उसको कम करने के लिए विशेषाधिकार तो मात्र एक पेन-किलर है, समस्या का समाधान नहीं।
बॉम्बे बेगम्स इस बात को स्थापित करने में कामयाब हो जाती है कि सभी महिलाएं समाज की एक ही मानसिकता से लड़ रही है और वह है पितृसत्ता।
शानदार कामेडी हॉरर फिल्म रूही में सबसे अच्छी खूबी यह है कि इसमें चुड़ैल तो महिला ही है पर वह अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में भी सचेत है।
समलैंगिकता का अपराध श्रेणी से निकलने के बाद दो महिलाओं के आकर्षण और सामाजिक बंधनों को “द मैरिड वुमन” दिखाने में कामयाब होती है।
इन पहली लेडी ड्राइवर ने जब दुनिया को चौंका दिया तो, देश की न जाने कितनी ही महिलाओं के लिए संदेश दे दिया था, “आओ! अपना दायरा तोड़ें...”
गीता यथार्थ ने इस तस्वीर को शेयर किया और कहा, "वॉशरूम का लास्ट टाइम गेट कब क्लोज किया था, याद नहीं!" उनका इतना करते ही सोशल मीडिया पर बवाल हो गया।
एक दिन यही रेस आपकी अपनी बेटी जीत लेगी और वह उसकी अपनी जीत होगी, कोई नहीं होगा उसका जीत का दावेदार या हकदार।
बेगम रुकैया सखावत हुसैन ने मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागृत करने का प्रयास किया था।
सस्पेंस थ्रिलर के साथ द गर्ल ऑन द ट्रेन की कहानी अंत में एक महत्वपूर्ण बात करती है वह यह बीकाज आई एम नांट द गर्ल आई यूज्ड टू बी...
फिल्म दृश्यम 2 कोई सामाजिक संदेश देने की जगह दर्शकों को क्राइम थ्रिलर में बांध कर रखना चाहती है और वह कामयाब भी होती है।
कमला चौधरी के बारे में न तो अधिक जानकारी मिलती है, न ही उनकी तस्वीर उपलब्ध है, बस उनका लिखा साहित्य ही उनकी थोड़ी जानकारी देता है।
जैसे प्रकृत्ति में बसंत का मौसम है, वैसे ही हर इंसान के जीवन में भी बसंत होता है पर वह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता है।
पहले तो आप प्रेमिका को विजेता की ट्रॉफ़ी के तरह सजा-धजा कर घूमते हो। फिर वही प्रेमिका अलग-अलग रूप में इस रिश्ते का बोझ उठाती है...
जाहिर है सरोजनी नायडू का लालन पालन उस घर के महौल में हो रहा था जो उस वक्त देश के अधिकांश लड़कियों के लिए कल्पना से परे था।
दहेज के खिलाफ 'दहेज खोरी बंद करो' कैंपेन UN Women की ओर से चलाया जा रहा है और अली जीशान की 'नुमाइश' इसी कैंपेन का हिस्सा है।
रात भर तो तुम जागती रहीं, थोड़ा सो लो, मैं हूं न! मैं नैपी बदल देता हूं, तुम दूध तैयार कर लो। क्या है पैटरनिटी लीव और इसके प्रावधान?
कुतंला कुमारी सबत आजीवन महात्मा गांधी की अनुयायी रहीं और देश की आज़ादी के साथ उन्होंने महिलाओं की पितृसत्तामक गुलामी से भी आज़ादी चाही।
राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला की महारानी थीं, पर उन्होंने स्वयं को एक महारानी के तरह ज़ाहिर नहीं किया, लेकिन उनके व्यक्तित्च में एक तेज था!
