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मैं एक गृहिणी, माँ, कवयित्री और एक ब्लॉगर हूँ। मुझे कविता, कहानियाँ पढ़ना और लिखना बहुत पसंद हैं।
क्यों न, हम अपने शिकायती मन का मौसम बदल लें।हर नकारात्मक बात में, सकारात्मकता को ढूँढ लें।थोड़ा सा दूसरे लोगों के प्रति रहमदिल हो लें।
शिप्रा ने सोमेश को घूर कर देखा। गाड़ी में बेठ उसने बोला, “यह तुम क्या मोलभाव कर रहे थे काउंटर पर? शोरूम में कोई मोल-भाव करता है क्या?”
अब जब आपकी बारी आई है तो आप अपनी ही दी हुई सीख से पीछे हट रही हो और आप तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे मैंने कोई पाप करने के लिए कह दिया हो।
अनीता जी का फोन आया। मैंने उठाया नहीं। एक बार, दो बार, तीन बार लगातार घंटी बजती रही। सिर दर्द से फटा जा रहा था ऊपर से फोन।
एक अच्छी पटकथा, सधा हुआ निर्देशन, और जीवंत अभिनय इन सब से यह कहानी एक सशक्त महिला के किरदार को उजागर करती है।
रिया के लिए भाई ले आओ? अरे लड़का या लड़की पैदा होना इंसान के हाथ में थोड़े ही है। पर संस्कारवश वह कुछ नहीं कहती थी।
अगर आपके बच्चे भी लौकी के नाम से ही भाग जाते हैं तो आज मैं आपको स्वादिष्ट लौकी के ढोकले की रेसिपी बताती हूं जो उन्हें पूरा पोषण भी देंगे।
अधिकांश लोग अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हैं, पर हम हिंदी भाषी, न जाने क्यों हिंदी बोलने में इतनी हिचक और शर्म महसूस करते हैं?
उसे बहुत गुस्सा आया पर वह खुद को शांत करके बोली, "बेटा आपने मुझसे पूछा भी नहीं और मुझे कुछ बताया भी नहीं, ये तो गलत बात है।"
अगर नीति ने अपने बेटे शिवम को गुड टच और बैड टच के बारे में ना सिखाया होता तो क्या शिवम भी नितिन की तरह यौन शोषण का शिकार होता रहता?
असली महिला सशक्तिकरण तभी होगा, जब यह समाज हर लड़की को, अपने बारे में फैसला करने का, बराबरी का सम्मान और हक देगा।
महिला दिवस पर महिला-विकास के लिए, तुम्हारे ओजपूर्ण भाषणों के साथ, तुम्हारी उजली सी तस्वीरें हैं। पर तुम्हारे ही घर में, औरतों का...
हाय रे यह समाज, जो बेटे को ही वंशबेल बढ़ाने वाला समझता है और बेटी को बोझ मानता है।
स्त्री खुश है या नहीं, कोई मायने नहीं रखता। आज भी स्त्री, गृहस्वामिनी की खुशी या दुख से, किसी को, कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
बेटी का पहला पीरियड? तो तूने उसे पुराने बिस्तर पर सुलाया था न? अब उठते से उसका सिर धुला देना। उसे सारे नियम समझा देना।
एक स्त्री मांग भरे, मंगलसूत्र पहने, तभी लोग उसे थोड़ा बख्श देंगे, हाँ जी, किसी और की संपत्ति जो है, पुरुष इन नियमों के अधीन नहीं है, क्यों...
लेकिन माँ का प्यार, पिता के दिए शब्दों के ज़ख्म नहीं भर सका। उस दिन के बाद से, ऋषभ अपने पिता मोहन के सामने बहुत कम जाता।
मैं सचमुच कुछ नहीं करती। बस अपना तन-मन जीवन झोंक देती हूँ। यही सुनने को, कि दिनभर क्या करती हूँ।
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