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लगभग एक साल बाद सुहानी के लिये संदीप का रिश्ता आया और पहली मुलाक़ात में ही सुहानी को संदीप और उसका परिवार बहुत अच्छे लगे।
पूजा को कुछ समझ नहीं आया। उसने ऐसे ही पर्स वापस कर दिया, बहुत ही शातिर अंदाज़ में सासू माँ ने व्यवहार के आये हुए रूपये पूजा से वापस ले लिये थे।
"एक झूठ बोलने से अगर रिश्ते सवंरते हैं तो मुझे नहीं लगता इसमें कुछ हर्ज है। तुम अपनी मां से फोन पर कह देना कि मैंने तुम्हें यह सब करने को कहा है..."
एक दिन पूनम जी ने, काव्या को डांटा और वे बोलीं, "ये क्या जिद्द है तुम्हारी? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ शादी के बाद।"
आज उसे खाता देख सीता जी से रहा ना गया वो बोल पड़ी, "लीला, तुम तो आदमियों जैसा खाती हो! इतना खाना ठीक नहीं!"
"ये मत पहनो, वो मत पहनो... इससे बात मत करो... यहाँ मत जाओ... वहाँ मत जाओ... क्या है ये सब? ऐसा लगता है मैं आपकी पालतू चिड़िया हूँ..."
“तुमने क्यूँ जिद लगा रखी है कि नौकरी नहीं छोड़ना चाहती हूँ, वैसे भी तुम चवन्नी जितना ही कमाती हो?” अभय ने नेहा से कहा। “तुमने क्यूँ जिद लगा रखी है कि नौकरी नहीं छोड़ना चाहती हूँ, वैसे भी तुम चवन्नी जितना ही कमाती हो?” अभय ने नेहा से कहा। “हाँ अभय, अब मैंने जिद […]
पिता का भी अभी पंद्रह दिन पहले देहांत हुआ था, कार एक्सीडेंट में। जिस कार से एक्सीडेंट हुआ वो सेठ रत्नदास की थी जो कि आज निशा के ससुर थे।
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