द ग्रेट इंडियन किचन हर महिला की कहानी है चाहे हाउस वाइफ हो या वर्किंग वूमेन। ये कहती है कि अपने अस्तित्व को पहचानो, उसके सम्मान को पहचानो।
सत्यवती देवी के जोशपूर्ण भाषणों को सुनने के लिए दिल्ली के रूढ़िवादी समुदायों की महिलाएं बड़ी संख्या में आतीं जिनके बीच वे एक किंदवंती महिला बन गईं।
हम स्वतंत्र गणतंत्र की बात कैसे करें जब आज भी आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा कई तरह की असमानताओं का सामना करने के लिए विवश है।
बीते हफ्ते सुष्मिता सेन की 21 साल की बेटी रिनी सेन की शॉर्ट फिल्म सुट्टाबाजी रिलीज़ हुई जो धीरे-धीरे नोटिस की जा रही है।
वेब सीरीज़ तांडव में हर महिला किरदार को अंतत: एक वेश्या केटेगिरी में लाकर खड़ा कर दिया, फिर चाहे वे प्रधानमंत्री हो या स्टुडेंट, डीन या डिफेंस मंत्री।
मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट ने अपनी किताब में उस सामाजिक व्यवस्था की आलोचना की जिसमें स्त्रियों को अच्छी महिला बनने पर जोर दिया जाता है...
फिल्म त्रिभंग से, "कभी-कभी सोचती हूं काश ये मेरे किरदार होते, फिर मैं उन्हें अपनी मनचाही दिशा में ले जाती और फिर वो मुझे प्यार करते" ज़हन में बस गयी है...
पहली नज़र में फ़िल्म द लास्ट कलर केवल विधवाओं की कहानी लगती है लेकिन कई गंभीर मुद्दों पर समाज में घृणित मानसिकता की भी एक खूबसूरत कहानी है यह।
डॉ सुशीला नायर के ये सवाल स्त्री आंदोलनों, स्त्री संघर्ष और महिलाओं के सामाजिक विकास में आज भी अपने जवाब की तलाश कर रहे हैं।
सिमोन द बोउवार ने आधी आबादी के अनुभवों को अस्तित्ववादी, दार्शनिक, सामाजिक और राजनीतिक आयाम दिया है और इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है।
कबीर वाणी में एक चौपाई है “मैं कहता हूँ आंखन देखी, तू कहता है काग़ज़ की लेखी”। इस चौपाई को सतीश कौशिक ने “काग़ज़” फिल्म का केंद्रीय थीम बनाकर एक कहानी कही है।
सीमा पहावा ने जिस अंदाज में रामप्रसाद की तेरहवीं की कहानी कही है, उसका नरेटिव दुनियादारी, रिश्ते और रिश्तों के पीछे का मतलब समझने का है।
यह रेणुका रे का संगठन नेतृत्व था कि उन्होंने शरणार्थी शिवरों में चलाए जा रहे स्कूलों से शत-प्रतिशत साक्षरता लोगों को प्रदान की।
जाते-जाते ये साल न जाने कितने ही सवाल हम सबों के ज़हन में छोड़ रहा है, लेकिन साथ में बहुत सारे सवालों का जवाब भी दे गया।
पौरूषपुर में कहानी को कहने के लिए जिस भव्यता, प्यार वासना और अय्याशी का सहारा लिया है, वह दर्शकों का ध्यान आने देगी इसमें संदेह है।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपने बारे में खुद ही कहा था कि लोग उनके मरने के बाद ही उनकी शायरी के उच्च स्तर को समझेंगे और उनका सही मूल्यांकन करेंगे।
क्रिमिनल जस्टिस सीज़न 2 के संवाद बार-बार यह सवाल पूछते हैं कि आखिर पुरुष अच्छी बीबी तो चाहते है पर अच्छे पति क्यों नहीं होना चाहते?
