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माँ सिर्फ एक रिश्ता ही नहीं... एक नरम, कोमल, मुलायम सा अहसास है माँ...ये नाम...जैसे उषा की सुनहरी किरण का नाम है माँ..तपती धूप में ठंडी छाया का अहसास है माँ!
एक बीड़ा हम सबको मिल उठाना है, नारी शक्ति को जगाना है, आत्म विश्वास और आत्म सम्मान उसका बढ़ाना है, अपने अधिकारों हेतु अब उसे लड़ना सीखाना है।
इस कविता के माध्यम से सरोज जी ने अपने मन की बात हम सब के साथ साझा की है - तब का वक़्त और आज का वक़्त...जाने उनके इस दृष्टिकोण को!
एक बेटी की आवाज़ है ये - अब ले तेरी कोख से जन्म मैं, कोहराम ऐसा मचा दूंगी मैं भारत में, कानून ऐसा सख़्त कि होंगे दंडित बलात्कारी ऐसे कि कानून भी थर्रा जाएगा!
बुद्धिमती, कर्मठ प्रयत्नशील नारी शक्ति हो तुम, अंतरिक्ष में उड़ने वाली कल्पना चावला हो तुम - नारी एक, रूप अनेक की परिकल्पना को पूर्ण करती है ये सुंदर कविता।
पर नारी पर कुदृष्टि का अंजाम बताती यह रामायण हमें आज भी, दानवों की अपावन नज़रों से क्यों त्रसित है सबला आज भी, कैकई रूप में जीवित क्यों विमाता है आज भी?
कन्या विहीन धरा को तुम कैसे पुष्पित कर पाओगे?फिर कन्याओं का भोग तुम कैसे लगा पाओगे?जब तक असुरक्षित कन्या और नारी हैंतब तक चंद्रघंटा पूजा अधूरी हमारी है
तीन तलाक का दर्द न सहेंगी अब ये बेटियाँ, दहेज रूपी दैत्य को भी मसल फेंकेंगी अब ये बेटियाँ, अब फूलों सी नाज़ुक नहीं हैं ये बेटियाँ।
सम्मान करो उसकावह तो जीवनदात्री हैउड़ने दो उन्मुक्त गगन में उसकोजिसकी वह अधिकारी हैनारी बिन नर का अस्तित्व नहींनर! नारी बिन कभी पूर्ण नहीं
चल उठ अपनी रक्षक बन, ले ले कवच ढाल हाथों में अब तू, ना कृष्ण कोई तुझे बचाने आएगा अबबन काली दिखा दे अब तू
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