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छूटे अपने, छूटा मोहल्ला, छूटे खिलौने, छूटा घरौंदा। याद रह गया तो ये आँगन, और मेरे घर की तरफ मुड़ती, वो गली।
"आज एक अरमान दफ़न हुआ है, कल और ख़्वाब शहीद होंगे," पर मैं, रुकने वाली नहीं तब तक, जब तकअपने ख़्वाब को हक़ीक़त ना बना लूँ।
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