अमेजन प्राइम पर रिलीज अनपॉज़्ड की ये 5 कहानियाँ इस सत्य को ही बयां करती है कि भले ही लॉकडाउन के समय जीवन ठिठक सा गया था पर ठहरा नहीं था।
स्वतंत्रता की लड़ाई में सुशीला चैन त्रेखन अन्य महिलाओं के साथ बढ़-चढ़ कर भाग लिया करती और पुलिस की यातनाओं का भी सामना करती।
महिलाओं के शरीर और दिमाग पर हिंसा की मानवविज्ञानी व्याख्या को पावा कढ़ईगल सटीक तरीके से कहानी और फिल्मांकन के माध्यम से कहने में सफल होती है।
तोरबाज़ एक बेहद गंभीर विषय पर कही गई कहानी है जो संजय दत्त के अभिनय और कुछ बच्चों के मासूम कंधों पर टिकी हुई बोझिल सी फिल्म है।
पति पत्नी और पंगा में तालाक की मांग दूसरे मर्द या औरत के संग अवैध संबंध को लेकर नहीं है, यहां तलाक की वज़ह है 'लिंग परिवर्तन' आपरेशन है।
मोहम्मद अकबर के बहीखाते में कई बातें इतिहास में दर्ज की जाती हैं, जो उसके दौर में महिलाओं के हक में मील का पत्थर कही जाती थीं।
11 दिसंबर को अमेजन प्राइम पर ए कॉल टू स्पाई, हिंदी और अंग्रेजी में रिलीज हुई। इस सच्ची कहानी में राधिका आप्टे का किरदार काफी सराहनीय है।
डॉ रखमाबाई राऊत के संघर्षों से ही भारत में शादी की उम्र तय करने और हिंदू विधान में महिलाओं के तलाक अधिकार पर बहस की शुरुआत हुई थी।
नवाज़उद्दीन और पंकज त्रिपाठी की अनवर का अजब किस्सा एक प्रयोगधर्मी फिल्म है जिसमें डार्क कांमेडी भी है, थोड़ी सी जासूसी भी है और रोमांस भी...
फिल्म सूरज पर मंगल भारी को हास्य और व्यंग्य के खूबसूरत धागे में पिरोने की कोशिश की गई है, जो शुरू से अंत तक मनोरंजन करने से नहीं चूकती है।
द क्वीन्स गैम्बिट सीरीज शह और मात के एक खेल जैसा दिखती है जिसमें किसी की हार नहीं होती है क्योंकि पूरी सीरिज ही दिल जीत लेती है।
महिलाओं को, पुरुषों को पीरियड्स होने पर, उनको कैसी प्रतिक्रिया दें, कैसे उनका ध्यान रखना चाहिए, इसकी ट्रेनिग हर संस्था में दी जाती।
हम अपने घर की लक्ष्मी को सम्मान देकर ही अपने मंदिर की लक्ष्मी को रूठने से रोक सकेंगे। सोच क्या रहे हैं आप, हर रोज़ 'लक्ष्मी पूजन' मनाएं!
फिल्म लूडो एक ऐसी कहानी है जिसमें हीरो कौन है ये आप सोच कर बताएं, लेकिन इस फिल्म में हर किरदार, चाहे वो एक मर्द हो या औरत, को बराबर का चांस मिला है।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी के प्रयासों से स्थापित कस्तुरबा चिकित्सालय और कैंसर राहत के लिए अखिल भारतीय संस्थान आज एम्स के रूप में प्रसिद्ध हैं।
अक्षय कुमार की फिल्म लक्ष्मी ट्रांसजेंडर के सामाजिक समस्या पर बात करती हुई फिल्म हारर-कामेडी में भटक कर फेल हो जाती है।
अनुसूयाबेन साराभाई श्रम के क्षेत्र में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली प्रमुख महिलाओं में से हैं। वे केवल एक श्रमिक नेता न थीं।
व्यक्तिगत रूप से मैंने यह महसूस किया है कि कई बार बहुत थकान होने पर भी नींद नहीं आती है तो कई बार थकान नहीं होने पर भी नींद नहीं आती है।
