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अपने मन के भावों को लिखती हूँ.... लिखना मेरे लिए उतना ही जरूरी है जितना जीना... कहानी कविता या कोई भी लेख लिखकर मुझे अपार खुशी और सुकुन मिलता हैं.. कोशिश करती हूँ सच्ची घटनाओं को कहानी के रूप में आपके सामने पेश कर सकूं ..धन्यवाद
रिया का पहला पीरियड था। बेडशीट और उसके कपड़े देखकर वह सब समझ तो गया था। लेकिन रिया को जगाकर क्या समझाये, वह यही सोच रहा था।
कितना भेदभाव करते हैं हम अपने ही कोख से जन्मे ऐसे बच्चों के साथ। अब वक्त आ गया है कि हमारा ये समाज अपने बनाये बेतुके नियमों को बदलें।
माँ आज ये पत्र मैं आपको इसलिए लिख रही हूँ क्यूँकि मैं यह नहीं चाहती कि जो मेरे साथ हुआ वही मेरी माँ या मैं खुद अपनी भाभी के साथ करें।
वह सोचने लगी कि क्या वाकई में एक माँ के अपनी बेटी से रोज बात करने से या उसके ससुराल की बातें बताने से उसे परेशानी होती है नई दुनिया में ढलने में?
तू जिम्मेदारी हमारी ये घर तेरा है, जब चाहे आ फैसला ये मेरा है, नहीं करना किसी के लिए तू खुद को कुर्बान, बडे़ नाजों से पाला हमने, तू है हमारी जान!
अगर मेरी कोख में लड़का हुआ तो ठीक नहीं तो मुझे बच्चा गिराना पड़ेगा? इस परिवार की वंशबेल को आगे बढ़ाने का काम अब मेरे ही हाथ में है?
तुम हो बराबर अपनी बहन के, नहीं हो गये बडे़ सिर्फ बेटे होने से, ये बात बचपन से ही सिखा दो, करना है हर नारी का सम्मान, अब बेटों को भी सिखला दो!
वो जमाना गया जब लाचारी होती थी बेटी के पिता होने पर। अब वो घबराते, डरते और लाचार पिता नहीं मिलते। अब तो आप अपने बेटों की बोली लगानी बंद करें।
नहीं करना चाहतीं वो हरगिज़ इबादत पिट कर, बेइज्जत होकर गालियां खाकर जो चाहते हैं पूजे जायें, ईश्वर कहे जाएँ, वे बिन अपराध के सजा झेलती जायें।
बिना पति के जीवन का इतना लम्बा सफर तय करना आसान नहीं था लेकिन अपनी दृढ़ता के कारण रूकमणि अपने बेटों को संस्कारी बनाने में सफल रही।
लेकिन जब तुम न समझ पाते हो, उन अनकही बातों को, न देख पाओ उन खामोश रातों को, न देख पाओ तुम्हारे रूखे बर्ताब से आये आँखों में छिपे आँसुओं को तो....
लाखों लड़किया सिर्फ इसलिए ही ना चाहते हुये भी अपनी शादी निभाती हैं और जुल्म सहती रहती हैं क्योंकि मायके से उन्हें आपका सहारा नहीं मिलता।
हमारे समाज में कि एक पुरुष घर देर से लौटे तो सबको उसकी फिक्र होती है और अगर एक कामकाजी महिला किसी कारण से घर देर से लौटे तो उस पर शक किया जाता है?
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