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अल्फाजों संग नई कहानी पिरोती हूँ
हमारा रिश्तेदारी का खून उबाल लेने लगा, “बेटा हमें तो साधारण लड़की चाहिए। कोई मांग नहीं हैं, ना हूर की परी चाहिए। बस पढ़ी-लिखी होनी चाहिए।”
सासुमाँ की आवाज सुनाई दी तो नीली दरवाजा खोल सासुमाँ के गले लग रो दी। सख्त सासुमां भी थोड़ा घबरा गई उसे रोता देख।
क्या, कभी सुना है, कि पुरुष पिता नहीं बन पाया तो औरत ने दूसरी शादी कर ली? या औरत दूसरी शादी कर, दूसरा पति ले आई? नहीं ना?
परवरिश बहुत सावधानी से करनी होती है। यहीं से संस्कार मिलते हैं और यही आपका व्यक्तित्व भी तय करती हैं। पर सबकी परवरिश में अंतर होता है।
मैं दरवाजे से लौट आई। सहेली के चेहरे पर चढ़ा हुआ मुखौटा जो दिख गया। आधुनिकता का ढोल पीटने वाली मेरी सहेली, विचारों से आधुनिक नहीं हो पाई।
पति को भी समझाती थी पर शक्की मन नीरा पर विश्वास नहीं कर पाता था और फिर यही शारीरिक हिंसा और शक उसके मानसिक अवसाद का कारण बन गई।
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