शाबाना आजमी स्टारर 'काली खुही' अपने अंदर परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर दमन, शोषण और अत्याचार की कहानियों को समेते हुए है।
जयश्री रायजी दहेज विरोधी, बच्चों को गोद लिए जाने, महिलाओं के अवैध व्यापार रोकने और महिलाओं के तलाक संबंधी विधेयकों के लिए अधिक सक्रिय रहीं।
मात्र 15 मिनट की शार्ट फिल्म 'लघुशंका' में नींद में बिस्तर गीला करने की परेशानी पर बात करी गई है जिस पर सामान्यत: बात नहीं की जाती है।
इस सीरीज में इन तीनो महत्वकांक्षी व्यापारियों की कहानी इतना तो बता देती है कि भारत के लोगों के पास वह तमाम सम्भावनाएं मौजूद है।
आज ही के दिन जन्मी थीं बूढ़ी गांधी उर्फ मातंगिनी हाजरा जिन्होंने दोनों हाथों में गोलियां लगने के बाद भी तिरंगे को गिरने नहीं दिया।
हर्षद मेहता के फर्श से अर्श और अर्श से फर्श की कहानी 'स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी' एक महिला पत्रकार के ज़ज्बे को भी दर्शाती है।
मारग्रेट कजिन्स ने भारतीय लड़कियों को शिक्षित करने के लिए और महिलाओं के मताधिकार के अधिकार के लिए सबसे पहले आवाज़ उठायी थी।
दुर्गा देवी का घर क्रांतिकारियों का आश्रय था। वे उनका स्नेहपूर्वक सेवा-सत्कार करतीं, इसलिए सभी क्रांतिकारी उन्हें दुर्गा भाभी कहने लगे थे।
एशना कुट्टी का बिंदास और अल्हड़ 'ससुराल गेंदा फूल' हमारे अंदर के संवेदनशील कलात्मक मन को झकझोरता है जो हमेशा खुश रहना चाहता है।
महात्मा गाँधी की सेवा करती कस्तूरबा की तस्वीर पर अक्सर सवाल होता कि गांधीजी स्वयं उनसे पैर धुलवाते थे और वे स्त्री मुक्ति की बात कैसे करते थे?
क्या आप जानते हैं कि वाराणसी में एनी बेसेंट की स्वीकृति से सेंट्रल हिंदू कॉलेज बना और इसके साथ ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी स्थापित हुआ।
लैंगिक असमानता हटाने के लिए हमें उस प्रक्रिया को ही परिवर्तित करना होगा जो बचपन से ही शारीरिक भेद को सामाजिक विभेद में बदल देती है।
बिहार की लक्ष्मीबाई के नाम से प्रसिद्ध बहुरिया रामस्वरूप देवी महिलाओं के लिए प्रेरणा रहीं और उन्होंने बिहार के पहले विधानसभा चुनाव भी जीते।
एनोला होम्स, केवल एक होम्स नाम जुड़ने के कारण एक रोमांचक, जासूसी और क्राईम थ्रीलर बिल्कुल भी नहीं है, बल्कि उससे अलग हटकर थोड़ा नटखटी सा है।
डॉ असीमा चटर्जी का देश को एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि कोरोना के वैक्सीन बनाने में या कोरोना के नियंत्रण में उनकी दवा से भी मदद ली जा रही है।
औरतों को समझना है कि उनको 'सुपर वुमन' बनाये रखने में ही उनके परिवार, समाज और बाजार का फायदा है। पितृसत्ता नहीं चाहता कि वे कोई भी काम छोड़ें।
अलंकृता श्रीवास्तव की डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे कहानी है महिलाओं की यौन इच्छा को जाहिर करने की, जो सामाजिक दायरों में समान्य नहीं है।
रसोड़े में पुरुष कभी-कभी ही विचरण करता है लेकिन हाय-तौबा अधिक मचाता है, "आज खाना कितना टेस्टी बना है। तुम इतना अच्छा खाना क्यों नहीं बनातीं?"
