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आज कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी है आपके साथ, हौसला बुलंद है, तालीम याफ्ता हैं। फिर भी हमारे समाज के बड़ों का नज़र बंद क्यों है?
रंग बहुत हैं, वो हैं तो हम हैं। वो हमारे बूद बाघ की मालन, उसने मोहब्बतों से गुलिस्ताँ बनायी, वो मासूम उनकी अदाएं, वो मासूम दिलनशी होती हैं।
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