दस साल के उम्र में गायिका एम एस सुब्बालक्ष्मी का पहला रिकार्ड बता देता है कि छोटी सी आयु में ही उनका संगीत शिक्षण आरंभ हो गया होगा। आज उनका जन्म दिवस है।
फॉरबिडेन लव की इन दोनों कहानियों में तो मानवीय रिश्तों की कहानी है जिसमें विवाह संस्था में अब तक तय की जा चुकी नैतिकताओं के कारण पैदा हुई घुटन की दास्तां है।
हमें हिंदी को दूसरी भाषा से कमतर नहीं बनाना है न ही दूसरी भाषा को हिंदी के सामने कमतर बनाना है, दोनों ही भाषाओं की पहचान और इज़्ज़त बनाये रखनी है।
“यह मेरी जमीन है, यह मेरी फसल है। किसी में हिम्मत है जो मेरी फसल और मेरी जमीन ले ले? यह तभी संभव है जब मैं मर जाऊं।”- चीटियाला अइलम्मा
अटकन-चटकन स्ट्रीट बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने की कहानी है जो बच्चों को संदेश देने में कामयाब साबित हुई है।
सरला देवी चौधरानी ने ना सिर्फ 'वंदे मातरम' के शेष संगीत को तैयार किया, बल्कि उसे गाकर विदेशी शासकों के पांव तले गहरी नींद में सोये राष्ट्र को जगा दिया था।
मसाबा मसाबा में एक चीज कॉमन है जिससे शायद ही कोई लड़की भारतीय समाज में मुक्त होना चाहती है, पर चाहकर भी नहीं हो सकती है और वह है उसकी माँ से उसकी तकरार।
शैलेंदर व्यास ने एक अलग तरीके से JL50 की कहानी कहने की कोशिश की है जिसके ट्विस्ट और टर्न पूरी सीरिज देखने के लिए मजबूर कर देते हैं।
सड़क-2 में ढोंगी बाबाओं के फैलाए अंधविश्वास और उसके पीछे पैसे, सत्ता और मानवीय जीवन के अंतहीन घुटन को कहने की कोशिश की गई है।
ए. ललिता की कहानी किसी प्रेरणादायक महिला के संघर्ष के कहानी से कम नहीं है, साथ ही साथ वो भारत की पहली महिला इलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो थी ही।
The Gone Game के निर्देशक निखिल भट्ट ने इस दौरान लोगों के मध्य तनाव पर अलग तरह से सोचा और एक कहानी की पटकथा तैयार की, जो सस्पेंस थ्रिलर बनकर निकली।
24 अगस्त 1911 को बीना दास, सुभाष चंद्र बोस के गुरू प्रसिद्ध ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाज सेविका सरला देवी के घर पैदा हुई।
मीरा नायर ने A Suitable Boy में उस दौर के युवा पीढ़ी के अंदर हो रहे उठा-पठक और भावनाओं को बारीक तरीके से पिरोने की कामयाब कोशिश की है।
स्वरा भास्कर की नई वेब सीरीज फ्लेश/Flesh सच्ची घटनाओं से प्रभावित है, जिसमें मानव तस्करी और सेक्स ट्रैफिकिंग जैसे अहम मसलों की परतें खुलेंगी।
शबाना आज़मी द्वारा प्रोड्यूस की गयी फ़िल्म मी रक़्सम पूछती है कि अगर कोई मुस्लिम लड़की डांस सीखना चाहती है तो क्या यह गैर मज़हबी हो जाता है?
16 अगस्त 1904 को जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहन की कविता 'झांसी की रानी' ने देश के बच्चे-बच्चे को देशभक्त बना दिया और इसी कविता ने उन्हें अमर कर दिया।
तारकेश्वरी सिन्हा को पुरुषवादी राजनीतिक महौल ने बेबी ऑफ हाउस, ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स, ब्यूटी विद ब्रेन और ना जाने क्या-क्या बना दिया!
गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल अपनी हौसले और संघर्ष की कहानी कहने के साथ-साथ महिलाओं के साथ हो रहे असमानता के व्यवहारों के कारणों को भी बताती चलती है।
प्रोफ़ेसर इलीना सेन का मानना था, “स्त्री विमर्श इंसान को बेहतर संवेदनशील इंसान बनाने का विमर्श है यह किसी लिंग के विरुद्ध का विमर्श तो है ही नहीं।"
कहानी प्रकाश झा की फिल्म परीक्षा की हो या कहानी निल बट्टे सन्नाटा की, दोनों की मुख्य बात यही है कि गुरबत में भी एक चिराग जलने से अंधेरा दूर हो सकता है।
सर जगदीश चंद्र बोस की धर्मपत्नी लेडी अबला बोस का जन्म 8 अगस्त 1865 को हुआ था। उनके जीवन का अंतिम वर्ष 1951, काफी विशिष्ट था।
आज़ादी शब्द जब भी स्त्री के सामने आता है तो वह जाग उठती है, आज भी वह आज़ाद होकर आज़ाद क्यों नहीं है? कहाँ हैं महिलाओं के सामाजिक अधिकार और उनकी आज़ादी?
प्रसिद्ध कथाकार, नाटककार और नारी समस्याओं को बेबाक अंदाज़ में प्रस्तुत करने वाली रशीद जहाँ, 5 अगस्त 1905 को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ शहर में पैदा हुईं।
आज जरूरत है भाईयों को कि वे अपने विकसित सोच का परिचय दें और अपने साथ-साथ अपनी बहनों के उड़ने के लिए पंख लगाएं, जिससे दोनों साथ-साथ अपनी उड़ान भरें!
फिल्म गुंजन सक्सेना : द करगिल गर्ल और सर्वोच्च अदालत का हलिया फैसला, भारतीय सेना में महिलाओं का हौसला बढ़ाने का बहुत बड़ा काम करेगा।
फिल्म शकुंतला देवी एक ऐसी मां की भी कहानी है जो अपने स्वतंत्र जीवन को जीने के लिए ऐसा जीवन जीती है जो उस दौर के तयशुदा मान्याताओं के बेड़ियों को तोड़ता है।
प्रतिष्ठित नारीवादी लेखिका महाश्वेता देवी के उपन्यासों को ट्रेन और बसों के सफर में पढ़ना और उनके रचना संसार में खो जाना तो मेरे लिए आम बात थी।
जब फिल्मों में महिलाओं का रोल बंधित हुआ करता था तब 'एंग्री यंग वुमन' यानि फियरलेस नादिया ने फिल्मों में महिलाओं के रूढ़िवादी चरित्र को हिलाकर रख दिया।
आज बेगम अनीस किदवई की पुण्यतिथी है, उनके बारे में तारीक के शक्ल में यह दर्ज है कि वह 1906 में पैदा हुईं और साहित्य अकादमी सम्मान से नवाज़ी गयीं।
यूँ तो लख़नऊ की तमाम तवायफों का ज़िक्र मिलता है, लेकिन सबसे अधिक शोहरत अगर किसी को मिली तो वह हैं - उमराव जान 'अदा'।
फलों का राजा आम अनेक तहज़ीब, ज़ुबा, रहन-सहन, बोली और अपने-अपने मज़हब को मानने वाले देश भारत की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा है।
अब से महिलाओं के साथ-साथ शादीशुदा पति भी प्रतिकात्मक चिन्ह का प्रयोग करें, नहीं तो इस पुरुषवादी फेमिनिज़्म की हमें कोई ज़रुरत नहीं।
3 जुलाई 1897 को हंसा मेहता का जन्म बड़ौदा राज्य में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक, जो बाद में बड़ौदा राज्य के दिवान भी रहें सर मनुभाई मेहता के घर हुआ।
सामाजिक पितृसत्ता का ही परिणाम है कि दिल्ली में कोरोना को लेकर जब घरों में सर्वे हो रहे हैं, तो लोग अपनी जानकारी देने से कन्नी काट करे हैं।
अनुष्का शर्मा की फिल्म बुलबुल बीसवीं सदी के भारत में बाल विवाह, बेमेल विवाह, घरेलू हिंसा, प्रतिशोध और बलात्कार की पीड़ा की कहानी है।
26 जून 1882 में शारदा मेहता का जन्म उस दौर में हुआ था जब भारतीय महिलाओं को वे सारे अधिकार नहीं प्राप्त थे, जो आज उनके पास हैं।
फिल्म चमन बहार की कहानी में एक लड़की की मर्ज़ी जाने बगैर सब उससे एक तरफा प्रेम करने लगते हैं और अगर उसमें उनको रिजेक्शन मिल जाए तो....
फिल्म एक्सोन / अखुनी , यह सवाल पूछती है कि क्या आजाद लोकतंत्र में अपने पसंद का खाना खाने या पकाने की आजादी क्यों नहीं है?
विनोद कुमार शुक्ल जी की ये कविता हताशा के पल में मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य और उससे उबरने के लिए समाज के साथ चलने की जरूरत को समझाती है।
सुचेता कृपलानी ने एक ऐसे समय में यूपी जैसे राज्य का मुख्यमंत्री पद संभाला, जब राजनीति में विरले ही किसी महिला को इतना ऊंचा पद दिया जाता था।
कोरोना नर है या मादा इसका निर्धारण कहां और कैसे हो जाता है? कोरोना देवी है देव नहीं यह तय कैसे होता है? और इसकी पूजा स्त्री ही क्यों कर रही है?
अनुराग कश्यप की नई फ़िल्म चोक्ड - पैसा बोलता है, एक साधारण से लगने वाले असाधारण राजनैतिक टॉपिक, नोटबंदी, पर कसी गई एक सरल और खूबसूरत फ़िल्म है।
एक बात मुझे अक्सर खटकती थी, 'हमारे साथ लड़कियां इतनी कम क्यों है हर क्लास में?" कहीं सात, कहीं चार और कहीं मात्र एक। कहां चली जाती है ये टॉपर लड़कियाँ?'
नंदिता दास की शॉर्ट फिल्म 'लिसन टू हर' उन दोनों शोषण की चर्चा को सतह पर लाने की कोशिश करती है जिसका अनुभव हर महिला ने कभी न कभी किया है।
क्या आप जानते हैं, हर एक, सिखाए एक को के नारे के साथ कुलसुम सयानी ने व्यस्क शिक्षा की नींव रखी जो बाद में प्रौढ़ शिक्षा के नाम से जाना गया।
फिल्म घूमकेतु में महिला पात्रों को जिस तरह से दिखाया गया है कमोबेश हमारे आस-पास भी उसी परिवेश की महिलाएं देखने को मिलती हैं।
मात्र पांच साल के शासन में शेरशाह ने जो काम किए वह बताते है कि वह कितना महान शासक था। ये हिंदुस्तान का दुर्भाग्य है कि शेरशाह इतने कम समय तक ही शासन कर सका।
राजा राममोहन राय की आज 248 वीं जयंती है, बीते हुए समय और आज के दौर में मेरे सामने ऐसा कोई शख्स नहीं जिसकी बौद्धिकता, मानवीयता और आकर्षण राममोहन राय जैसा हो।
अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज पाताल लोक में किरदारों की कहानियों जुड़ने के साथ, फेक न्यूज़ कैसे समाज में काम करता है इसकी कहानी सामने आती है।
दुर्गाबाई देशमुख ने संविधान सभा में लगभग 750 संशोधन प्रस्ताव रखे और उनसे से महात्मा गाँधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू और भीमराव आंबेडकर तक, सब प्रभावित थे।
मृदुला साराभाई महिलाओं के मौलिक अधिकार, गर्भपात, तलाक और अवैध संतान जैसे मुद्दों पर राज्य से महत्वपूर्ण सिफारिशें करती रहीं।
गर्लफ्रेंड चोर की कहानी वैसी ही कहानी है जिसमें देखने वाला अपनी अतीत में खो जाता है और अपनी-अपनी कहानी का मूल्यांकन खुद करने लगते हैं।
किसी स्कूल-कालेज में शिक्षित नहीं होने के बाद भी अम्मू स्वामीनाथन एक महिला नहीं, कई संभावनाओं की कहानी हैं, वह संभावना, जो तमाम महिलाओं में दबकर रह जाती है।
नेवर हैव आई एवर नए जमाने की पीढ़ी पर आधारित है, जो अकसर खुद को गंभीरता से लेने से बचते हैं लेकिन अपनी चिंताओं व भावनाओं को चुपचाप व्यक्त कर देते हैं।
लारा दत्ता और रिंकू राजगुरु की वेब सीरीज़ हंड्रेड में कॉमेडी, इमोशनज़, एकदम खतरनाक एक्टिंग, बहुत अपीलिंग है और यह इस वेब सीरिज़ को खास बना देती है।
रात को आसमान में सितारे नज़र आ रहे हैं, दिन के समय हवा एकदम साफ हो गई है। जब कुदरत मुस्कुरा रही है तो इंसान घरों के खिड़कियों से बाहर देख पा रहा है।
अमेज़न प्राइम वीडियो के फोर मोर शॉट्स प्लीज़ के पहले सीज़न की शानदार सफलता के बाद, दूसरा सीज़न पहले सीज़न के तरह कमाल कर सकेगा इसमें मुझे संदेह है।
ताजमहल 1989 को देखने के बाद कुछ तो है जो महसूस होता है, वह है प्रेम, मतलब किसी को याद करना और शायद इसलिए इस सीरीज़ का नाम ताज महल 1989 रखा गया है।
एक थी बेगम चौदह एपीसोड में जुर्म के दुनिया के बादशाहों के बीच में एक बेगम की कहानी है। जो एक-एक करके सारे बादशाहों को मात देती जाती है।
मेरे पास पीरियड्स से जुड़ा वो अनुभव है, जिसने पहली बार मुझे यह बताया कि मैं समाज के उस वर्ग का हिस्सा हूँ जिसे पुरुष वर्ग कहा जाता है और वह सब से बेहतर है।
अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई वेब सीरीज़पंचायत हमारे देश के पंचायतों में महिला सरपंचों की पंचायतों की मौजूदा स्थितियों का शानदार मूल्य़ाकंन है।
सोशल मीडिया पर लड़कियों को साड़ी चैलेंज मिल रहे हैं तो लड़कों को धोती चैलेंज। शायद ये सारी कोशिशें लॉकडाउन में स्वयं को और दूसरों को अवसाद से दूर रखने की हैं।
नेटफ़्लिक्स पर आज रिलीज़ हुयी 'मस्का' लॉकडाउन के दौर परिवार के साथ देखने वाली कहानी है जिसमें अपनी परंपरा की तरफ नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाने की कोशिश भी है।
उमा नेहरू आज से 110 साल पहले महिला अधिकारों के लिए लिख रही थीं और आज़ादी के बाद एक सांसद के रूप में भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करती रहीं।
#MeraFarzHai वीडियो अच्छा कैंपेन है, पर वीडियो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को केवल सार्वजनिक क्षेत्रों में ही देखा और उस पर अपनी खामोशी तोड़ने की बात की।
मालती चौधरी भारत की पहली महिला मार्क्सिस्ट लीडर्स में से एक थीं जिन्होंने राजनीति से अलग रहते सामाजिक एक्टिविस्ट के तरह काम करना तय किया।
शी के किरदार को लिखने के लिए बड़ी खोजबीन करके एक महिला कांस्टेबल की ज़िंदगी को देखा परखा और दर्शाया गया, जो खुद अपने आप से डरती है।
दुआ-ए-रीम में दो पीढ़ी की महिलाओं का अपने साथ होने वाली हिंसा पर चुप्पी और नई पीढ़ी की महिलाओं का हिंसा पर खुदमुख्तार तरीके से बोलना उभर कर सामने आता है।
बेन टेलर के निर्देशन में बनी इस वेब सीरीज़ में, स्कूली बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र के लोगों की सेक्स से जुड़ी समस्याएं को बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है।
यौन शोषण की घटना को जब कोई सबके सामने लाता है, तो या तो सब एक चुप्पी साध लेते हैं या उस आवाज़ को चुप करने की तमाम साज़िशें होती हैं।
होली मोहब्बत और अपनेपन के साथ ऐसे खेलें कि सारे बाहरी रंग छूट जाएं, लेकिन प्यार के पक्के रंग सामने वाला से न छूटें और न ही वह छुड़ाना चाहे।
थप्पड़ में है पुरुषवादी हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध, जो अब तक हिंदी सिनेमा के इस रूमानी डायलाग में खो जाता था, “थप्पड़ से डर नहीं लगता है साहब, प्यार से लगता है।”
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